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    पुण्‍यलोक में महादेव का नवनर्तन, बढ़ा पुण्यश्लोका नगरी उज्जयनी का वैभव

    By Jagran NewsEdited By: Vivek Bhatnagar
    Updated: Mon, 10 Oct 2022 03:16 PM (IST)

    धर्म आस्‍था साधना श्रद्धा और संस्कृति की पौराणिक नगरी उज्‍जैन में आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों भगवान महाकालेश्वर मंदिर प्रांगण में दिव्य-नव्य महाकाल लोक के लोकार्पण से साकार हो रहा है बदलते भारत का नव-स्‍वप्‍न जिससे इस पुण्यश्लोका नगरी का वैभव और भी बढ़ गया है...

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    सूर्य सिद्धांत, सिद्धांत शिरोमणि तथा पंचसिद्धांतिका में उज्जयिनी को पृथ्वी के नाभि स्थल पर अवस्थित बताया गया है।

     डा. मोहन गुप्त। भारतभूमि पर जिन स्‍थलों को देवताओं की भूमि होने का गौरव प्राप्‍त है, उनमें से एक है भगवान महाकालेश्‍वर और शक्तिपीठ मां हरसिद्धि की नगरी उज्‍जयिनी। वर्तमान कालखंड में उज्‍जैन नाम से पहचानी जाने वाली इस पुण्‍यधरा पर देवाधिदेव भगवान महाकाल स्‍वयं ज्‍योतिर्लिंग स्‍वरूप में विराजित हैं। साधना, सिद्धि, धर्म, श्रद्धा, आस्‍था व संस्कृति की यह नगरी आज से एक नये युग में प्रवेश कर रही है। यह युग है 'महाकाल लोक' का युग। महाकाल लोक अर्थात भारत के लोक-जीवन को महादेव की कथाएं कहने का स्‍थल। उज्‍जैन में बने इस नवनिर्मित नव्य दिव्य 'लोक' में पुराणों में वर्णित शिव कथाएं प्रतिमाओं व भित्ति चित्रों के स्‍वरूप में मुखरित होंगी।

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    पृथ्वी लोक के अधि‍ष्ठाता भगवान महाकाल द्वारा अधिष्ठित नगरी उज्जयिनी प्रतिकल्‍पा भी कहलाती है अर्थात प्रत्‍येक कल्‍प, प्रत्‍येक युग में उपस्थित-उल्लिखित नगरी। मोक्षदायिनी पावन शिप्रा नदी के तट पर अवस्थित यह पुराण प्रसिद्ध नगरी हजारों वर्षों से विश्व की सभ्यताओं के आकर्षण का केंद्र रही है। अब महाकाल लोक के निर्माण से एक बार फिर विश्‍व का ध्‍यान इस नगर के वैभव की ओर खिंचा आएगा। समय की कथा कहती है कि सभ्यता और संस्कृति की अनेक धाराओं का संगम उज्जयिनी में था। चाहे वह व्यापार-व्यवसाय की धारा हो अथवा विभिन्‍न धर्मों की धारा, या कि विश्व की विभिन्‍न संस्कृतियों की। सच में यह पृथ्वी का केंद्र स्थल है, क्योंकि यहां से एक ओर पूर्व से पश्चिम जाने वाली कर्क रेखा गुजरती थी, तो उत्तर में सुमेरू से लंका तक जाने वाली शून्य रेखा भी उज्जयिनी से होकर ही गुजरती थी। इसलिए पुराणों में उज्जयिनी को शरीर के आठ चक्रों में से मध्य चक्र मणिपुर में अवस्थित बताया गया है...

    आज्ञाचक्रं स्मृता काशी या बाला श्रुतिमूर्धनि

    स्वाधि‍ष्ठानं स्मृता कांची मणिपूरमवन्तिका

    नाभिदेशे महाकाल स्तन्न्म्ना तत्र वै हर: (वाराह पुराण)

    सूर्य सिद्धांत, सिद्धांत शिरोमणि तथा पंचसिद्धांतिका- ज्योतिष के तीनों प्रसिद्ध ग्रंथों में उज्जयिनी को पृथ्वी के नाभि स्थल पर अवस्थित बताया गया है। सूर्य सिद्धांत के अनुवादक प्रसिद्ध विद्वान ई. बर्जेस ने लिखा है कि उज्जैन नगरी विश्व के प्रमुख रेखांश (प्राइम मेरिडियन) पर अवस्थित है। जो गौरव आज ग्रीनविच को मिला है, वही गौरव प्राचीनकाल में उज्जयिनी को प्राप्त रहा। भारतीय सिद्धांत ज्योतिष के अनुसार ग्रहों की गणना अब भी उज्जैन की मध्य रात्रि के आधार पर की जाती है। बर्जेस ने लिखा है कि, ‘उज्जयिनी समृद्ध मालवा प्रांत की राजधानी रहा है तथा अत्यंत प्राचीन समय से भारतीय साहित्य, विज्ञान और कलाओं का केंद्र रहा है।’ भारतवर्ष के सभी सांस्कृतिक केंद्रों में से यह प्रसिद्ध नगर समुद्री रास्ते के सबसे समीप था और इसलिए ईसा की प्रारंभिक सदियों में अलेक्जेंड्रिया तथा रोम से भारतीय व्यापार का प्रमुख केंद्र था। विश्व सभ्यता का प्रमुख व्यापारिक केंद्र होने के कारण यहां पर भारत के अनेक प्रांतों के सिक्के मिले हैं। गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने भी अत्यंत स्पृहा और स्नेहिल वाणी के साथ अपनी एक कविता में उज्जैन का स्मरण किया है।

    पांच हजार से भी अधिक वर्ष प्राचीन इस नगरी को प्रतिकल्‍पा अर्थात प्रत्‍येक कल्‍प में उपस्थित नगरी कहा गया है। आदि ब्रह्म पुराण में इस नगर को साधना व निवास की दृष्टि से उत्‍तम नगर के रूप में वर्णित किया गया है। गरुड़ पुराण तथा अग्निपुराण में इसे मोक्षदा अर्थात मोक्ष देने वाली तथा भक्ति-मुक्ति अर्थात भक्ति के माध्‍यम से मुक्ति देने वाली नगरी भी कहा गया है। गरुड़ पुराण तो कहती है कि भारत की अध्‍यात्‍म भूमि पर जो सप्‍त नगरी मोक्ष प्रदान कर सकती हैं, उज्‍जयिनी उनमें से एक है, बल्कि दक्षिणमुखी ज्‍योतिर्लिंग होने से उज्‍जयिनी का महत्‍व और भी अधिक माना गया है। इस मंत्र में यह वर्णित भी है...

    अयोध्या, मथुरा, माया, काशी, कांची, अवंतिका,

    पुरी, द्वारावतीचैव सप्तैता: मोक्षदायिका:।।

    यह उज्‍जैन का ही सौभाग्‍य है कि देवों के देव महादेव यहां कालों के काल महाकाल के स्‍वरूप में निवास करते हैं। इसे ज्‍योतिर्लिंग नगरी होने के अलावा मां हरसिद्धि की शक्तिपीठ नगरी होने का सौभाग्‍य भी प्राप्‍त है। देवदुर्लभ संयोग यह भी कि यहां प्रत्‍येक 12 वर्ष में सिंहस्‍थ अर्थात कुंभ का वह मेला लगता है, जिससे सनातन धर्म प्राणशक्ति पाता है। मान्‍यता है कि उज्‍जैन में भगवान विष्णु के चरण चिह्न हैं- 'विष्णौ: पादमवन्तिका'। मोक्षदायिनी शिप्रा नदी के किनारे मोक्ष मिलने का महत्‍व शास्‍त्रों में वर्णित है। मान्‍यता है कि भगवान श्रीराम ने स्वयं उज्जैन में अपने पिता का अंतिम संस्कार किया था और इसलिए वह स्थान जहां अनुष्ठान हुआ, उसे ‘रामघाट’ कहा गया।

    जब हम उज्‍जैन के इतिहास पर जाते हैं तो महाभारत में यह अपने पूर्ण गौरव के साथ उपस्थित है। विंद और अरविंद नाम के राजा महाभारत काल में अवंती (वर्तमान उज्जैन) पर राज करते थे, जिन्होंने उस महासमर में कौरवों की तरफ से युद्ध किया। उनकी एक बहन मित्रवृंदा थी, जो भगवान कृष्ण की पटरानियों में से एक बनीं। महाकवि कालिदास ने अत्यंत रमणीय शब्दों में भगवान महाकाल और इस सुंदर नगरी का वर्णन किया है। मेघदूत में वे अपने मेघ को निर्देश देते हैं- 'यद्यपि तुम्हारा मार्ग वक्र होने से कुछ लंबा हो जाएगा, किंतु उज्जयिनी नगरी का अवलोकन अवश्य करना। उस नगरी को देखकर ऐसा लगता है मानो स्वर्ग में अवस्थित पुण्यात्मा-जन पृथ्वी पर स्वर्ग का ही एक दीप्तिमान खंड लेकर आ हो गए हों'…

    स्वल्पीभूते सुचरितफले स्वर्गिणां गां गतानां

    शेषै: पुण्यैर्हृतमिव दिव: कान्तिमत् खण्डमेकम्।। (मेघदूत 1/30)

    ब्रह्मपुराण तथा स्कंदपुराण ने उज्जयिनी का अत्यंत विस्तृत और मनोहारी दृश्य प्रस्तुत किया है। यह महानगरी सुंदर देवालयों से सुशोभित है तथा दृढ़ प्राकार और तोरणों से युक्त है। यहां सुंदर मार्ग तथा वीथियां हैं , सुविभक्त चौराहे हैं। यह अत्यंत समृद्ध है तथा सभी शास्त्रों के ज्ञाता-विद्वानों से समलंकृत है। यही कारण रहा है कि इस नगरी के अनेक नाम पुराणों में प्रसिद्ध हो गए, जैसे-कनकश्रृंगा (जिसके कलश सोने के हों), पद्मावती, कुशस्थली, प्रतिकल्पा इत्यादि।

    यहां धार्मिक संप्रदायों का संगम है। स्कंदपुराण के अवंती खंड में यह विवरण दिया गया है कि यहां पर चौरासी महादेव, आठ भैरव, एकादश रूद्र, द्वादश आदित्य, छह विनायक, चौबीस देवियां, दस विष्णु तथा नव नारायण विराजमान हैं। सनातन धर्म के तीनों प्रमुख संप्रदाय अर्थात शैव, वैष्णव तथा शाक्त के अतिरिक्त यह नगरी जैन तथा बौद्ध धर्म का भी महत्वपूर्ण केंद्र रही है।

    इसी प्रकार शिप्रा नदी का महत्व भी पवित्र गंगा, नर्मदा तथा गोदावरी नदियों के सदृश बताया गया है। यदि तीर्थयात्री एक बार भी इसके तट पर आकर स्नान कर लें तो उसे पापकर्मों से मुक्ति प्राप्त हो जाती है। यह नदी चंद्रमा से उत्पन्न् होने के कारण अमृत से भरपूर है और इसलिए सोमवती भी कहलाती है...

    नास्ति वत्स महीपष्ठे शिप्राया: सदृशी नदी।

    यस्थास्तीरे क्षणान्मुक्ति सकृदासेवितेन वै।।

    उज्जैन का वास्तविक इतिहास छठी शताब्दी ईसा पूर्व से प्रारंभ होता है, जब चंद्रप्रद्योत यहां का राजा था। महाकवि कालिदास ने 'मेघदूत में इसका उल्‍लेख किया है। पुराणों के अनुसार वीतिहोत्र वंश के अंतिम राजा की हत्या पुनिक द्वारा की गई थी, जिसने अपने पुत्र प्रद्योत को यहां का राजा बनाया। उनके समय में उज्जयिनी अत्यंत समृद्ध हुई। मौर्य काल में जब चंद्रगुप्त मौर्य सम्राट बने, तब उनके पुत्र बिंदुसार यहां के प्रांतीय शासक थे और जब बिंदुसार ने सत्ता संभाली, तब उनके पुत्र अशोक, जिन्हें 'अशोक महान' कहा जाता है, यहां के प्रांतपाल बने। उज्‍जयिनी शिक्षा का इतना महत्‍वपूर्ण केंद्र थी कि उनके पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा की शिक्षा-दीक्षा उज्जयिनी में ही हुई। बाद में सम्राट विक्रमादित्य ने शकों को परास्त कर ईसा पूर्व पहली शताब्दी में उज्‍जयिनी का गौरव बढ़ाया। उज्‍जयिनी तभी से दानशीलता और न्यायप्रियता के कारण पूरे भारतवर्ष में प्रसिद्ध हुई। विक्रमादित्‍य के भाई भर्तृहरि ने उज्‍जैन में ही प्रसिद्ध शतक त्रयी - श्रृंगार शतक, नीति शतक और वैराग्य शतक लिखे।

    महाकाल की नगरी होने के कारण उज्‍जैन कालगणना का भी महत्‍वपूर्ण केंद्र है। सम्राट विक्रमादित्‍य ने यहीं से विक्रम संवत् प्रचलित किया, जो ईसा से भी 57 वर्ष पूर्व प्रारंभ हो चुका था। 18वीं सदी में ज्योतिर्विज्ञान के बड़े अनुरागी सवाई जयसिंह उज्जैन के प्रांतीय शासक बने। उन्होंने उज्जैन, जयपुर, मथुरा तथा दिल्ली में चार वेधशालाएं बनवाईं। उज्जैन की वेधशाला से आज भी वेध (मौसम व ग्रहों संबंधी सटीक जानकारी) ली जाती है।

    उज्‍जैन का जलवायु समशीतोष्ण होने से मौसम के दृष्टिकोण यह यह नगरी अतिउत्‍तम है। न शीत अधिक, न गर्मी या वर्षा। बारहों महीने आनंद। ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर और पवित्र शिप्रा नदी के अतिरिक्त यहां शक्तिपीठ हरसिद्धि मंदिर, चिंतामण गणेश, मंगलनाथ, गोपाल मंदिर, महर्षि सांदीपनि पीठ, महर्षि सांदीपनि वेद विद्या प्रतिष्ठान, महाप्रभु वल्लभाचार्य की बैठक, कालभैरव तथा कालिदास अकादमी जैसे संस्थान तथा मंदिर हैं। इसे मध्य प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी भी कहा जाता है।

    वर्तमान कालखंड में यहां बने 'महाकाल लोक' ने इस पुण्‍यश्‍लोका का वैभव और बढ़ा दिया है। यह न केवल अत्यंत भव्य और दिव्य है, अपितु समूचे महाकाल परिसर को एक नूतन आभा प्रदान करता है। इसके निर्माण में उज्जयिनी की पूरी सांस्कृतिक विरासत की झलक मिलती है। लोकार्पण के बाद यह उज्जैन और मध्य प्रदेश के वैभव और धार्मिक पर्यटन का एक महत्वपूर्ण पड़ाव होगा। एक सांस्कृतिक धरोहर के रूप में उज्जैन की पहचान पहले से ही सारे विश्व में है, किंतु इस नवीन 'महाकाल लोक' के निर्माण से यह नगर विश्व के और भी आकर्षण का केंद्र बन गया है।

    (लेखक महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय उज्‍जैन के पूर्व कुलपति व भारतीय संस्कृति‍ के अध्‍येता हैं)