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    मासानां मार्गशीर्षो अहम्, इसी मास को भगवान श्रीकृष्ण ने बताया था अपनी विभूति

    By Jagran NewsEdited By: Vivek Bhatnagar
    Updated: Mon, 07 Nov 2022 05:50 PM (IST)

    श्रीमद्भगवद्गीता में अपनी विभूतियों का वर्णन करते हुए भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि वे महीनों में मार्गशीर्ष हैं। यह मास खेतों में बीज बोने और उनके अंकु ...और पढ़ें

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    वैदिक कार्यों में आधिकांश आचार्य नक्षत्र के आधार पर ही गणना करते हैं, जिसमें प्रथम मास मार्गशीर्ष होता है।

     अशोक जमनानी। भगवान की विभूति होने का गौरव समेटे और कार्तिक के पुण्य प्रवाह को विदा देकर हेमंत ऋतु में विस्तारित मार्गशीर्ष मास (कल यानी बुधवार नौ नवंबर से) आरंभ होने जा रहा है। लोक ने इसे नाम दिया है अगहन। संभवतः 'अग्रगण्य' को लोकवाणी ने अगहन नाम दिया है। मार्गशीर्ष अग्रगण्य है, क्योंकि वैदिक कार्यों की गणना में यह प्रथम मास है। मास गणना के चार भेद हैं : सौर, चांद्र, सावन और नाक्षत्र। हमारी अधिकांश वर्ष गणना सूर्य और चंद्र के आधार पर की जाती है, जिसमें प्रथम मास चैत्र है, इसी कारण हमारे नववर्ष का आगमन भी चैत्र मास में ही होता है। लेकिन वैदिक कार्यों में आधिकांश आचार्य नक्षत्र के आधार पर ही गणना करते हैं, जिसमें प्रथम मास मार्गशीर्ष होता है। यही वैदिक कार्यों का अग्रगण्य मास लोक में अगहन और शास्त्रों में मार्गशीर्ष है, जिसे भगवान ने अपनी विभूति कहा है। वर्ष चक्र में इसका महत्व भी अग्रगण्य ही है। कई लोग कहते हैं कि मार्गशीर्ष केवल शास्त्र में अग्रगण्य है, जबकि लोक चेतना में तो चैत्र ही प्रथम मास है। भारतीय दर्शन की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि यह लोक जीवन से अत्यंत गहरा जुड़ाव रखता है। अध्यात्म केवल सूक्ष्म अथवा परम् का पथ नहीं है, बल्कि यह सामान्य जीवन से भी उतना ही जुड़ाव रखता है। अगहन मास खेतों में बीज बोने और उनके अंकुरण का भी महीना है और जब यह किसानों के आनंद का साक्षी बनता है तो शास्त्र से सर्वथा अपरिचित एक साधारण किसान भी अपने आनंद लोक को नवल विस्तार दे उठता है। खेतों में अंकुरित होती नई फसल उसे नव-चेतना का अर्थ भी सौंपती है तो यह चेतना उसकी वाणी में भी आकार पा जाती है। बारामासी लोक गीतों में जब मार्गशीर्ष अथवा अगहन का वर्णन होता है तो शास्त्र से अनभिज्ञ लोक भी गाता है :

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    अगहन मास अग्गम को महीना

    चलो सखी बृज चल चलिए।

    आश्चर्य होता है यह सुनकर कि जिन्होंने कभी गीता नहीं पढ़ी, वे साधारण किसान भी जानते हैं और गाते हैं कि यह अगहन उस अगम का महीना है, तब लगता है कि जैसे लोक वाणी कह रही हो कि महीनों में अगहन हूं मैं। यहां तक कि चैत्र मास को प्रथम मास मानने वाले भी मार्गशीर्ष का महत्व यह कहकर स्वीकारते हैं कि यह चैत्र को प्रथम मास मानने के क्रम में नौंवा महीना है और नौ का अंक पूर्णांक होता है, इसीलिए यह भगवान की विभूति बनता है। संत कहते हैं कि मार्गशीर्ष से पूर्व पूरे कार्तिक मास में पवित्र तीर्थों में स्नान करने का विधान इसीलिए है, क्योंकि भगवान की विभूति स्वरूप मार्गशीर्ष के आने से पहले भीतर और बाहर को अपिवत्र से पवित्र की ओर ले जाना होता है। यह मास अपने आने से ठीक पूर्व देव शयन के कालखंड को पूर्ण करके देव उत्थान का मंगलाचरण बांचता है और फिर दर्शन और जीवन के क्षेत्र में नव का भी आवाहन करता है। खेतों में बीजारोपण और उनके अंकुरण के साथ यह मास देव उत्थान के बाद जीवन में नव चेतना के अंकुरण का भी मास है। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि ज्ञान भक्ति और कर्म की त्रिवेणी रचती श्रीमद्भगवद्गीता का अवतरण इसी मास की शुक्ल एकादशी को हुआ था, जिसे हम गीता जयंती के रूप में आज भी याद करते हैं और रामविवाह का आनंद शीर्ष भी इसी मास की शुक्ल पंचमी रचती है, जिसे भगवान राम और मां जानकी के विवाह की तिथि होने के कारण विवाह पंचमी कहते हैं।

    यह मास जीवन और मोक्ष का संगम है। यह नव के अंकुरण और दर्शन के शिखरस्थ होने का महीना है, इसीलिए इसकी कृष्ण एकादशी का नाम उत्पन्ना और शुक्ल एकादशी का नाम मोक्षदा है। माना जाता है कि मार्गशीर्ष माह में जठराग्नि प्रबल होने के कारण गरिष्ठ से गरिष्ठ खाया और पचाया जा सकता है। यह कालखंड देह को सबल बनाने, नव ऊर्जा से संयुक्त होकर जीवन पथ को रचनात्मक मूल्य सौंपने और चेतना के अंकुरित होते सामर्थ्य का स्वागत करने का कालखंड भी है। यदि यह आरंभ अपनी यात्रा पूर्ण कर सके तो फिर दुर्लभ कुछ भी नहीं है। भारतीयता ने पूरे जीवन को गहरे अर्थ सौंपे हैं। भारतीय जीवन शैली साधारण में असाधारण रचती है, लेकिन कहीं भी यह असाधारण केवल विशिष्ट से जुड़ाव तक सीमित नहीं रहता, बल्कि लोक चेतना को भी उसी सामर्थ्य से जोड़ता है। भारत का दर्शन और चिंतन इसीलिए इतना महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह जीवन की सहजता से भिन्न नहीं है। जीवन और दर्शन, शास्त्र और लोक दोनों एक-दूसरे का हाथ थामकर चलते हैं। जिसे शास्त्र अग्रगण्य मानता है, लोक उसे अग्गम कहकर गाता है और अगहन नाम देकर बुलाता है। खेतों में बीज अंकुरित होते हैं या जीवन में चेतना अंकुरित होती है, भारत का मानस उसे एक ही भाव से आनंद का अग्रगण्य मानता है। जिस अन्न को वेदों ने ब्रह्म कहा, उस अन्न को किसान ब्रह्म भाव से देखता है, यही भारत के चिंतन का सौंदर्य है। यही भारत के दर्शन का आलोक है, जो खेतों में बीज और जीवन में चेतना के अंकुरण को अग्रगण्य मानकर केवल प्रणाम ही नहीं करता, वरन समस्त संसार में दर्शन के शिखर पर स्थापित ग्रंथ श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान इस कालखंड के प्रतिनिधि मास को अपनी विभूति घोषित करते हुए कहते हैं कि बीज और चेतना के अंकुरण का मास मार्गशीर्ष स्वयं मैं ही हूं - मासानां मार्गशीर्षो अहम्! महीनों में अगहन हूं मैं!