शिल्प शास्त्र के प्रणेता भगवान विश्वकर्मा, जिनकी जन्म जयंती पर होती है कारखानों में पूजा
भगवान विश्वकर्मा जी को तकनीक के सर्वमान्य वैदिक देवता की प्रतिष्ठा प्राप्त है और इनकी गणना सनातन धर्म में महत्वपूर्ण देवों में की जाती है। इसी कारण प्रतिवर्ष विश्वकर्मा जयंती पर विभिन्न कार्यों में प्रयुक्त होने वाले औजारों व कल-कारखानों में लगी मशीनों का पूजन किया जाता है।

पूनम नेगी। देवशिल्पी विश्वकर्मा प्राचीन भारत के महान अविष्कारक हैं। पुष्पक विमान से लेकर ओडिशा के विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर तक अद्भुत शिल्प विज्ञान की सुदीर्घ शृंखला सदियों से देवशिल्पी के विलक्षण तकनीकी कौशल का यशोगान करती आ रही है। ऋग्वेद व अथर्ववेद से लेकर रामायण, महाभारत, ब्रह्मपुराण जैसे पौराणिक ग्रंथों में विश्वकर्मा जी के शिल्प कौशल का विस्तृत उल्लेख मिलता है। विष्णु पुराण में उल्लेख है कि जगन्नाथ मंदिर की अनुपम शिल्प रचना से प्रसन्न होकर श्रीहरि विष्णु ने उन्हें "शिल्पावतार" के रूप में सम्मानित किया था। स्कंद पुराण में उन्हें देवयानों का सृष्टा कहा गया है। स्कंद पुराण में उल्लेख है कि विश्वकर्मा शिल्प शास्त्र के इतने बड़े मर्मज्ञ थे कि जल पर चल सकने योग्य खड़ाऊं बनाने का सामर्थ्य रखते थे। पुरा भारतीय साहित्य में विश्वकर्मा जी द्वारा बनाये गये ऐसे अनेक अस्त्रों-आयुधों व वैमानिक उपकरणों का उल्लेख मिलता है, जो वर्तमान के अत्याधुनिक यांत्रिक युग के विशेषज्ञों को भी विस्मित कर सकते हैं। अपने विशिष्ट ज्ञान-विज्ञान के कारण देवशिल्पी विश्वकर्मा सुर-असुर, यक्ष-गंधर्व ही नहीं, मानव समुदाय व देवगणों द्वारा भी पूजित-वंदित हैं। इनको गृहस्थ आश्रम के लिए आवश्यक सुविधाओं का निर्माता व प्रवर्तक माना जाता है। भगवान विश्वकर्मा जी को तकनीक के सर्वमान्य वैदिक देवता की प्रतिष्ठा प्राप्त है और इनकी गणना सनातन धर्म में सर्वाधिक महत्वपूर्ण देवों में की जाती है। हिंदू धर्म में भगवान विश्वकर्मा को सृष्टि के रचयिता प्रजापति ब्रह्मा का वंशज माना गया है। ब्रह्म पुराण में भगवान विश्वकर्मा के जन्म व वंशावली का रोचक विवरण मिलता है। ब्रह्मा के पुत्र धर्म तथा धर्म के पुत्र वास्तुदेव थे, जिन्हें शिल्पशास्त्र का आदि पुरुष माना जाता है। इन्हीं वास्तुदेव की अंगिरसी नामक पत्नी से विश्वकर्मा का जन्म हुआ था। अपने पिता के पदचिह्नों पर चलते हुए विश्वकर्मा वास्तुकला के महान आचार्य बने। इनके पांच पुत्रों मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी और देवज्ञ को वास्तु शिल्प की अलग-अलग विधाओं में विशेषज्ञ माना जाता है, जिन्होंने पदार्थों के आधार पर शिल्प विज्ञान को पांच प्रमुख धाराओं लौह, काष्ठ, ताम्र, प्रस्तर व हिरण्य (स्वर्ण) शिल्प में विभाजित कर मानव समुदाय को इनके ज्ञान से लाभान्वित किया। ऋग्वेद में भी विश्वकर्मा सूक्त के नाम से 11 ऋचाओं में इनका गुणगान मिलता है। हिंदू धर्मावलंबियों की मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा का पूजन किए बिना कोई भी तकनीकी कार्य शुभ नहीं होता। इसी कारण प्रतिवर्ष विश्वकर्मा जयंती पर विभिन्न कार्यों में प्रयुक्त होने वाले औजारों व कल-कारखानों में लगी मशीनों का पूजन किया जाता है। मान्यता है कि विश्वकर्मा जी के बताए वास्तुशास्त्र के नियमों का अनुपालन कर बनवाए गये मकान, दुकान शुभ फल देने वाले होते हैं और ऐसी दुकानों में कारोबार भी अच्छा फलता-फूलता है। इसी कारण देशभर में प्रति वर्ष भगवान विश्वकर्मा की जयंती पर उनकी पूजा-अर्चना की जाती है।
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