इंटरनेशनल फूड लास एंड वेस्ट अवेयरनेस डे : खाने की बर्बादी रोकने वाले देश के राबिनहुड
कहीं बचा हुआ खाना यूं ही कूड़ेदान में फेंक दिया जाता है तो कहीं भूखे सो जाते हैं करोड़ों लोग। इस गंभीर समस्या को समझते हुए इस दिशा में जोरदार पहल कर रहे हैं देश के तमाम युवा और किशोर...
सीमा झा। दोस्तो, कहीं बचा हुआ खाना यूं ही कूड़ेदान में फेंक दिया जाता है तो कहीं भूखे सो जाते हैं करोड़ों लोग। इस गंभीर समस्या को समझते हुए इस दिशा में जोरदार पहल कर रहे हैं देश के तमाम युवा और किशोर। आइए इंटरनेशनल फूड लास एंड वेस्ट अवेयरनेस डे (29 सितंबर) 2022 पर जानें कि कैसे खाने की बर्बादी रोकने और इस दिशा में जागरूकता बढ़ाकर आप भी बन सकते हैं देश के विकास और बदलाव के वाहक...
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कहीं एक भव्य शादी समारोह का आयोजन हो रहा था। हजारों लोग आमंत्रित थे। तरह-तरह के व्यंजन, पकवान परोसे जाने की तैयारी थी। तभी एक नौजवान ने देखा कि खाना खाने के बाद बचे हुए खाने को कूड़ेदान में फेंका जा रहा था। यह बात उसे सहन नहीं हुई। मन में खयाल आया कि इस बचे हुए खाने से तो हजारों लोगों के पेट भरे जा सकते हैं लेकिन यहां लोग इस बात से बेपरवाह हैं। दोस्तो, उस नौजवान का नाम है अंकित क्वात्रा। उन्होंने उस दिन के बाद ठान लिया कि खाने की बर्बादी रोकनी है। इसके बाद कारपोरेट सेक्टर की अपनी अच्छी खासी नौकरी छोड़कर 2014 में ‘फीडिंग इंडिया’ नामक संस्था की शुरुआत कर दी। तब तो उनके साथ महज पांच लोग जुड़े थे, पर आज उनकी संस्था भारत के 42 से अधिक शहरों में काम कर रही है। हजारों वालंटियर जुड़े हैं जो कि शादी समारोह और पार्टियों से बचने वाले भोजन को जरूरतमंदों तक पहुंचाने में मदद करते हैं। उनका एक ही मकसद होता है कि कोई भूखा नहीं रह जाए। आपको बता दें कि अंकित को गरीबी, विषमता और अन्याय के खिलाफ लड़ने और वर्ष 2030 तक जलवायु परिवर्तन जैसे क्षेत्रों में योगदान और नेतृत्व क्षमता के लिए भी चुना गया है।
आपने राबिनहुड की कहानी पढ़ी है तो यह जानते होंगे कि कैसे गरीबों की मदद के लिए अंग्रेजी साहित्य का यह चर्चित व चहेता किरदार समाज के अमीर वर्गों से शत्रुता मोल ले लेता था। पर अंकित जैसे भारत के राबिनहुड ऐसा नहीं करते। वे रेस्तरां, बड़े-बड़े होटलों में जाकर उनके व्यवस्थापकों मिलते हैं और बताते हैं कि उनके यहां बचे हुए खाने से कैसे गरीब, भूख से बिलखते लोगों की भूख मिटायी जा सकती है। ऐसे देश में जहां करीब 20 करोड़ लोग हर रात भूखे पेट सोते हैं। करोड़ों कुपोषित हैं, ऐसी स्थिति में उन्हें भोजन उपलब्ध कराना सचमुच एक बड़ा काम है।अच्छी बात यह है कि इसके लिए आपको कुछ खर्च नहीं करना पड़ता, पर बदले में मिलती है अनमोल खुशी।
नाम ही है राबिनहुड आर्मी
वर्ष 2014 में ही एक संस्था बनी, जिसका नाम ही है ‘राबिनहुड आर्मी’। इसकी शुरुआत नील घोष नामक युवा ने की। संस्था की सह-संस्थापक आरुषि बत्रा बताती हैं, ‘नील उस वक्त पुर्तगाल में थे। वहां उन्होंने एक ऐसा फूड प्रोग्राम देखा, जिसके तहत बचे हुए खाने को बेघर, भूखे लोगों को वितरित कर दिया जाता था। यहीं से राबिनहुड आर्मी गठित करने की बात हुई।’ नील घोष ने भारत आते ही इस दिशा में काम शुरू कर दिया। आरुषि बताती हैं, ‘हमने देखा कि हर दो तीन किलोमीटर पर हमें ऐसे जरूरतमंद लोग मिल जाते थे जो कई दिन से भूखे होते। हमने काम शुरू किया। पार्टियों में जाकर बचा हुआ खाना देने की अपील की। पर रेस्तरां, बड़े रेस्तरां में जाकर ऐसा करना एक चुनौती थी।’ चुनौतियां न हो तो काम को बेहतरीन बनाने का अवसर कहां से मिलता। जिन लोगों को खाना दिया जाता, उनके खिले हुए चेहरे की तस्वीरें होटलों, रेस्तरां मालिकों को दिखायी जातीं। रविवार को विशेष सत्र का आयोजन होता जब वे राबिनहुड आर्मी के साथ आते और ऐसे लोगों से मिलते जिनकी भूख मिटाने का नेक काम ये लोग कर रहे हैं। धीरे-धीरे उन्होंने सबका दिल जीत लिया। इसके बाद उनका नेक इरादा और मेहनत रंग लाने लगी। संस्था के साथ ज्यादातर 18 से 25 साल के युवा कार्यकर्ता जुड़े हैं, जिनकी संख्या लाखों में है। अब आम लोगों से लेकर पांचसितारा होटल व रेस्तरां मालिक सब अब खुद पहल कर उनकी मदद कर रहे हैं। राबिनहुड संस्था आज दस से अधिक देशों और चार सौ से अधिक शहरों में अपनी सेवाएं दे रही है। आरुषि कहती हैं, ‘भारत में हम करीब चालीस प्रतिशत खाना बर्बाद कर देते हैं। करोड़ों लोग दुनिया में भूखे सो जाते हैं। कोविड के बाद तो स्थिति और खराब हुई है। युवा चाहें तो यह भयावह तस्वीर बदल सकती है। ’
प्रिंस चार्ल्स से मिली सराहना
बड़ा सपना देखने और उसे पूरा करने का उम्र से कोई वास्ता नहीं होता, यही साबित किया है तमिलनाडु के पद्मनाभन गोपालन ने। अभिभावकों की बात मानकर कोयंबटूर से इंजीनियरिंग तो कर ली लेकिन वह हमेशा समाज के लिए कुछ सार्थक करना चाहते थे। वह कहते हैं, ‘मुझे स्कूल के दिनों में ही आस-पड़ोस की कुछ बातें भीतर से झकझोर देती थीं। जिस बात ने सबसे अधिक प्रभावित किया, वह है भुखमरी।’ वह अक्सर सोचते थे कि एक तरफ लोग खाने पर हजारों रुपये खर्च कर देते हैं, पर खाना पसंद नहीं आने पर उसे फेंक देते हैं, जबकि इससे तमाम भूखे लोगों का पेट भरा जा सकता है। इसे देखते हुए उन्होंने छोटी-मोटी समाजसेवा के काम के साथ-साथ वर्ष 2015 में ‘नो फूड वेस्ट’ संस्था की शुरुआत की। शुरुआती समय में लोगों ने इस काम को एक मजाक बताया। पिताजी पढ़ाई का वास्ता देकर उनसे नाराज भी हुए, लेकिन धीरे-धीरे पद्मनाभन के कार्य को लोकप्रियता मिलने लगी। इसके लिए उन्हें कामनवेल्थ यूथ पर्सन अवार्ड 2019 भी मिला, जिसे उन्होंने लंदन में प्रिंस चार्ल्स (अब चार्ल्स तृतीय नाम से ब्रिटेन के महाराजा) के हाथों ग्रहण किया। इसके बाद उनका हौसला आसमान छूने लगा। वह कहते हैं, ‘अवार्ड तो कई मिले पर प्रिंस चार्ल्स से पुरस्कार लेना एक बड़ी प्रेरणा बन गयी मेरे लिए। उन्होंने मेरा नाम लेते हुए कहा था कि पद्मनाभन आपका काम ही आपकी जीवन यात्रा तय करेगी।’ शुरुआती समय में ‘नो फूड वेस्ट’ को दक्षिण भारत के शहरों में लोकप्रियता मिली पर धीरे-धीरे वह दूसरे शहरों में भी गए। वह कहते हैं, ‘यह नहीं भूलना चाहिए कि आपको आपके काम से ही याद किया जाएगा। पर यदि आप अपने काम से संतुष्ट होना चाहते हैं तो यकीन करें कि आप बेहतर कर सकते हैं।’ उनके मुताबिक, हम जिस काम को पसंद करते हैं, उसमें बेहतर करने की संभावना सबसे ज्यादा होती है। वह कहते हैं, ‘हम जो खाते हैं उसकी अहमियत को समझें। इसकी बर्बादी से हम कई स्तरों पर देश को नुकसान पहुंचाते हैं।’
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बर्बाद होने से बचाएं भोजन
-शादियों में, बड़े कारपोरेट इवेंट्स में कालेज-स्कूल कैंटीन में, होटल में इन सभी जगहों पर खाना बर्बाद होते देख रहे हैं, तो इस दिशा में कार्यरत संस्था को फोन करें ताकि वे उचित पहल कर इसे बर्बाद होने से बचा सकें।
-अपनी प्लेट में उतना ही खाना लें, जितना आप खा सकें। खाना लेते समय ध्यान रहे कि आपकी यह छोटी-सी पहल कितनों का पेट भर सकती है।
इंटरनेशनल डे आफ अवेयरनेस आफ फूड लास एंड वेस्ट
खाद्य अपव्यय के मुद्दे को हल करने के वैश्विक प्रयासों को बढ़ावा देने और लागू करने के लिए वर्ष 2020 से 29 सितंबर को इंटरनेशनल डे आफ अवेयरनेस आफ फूड लास एंड वेस्ट के रूप में मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 19 दिसंबर, 2019 को इसे एक अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में मान्यता दी थी।
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भूख मिटाने की करें पहल
आरुषि बत्रा, सह-संस्थापक, राबिनहुड आर्मी
जब हमने यह संस्था शुरू की थी तो अंदाजा नहीं था कि यह इतना बड़ा परिवार बन जाएगा। पर यह संभव हुआ है हजारों कार्यकर्ताओं के चलते जो इंसानियत के वास्ते बाहर से छोटी लगने वाली इस पहल से लगातार जुड़ रहे हैं। यदि आप भी राबिन बनना चाहते हैं तो इसके लिए आपको यह पता होना चाहिए कि किस वर्ग को इसकी सबसे अधिक जरूरत है। अपने आसपास नजर दौड़ाएं और पता करें कि यह समूह कहां रहता है। पता लगने पर आप हमारी जैसी संस्था को सूचित करें। आप चाहें तो खुद राबिन बनकर रेस्तरां या अपने घर में बचा खाना लेकर उनकी भूख मिटाने की पहल कर सकते हैं।