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    आध्यात्मिक प्रेम से मिलेंगे ईश्वर, जो है हमारी आत्मा का निज स्वभाव

    By Vivek BhatnagarEdited By:
    Updated: Mon, 19 Sep 2022 06:04 PM (IST)

    परमात्मा के निकट जाने का रास्ता भी प्रेम है। परमात्मा के साम्राज्य में दाखिल होने के लिए हमें ‘आध्यात्मिक प्रेम’ की आवश्यकता होती है। इस मार्ग में जो हमारा मार्गदर्शक हो सकता है वह है जाग्रत सतगुरु। आध्यात्मिक प्रेम ही परमात्मा के साम्राज्य के दरवाजे की सुनहरी चाबी है।

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    वास्तव में ध्यात्मिक प्रेम के अर्थ को समझना आसान नहीं है। यह परमात्मा की तरह ही असीम है।

     संत राजिन्दर सिंह। सभी महान संतों और महापुरुषों ने हमेशा कहा है कि आध्यात्मिकता के लिए एक नैतिक जीवन जीना चाहिए, ध्यान-अभ्यास में बैठना चाहिए, अनुशासन का पालन करना चाहिए और सत्संग सुनना चाहिए, लेकिन यदि हम आध्यात्मिकता को अपने जीवन में बिना प्रेम और समर्पण की भावना से अपनाएंगे तो हम आध्यात्मिक मार्ग की सच्चाई से अनजान रहेंगे। आध्यात्मिक मार्ग प्रेम का मार्ग है। परमात्मा प्रेम है। हमारी आत्मा परमात्मा का अंश होने के नाते प्रेम है। परमात्मा के निकट जाने का रास्ता भी प्रेम है। परमात्मा के साम्राज्य में दाखिल होने के लिए हमें ‘आध्यात्मिक प्रेम’ की आवश्यकता होती है। इस मार्ग में जो हमारा मार्गदर्शक हो सकता है, वह है जाग्रत सतगुरु। आध्यात्मिक प्रेम ही परमात्मा के साम्राज्य के दरवाजे की सुनहरी चाबी है। इसके बिना आध्यात्मिक मार्ग तक नहीं पहुंचा जा सकता। आध्यात्मिक प्रेम के सही अर्थ और उद्देश्य को समझना कोई आसान काम नहीं है। वास्तव में यह आध्यात्मिक प्रेम परमात्मा की तरह ही असीम है। इसे पूरी तरह समझना हमारी सीमित बुद्धि से परे है। हमारी आत्मा में प्रेम शुरू से ही है, क्योंकि कहा जाता है कि सृष्टि के आरंभ में आत्मा प्रेम के महासागर से एक बूंद के रूप में अलग हुई थी। प्रभु के अनंत साम्राज्य से आने के बाद हम स्थायी शांति और प्रसन्नता तब तक नहीं पा सकते, जब तक हम अपने मूल स्रोत से नहीं जुड़ जाते। अब सवाल यह उठता है कि हम आध्यात्मिक प्रेम को कैसे प्राप्त कर सकते हैं? आध्यात्मिक प्रेम हमारी आत्मा का निज स्वभाव है, लेकिन हमने इसे सही दिशा नहीं दी है। हमने इसका मुख संसार की ओर कर दिया है। हम इंद्रियों के माध्यम से इस संसार के भोगों-रसों में इतने फंस गए हैं कि अपने मन की इच्छाओं द्वारा खिंचे चले जाते हैं। जिसके कारण हमारा प्रेम यहां की अस्थायी वस्तुओं में लग गया है। उसका नतीजा यह है कि हम अपनी वास्तविकता को भूल चुके हैं। इसीलिए हम भ्रम या निद्रा की स्थिति में हैं। इस मोह-माया की नींद से हम खुद नहीं जाग सकते और जो खुद सो रहा है, वह हमें जगा नहीं सकता। जो स्वयं जाग रहा है, वही हमें इस गहरी नींद से जगा सकता है। हम एक लोककथा की उस सोई हुई राजकुमारी की तरह हैं, जिसे राजकुमार के जाइुई स्पर्श ने गहरी नींद से जगाया था। हमें इस मोह-माया की गहरी नींद से उठाकर हमारे अंदर के प्रेम को आध्यात्मिकता की ओर उन्मुख कर सकता है, वह हैं जाग्रत सतगुरु। जाग्रत सतगुरु ही बताते हैं कि आध्यात्मिक प्रेम पढ़ाया, सिखाया या कहीं से लाया नहीं जा सकता। इसे केवल स्वयं खोजा जा सकता है। कैसे? यह रास्ता वे बताते हैं। उनकी संगति में आकर आध्यात्मिक प्रेम को अनुभव किया जा सकता है।

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