DIWALI : खुशियों का एक दीया, प्रेम और सौहार्द के लिए भी
धूम-धड़ाका फुलझडिय़ां रंगोली यानी प्रकाश के पर्व दीपावली की है पूरी तैयारी। इस खास अवसर पर हमें एक दीया जरूरतमंदों की मदद करने और प्रेम व सौहार्द का भी क्यों जलाना चाहिए बता रहे हैं कुछ जाने माने किशोर व युवा साथी...

सीमा झा। धूम-धड़ाका, फुलझडिय़ां, रंगोली यानी प्रकाश के पर्व दीपावली की है पूरी तैयारी। इस खास अवसर पर हमें एक दीया जरूरतमंदों की मदद करने और प्रेम व सौहार्द का भी क्यों जलाना चाहिए, बता रहे हैं कुछ जाने माने किशोर व युवा साथी...
'अपने दुख भूलकर सबको गले लगाना, मुस्कुराता हुआ दीप बन जाना, टेबल पर रखे कागज पर लिखी यह पंक्ति मैंने पढ़ी, तो दिल खुश हो गया। कहती हैं रिया। वह दसवीं में पढ़ती हैं। पढ़ाई के साथ-साथ उन्हें जरूरतमंद बच्चों को पढ़ाना अच्छा लगता है। इस दीपावली वह अपने छात्रों के बीच उपहार बांट रही हैं। रिया के अनुसार, दीपावली की खुशियां दोगुनी हो जाती हैं, जब हम ऐसा कुछ करते हैं। जब हम औरों की जिंदगी में भी जलाते हैं उम्मीद की रोशनी, तो दीये की रोशनी भी कई गुना बढ़ जाती है, वह भी मुस्कुरा उठता है ।
हम से हैं उम्मीदें : नीतू घनघस, मुक्केबाज
मैं ऐसे गांव से आती हूं जहां खेलकूद का अच्छा माहौल है लेकिन पदक जीतने के बाद एक नई उम्मीद जगी है। खुशी होती है कि यह उम्मीद जगाने में मेरा भी कुछ योगदान है। मुझे याद है जब मैं राष्ट्रमंडल खेल में स्वर्ण पदक जीत कर आई थी और उससे भी पहले कई पदकों के साथ जब अपने गांव लौटती रही, तो अपने स्वागत में होने वाले समारोह को देखकर जो अहसास होता है, उसे शब्दों में नहीं बांध सकती। ऐसे सम्मान समारोह में छोटे-छोटे बच्चे भी आते हैं। वे जब मुझे देखते ही मेरे साथ फोटो खिंचाने के लिए दौड़ पड़ते हैं, तो अच्छा लगता है। खुशी होती है कि मैंने जो इतने दिन संघर्ष किए, कोशिश की, हार का सामना किया, उन सभी का ही आज इतना सुंदर परिणाम है। इससे न केवल मुझे बल्कि मेरे गांव और देश की लड़कियों को भरोसा मिला है कि वे भी एक मुक्केबाज बन सकती हैं। इससे भी ज्यादा जब बच्चियों के मां-बाप आते हैं और पूछते हैं कि नीतू अपनी बच्ची को कैसे मुक्केबाजी सिखाएं, क्या करें तो इस खुशी का मोल नहीं। राह चलते जब लोग मुझे देखते हैं और कह देते हैं कि वह देखो नीतू जा रही है तो मैं मुड़कर मुस्कुरा देती हूं लेकिन वह मुस्कान मुझे आश्वस्त करती है कि हां मैंने भी समाज को कुछ योगदान दिया है। अपने परिश्रम और लगन से इस तरह भी हम लोगों के दिलों में उम्मीद का एक छोटा-सा दीया जला सकते हैं ।
सबके साथ का आनंद : अवि शर्मा, लेखक, एंकर
दीपावली मेरा प्रिय पर्व है। यह इसलिए खास है क्योंकि यह मुझे मौका देता है कि मैं अपने घर के साथ-साथ अपने आसपास भी खुशियों की रोशनी लुटा सकूं। जहां रहता हूं वहां के सफाई कर्मी, वाचमैन आदि सभी को मिठाई बांटने का विचार मेरे माता-पिता का रहता है। पर मैं अपनी तरफ से उनके बच्चों के लिए फुलझडिय़ां और जरूरत का सामान देने की राय देता हूं। हर बार मेरी राय पर घरवाले अमल करते हैं। कभी-कभी हम अनाथों के साथ दीपावली मनाते हैं। हम जितने भी सामान खरीदते हैं, वे छोटे काराबारियों के होते हैं। सड़क पर बैठकर दीया आदि बेचने वालों से सामान लेकर कुछ ज्यादा पैसा दे देना भी अच्छा लगता है। जैसे भगवान राम ने विभीषण, सुग्रीव, शबरी सबकी मदद की, सबको गले लगाया था, हमें भी यही सीख लेनी है। सबके साथ दीपपर्व मनाने का अलग आनंद है।
सुंदर मन से लुटाएं रोशनी : देवयानी, नृत्यांगना
मैं नृत्य के साथ साथ एक विज्ञापन एजेंसी के साथ भी काम करती हूं। घर हो या कामकाज हर जगह आपके व्यक्तित्व व विचार का प्रभाव पड़ता है। मन सुंदर है तो आप हर तरफ रोशनी लुटा सकते हैं। दीये की तरह खुद जलकर झिलमिल प्रकाश फैला सकते हैं। घर पर रहते हुए मेरी कोशिश रहती है कि मैं अपने यहां काम करने वाली के बच्चों की मदद करूं। शिक्षा देना हो या समय-समय पर उपहार देना, मुझे शुरू से ऐसा करना अच्छा लगता है। नवरात्र में बाहर से जरूरतमंदों को बुलाने की सलाह दी तो सबने अमल किया। इसी तरह अपनी कंपनी को मैंने दीपावली पर एक सलाह दी कि कोविड के समय जिन छोटे दुकानदारों को नुकसान हुआ, उनके लिए कुछ करें। कंपनी ने इसे माना और अब हम इस दिशा में लगातार सक्रिय हैं। किसी दर्जी की दुकान को पेंट करा दिया तो किसी स्कूल में सरस्वती की पेंटिंग बनाकर एक नया रूप दे दिया।
संवारें औरों की जिंदगी : मंदाकिनी मांझी, खो खो खिलाड़ी
मैंने अभी ओडिशा खो खो एसोसिएशन के साथ जुड़कर कोच का भी काम शुरू किया। मैं एक पिछड़े तबके से आती हूं जहां शिक्षा की रोशनी नहीं पहुंच सकी है। मैंने भी पढ़ाई की, जिसके लिए मुझे काफी जतन करना पड़ा। उस समाज से निकलकर एक खो खो खिलाड़ी बनी हूं तो मुझे हरदम अपनी जिम्मेदारी का एहसास रहता है। अपने समाज के बीच जाकर छोटे-छोटे बच्चों को देखती हूं तो मन दुखी हो जाता है। वे शिक्षा से वंचित न हों, इसलिए उनके अभिभावक से मिलकर कहती हूं कि भले ही आप गरीब हैं लेकिन कोशिश करें कि आपके बच्चों को शिक्षा मिले। शिक्षा केवल नौकरी पाने के लिए नहीं है बल्कि यह आपको एक अच्छा इंसान भी बनाती है। अच्छा लगता है जब मेरी सलाह पर वे अमल करते हैं। जो बहुत गरीब है उन्हें खुद पढ़ाती हूं या दाखिला लेने में सहयोग करती हूं। छोटी-छोटी नेकी से आप समाज में बड़ी उम्मीद जगा सकते हैं। अपनी तरफ से कुछ भला हो जाए या आपके एक कदम से औरों की जिंदगी संवर जाए, दीपावली का वास्तविक संदेश यही है।
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