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Muharram Shayari 2020: इन शायरियों के जरिए अपने दोस्‍तों और रिश्‍तेदारों को दें मुहर्रम का शोक संदेश

Muharram Shayari 2020 इस पूरे महीने को ही खास माना जाता है लेकिन इस महीने का 10वां दिन सबसे ज़्यादा अहम होता है जिसे रोज़-ए-अशुरा कहते हैं।

By Umanath SinghEdited By: Published: Fri, 28 Aug 2020 04:27 PM (IST)Updated: Fri, 28 Aug 2020 04:27 PM (IST)
Muharram Shayari 2020: इन शायरियों के जरिए अपने दोस्‍तों और रिश्‍तेदारों को दें मुहर्रम का शोक संदेश
Muharram Shayari 2020: इन शायरियों के जरिए अपने दोस्‍तों और रिश्‍तेदारों को दें मुहर्रम का शोक संदेश

दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Muharram Shayari 2020: इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना मुहर्रम होता है। इस्लाम में इस महिने को सबसे पवित्र माना जाता है। मुसलमान समुदाय के लिए यह महीना बेहद पाक होने के साथ ग़म का महीना भी होता है। इस दिन को मुस्लिम समुदाय मोहम्मद हुसैन के नाती हुसैन की शहादत के तौर पर मनाता है। मुहर्रम सुन्नी और शिया दोनों ही मुस्लिम समुदाय मनाते हैं, लेकिन दोनों ही इसे अलग-अलग ढंग से मनाते हैं।

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शिया मुसलमानों के लिए ये महीना खास महत्व रखता है। इस पूरे महीने को ही खास माना जाता है, लेकिन इस महीने का 10वां दिन सबसे ज़्यादा अहम होता है, जिसे रोज़-ए-अशुरा कहते हैं। इस दिन लोग ताज़िया निकालते हैं। हालांकि, कोरोना वायरस महामारी के चलते लोग इस साल ताज़िया नहीं निकाल पाएंगे। ऐसे में लोग अपने मित्रों और रिश्तेदारों को मोबाइल और सोशल मीडिया के जरिए संदेश भेजकर दुख प्रकट करेंगे-

1.

कर्बला को कर्बला के शहंशाह पर नाज़ है

उस नवासे पर मुहम्मद को नाज़ है

यूं तो लाखों सिर झुके सज़दे में लेकिन

हुसैन ने वो सज़दा किया जिस पर खुदा को नाज़ है

2.

एक दिन बड़े गुरुर से कहने लगी जमीन

है मेरे नसीब में परचम हुसैन काफिर

चांद ने कहा मेरे सीने के दाग देख

होता है आसमान पर भी मातम हुसैन का

3.

सिर गैर के आगे न झुकाने वाला

और नेजे पर भी कुरान सुनाने वाला,

इस्लाम से क्या पूछते हो कौन है हुसैन,

हुसैन है इस्लाम को इस्लाम बनाने वाला।

4.

दश्त-ए-बाला को अर्श का जीना बना दिया

जंगल को मुहम्मद का मदीना बना दिया

हर जर्रे को नज़फ का नगीना बना दिया

हुसैन तुमने मरने को जीना बना दिया

5.

पानी का तलब हो तो एक काम किया कर

कर्बला के नाम पर एक जाम पिया कर

दी मुझको हुसैन इब्न अली ने ये नसीहत

जालिम हो मुकाबिल तो मेरा नाम लिया कर

6.

वो जिसने अपने नाना का वादा वफा कर दिया

घर का घर सुपुर्द-ए-खुदा कर दिया

नोश कर लिया जिसने शहादत का जाम

उस हुसैन इब्न अली को लाखों सलाम

7.

हुसैन तेरी अता का चश्मा

दिलों के दामन भिगो रहा है

ये आसमान में उदास बादल,

तेरी मोहब्बत में रो रहा है

सबा भी जो गुजरे कर्बला से

तो उसे कहता है अर्थ वाला

तू धीरे गुजर यहां मेरा हुसैन सो रहा है


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