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    Makar Sankranti 2020: मकर संक्रांति पर क्यों ख़ास होते हैं तिल के लड्डू? पढ़ें दिलचस्प कहानी

    By Ruhee ParvezEdited By:
    Updated: Mon, 13 Jan 2020 09:58 AM (IST)

    Makar Sankranti 2020भारत के हर कोने में जिस तरह अलग-अलग तरह का व्यंजन होते हैं वैसे ही जितने तरह के त्योहार मनाए जाते हैं उनमें उतने ही तरह के खाने की चीज़ें भी बनती हैं।

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    Makar Sankranti 2020: मकर संक्रांति पर क्यों ख़ास होते हैं तिल के लड्डू? पढ़ें दिलचस्प कहानी

    नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Makar Sankranti 2020 : साल 2020 में 'मकर संक्रांति' का पर्व 15 तारीख को मनाया जा रहा है। मकर संक्रांति हिंदू समुदाय के बड़े त्योहारों में से एक है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जिस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं तब मकर संक्रांति का योग बनता है। जब सूर्य गोचरवश भ्रमण करते हुए मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तब इसे मकर-संक्रांति कहा जाता है। 

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    भारत के हर कोने में जिस तरह अलग-अलग तरह के व्यंजन होते हैं, वैसे ही इस देश में जितने तरह के त्योहार मनाए जाते हैं, उनमें उतने ही तरह के खाने की चीज़ें भी बनती हैं। जैसे की होली पर गुजिया और दीवाली पर पेड़े बनाए जाते हैं, ठीक इसी तरह मकर संक्रांति के दिन तिल और गुड़ से बनी चीज़ें खाने की परंपरा है।

    क्या है तिल का महत्व 

    कर संक्रांति के दिन तिल की महत्ता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस पर्व को ''तिल संक्रांति'' के नाम से भी पुकारा जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि वास्तव में इस दिन तिल को इतना महत्व क्यों दिया जाता है। नहीं न, तो चलिए आज हम आपको इस बारे में बताते हैं−

    शनि के लिए महत्वपूर्ण तिल

    मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करते हैं, इसलिए इस पर्व को मकर संक्रांति कहकर पुकारा जाता है और मकर के स्वामी शनि देव हैं। सूर्य और शनि देव भले ही पिता−पुत्र हैं लेकिन फिर भी वे आपस में बैर भाव रखते हैं। ऐसे में जब सूर्य देव शनि के घर प्रवेश करते हैं तो तिल की उपस्थिति के कारण शनि उन्हें किसी प्रकार का कष्ट नहीं देते। 

    वैज्ञानिक लिहाज़ से भी ख़ास है तिल और गुड़

    धार्मिक के अलावा मकर संक्रांति के दिन तिल और गुड़ का वैज्ञानिक महत्व भी है। मकर संक्रांति के समय उत्तर भारत में सर्दियों का मौसम रहता है और तिल-गुड़ की तासीर गर्म होती है। सर्दियों में गुड़ और तिल के लड्डू खाने से शरीर गर्म रहता है। साथ ही यह शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का काम करता है।

    तिल दान की कथा

    मकर संक्रांति के दिन तिल खाने व उसका दान करने के पीछे एक पौराणिक कथा भी है। दरअसल, सूर्य देव की दो पत्नियां थी छाया और संज्ञा। शनि देव छाया के पुत्र थे, जबकि यमराज संज्ञा के पुत्र थे। एक दिन सूर्य देव ने छाया को संज्ञा के पुत्र यमराज के साथ भेदभाव करते हुए देखा और क्रोधित होकर छाया व शनि को स्वयं से अलग कर दिया। जिसके कारण शनि और छाया ने रूष्ट होकर सूर्य देव को कुष्ठ रोग का शाप दे दिया। अपने पिता को कष्ट में देखकर यमराज ने कठोर तप किया और सूर्यदेव को कुष्ठ रोग से मुक्त करवा दिया लेकिन सूर्य देव ने क्रोध में शनि महाराज के घर माने जाने वाले कुंभ को जला दिया।

    इससे शनि और उनकी माता को कष्ट भोगना पड़ा। तब यमराज ने अपने पिता सूर्यदेव से आग्रह किया कि वह शनि महाराज को माफ कर दें। जिसके बाद सूर्य देव शनि के घर कुंभ गए। उस समय सब कुछ जला हुआ था, बस शनिदेव के पास तिल ही शेष थे। इसलिए उन्होंने तिल से सूर्य देव की पूजा की। उनकी पूजा से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने शनिदेव को आशीर्वाद दिया कि जो भी व्यक्ति मकर संक्रांति के दिन काले तिल से सूर्य की पूजा करेगा, उसके सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाएंगे। इसलिए इस दिन न सिर्फ तिल से सूर्यदेव की पूजा की जाती है, बल्कि किसी न किसी रूप में उसे खाया भी जाता है। 

    तिलदान का विशेष महत्व

    - मकर-संक्रांति के दिन तिल से बनी हुई वस्तुओं का दान देना श्रेयस्कर रहेगा।

    - धर्म शास्त्रों के अनुसार, तिल दान से शनि के कुप्रभाव कम होते हैं।

    - तिल मिश्रित जल से स्नान करने से, पापों से मुक्ति मिलती है, निराशा समाप्त होती है।

    - मकर संक्रांति के पवित्र अवसर पर सूर्य पूजन और सूर्य मंत्र का 108 बार जाप करने से अवश्य लाभ मिलता है।

    - अगर भाषा व उच्चारण शुद्ध हो तो आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ अवश्य करें। यह अनुभूत प्रयोग है।