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अपने दुखों का कारण समझने में सक्षम हो जाएं तो जीवन बने सहज और सुंदर

अगर हम अपने दुखों का कारण समझने में सक्षम हो जाएं तो हमारे लिए उन्हें दूर करना भी बहुत आसान हो जाएगा। इसके बाद जीवन में परम शांति होगी और हमारे चारों ओर खुशियों के फूल खिलेंगे।

By Sakhi UserEdited By: Published: Mon, 28 Aug 2017 05:16 PM (IST)Updated: Wed, 13 Sep 2017 01:21 PM (IST)
अपने दुखों का कारण समझने में सक्षम हो जाएं तो जीवन बने सहज और सुंदर
अपने दुखों का कारण समझने में सक्षम हो जाएं तो जीवन बने सहज और सुंदर

अगर हम अपने दुखों का  कारण समझने में सक्षम हो जाएं तो हमारे लिए उन्हें दूर करना भी बहुत आसान हो जाएगा। इसके बाद जीवन में परम शांति होगी और हमारे चारों ओर खुशियों के फूल खिलेंगे। 
पने कभी सोचा है कि आख‍िर हम परेशान क्यों होते हैं? कई बार ऐसा भी होता है कि व्यक्ति का मन बहुत उदास होता है पर वह इसकी असली वजह समझ नहीं पाता। दरअसल हम अपने आसपास के लोगों, स्थितियों और घटनाओं  से सबसे ज्य़ादा परेशान होते हैं। सभी को ऐसा लगता है कि हम अपने $करीबी लोगों से प्रेम करते हैं, फिर भी हमारे जीवन में इतनी अशांति क्यों है? दरअसल व्यक्ति जिसे प्रेम समझता है, वह उसका विकृत स्वरूप है। ऐसा प्रेम ईष्र्या-द्वेष नफरत, लालच, डर, चिंता, तनाव और अवसाद के रूप में नज़र आता है। ऐसी सभी नकारात्मक भावनाएं प्रेम के बिलकुल विपरीत होती हैं। इसी तरह शांति भी केवल विवाद या संघर्ष का अभाव ही नहीं, बल्कि यह एक सकारात्मक आंतरिक भावना है। वास्तव में हमें अपनी आंतरिक शांति का आभास होना चाहिए। सच्ची समृद्धि की निशानी कभी खत्म न होने वाली मुस्कान है, हमें उसे बाहर निकलने का मौका देना चाहिए। जीवन में हमें तीन स्तरों पर शांति की ज़रूरत होती है-वातावरण, मन और आत्मा की शांति। जो व्यक्ति इन तीनों स्तरों पर शांति हासिल कर लेता है, उसके जीवन से समस्त दुखों का अंत हो जाता है। हालांकि मानव मन की प्रवृत्ति ऐसी है कि वह आसपास की अपूर्णता को पकड़कर उसमें अटक जाता है। इसी प्रक्रिया में व्यक्ति अपना आपा खो देता है और मन की शांति भी चली जाती है। हमें इन सब चक्रों से निकलकर स्वयं को अंदर से शांत और सुदृढ़ बनाना है। यहां कुछ ऐसे प्रयोग दिए जा रहे हैं, जिनकी मदद से व्यक्ति का मन विपरीत परिस्थितियों में भी मज़बूत और संयत बना रहता है।
वर्तमान में जीना सीखें
यदि आप अपने मन को जीत लेते हैं तो इसका सीधा मतलब यही है कि आप दुनिया को भी जीत सकते हैं। मन आपकी चेतना में भावनाओं की अभिव्यक्ति है और इसमें विचार निरंतर बने रहते हैं। मन ही हमारे दुखी और खुश रहने का कारण है। जब मन वर्तमान में रहता है, तब सब कुछ बहुत सुंदर लगता है लेकिन जब दुनिया की अच्छी से अच्छी जगह पर भी हमारा मन मलिन हो तो हम निश्चित रूप से दुखी होंगे। हमें योग, प्राणायाम और ध्यान के माध्यम से अपने मन को वर्तमान में लाने की कोशिश करनी चाहिए। ऐसी क्रियाएं हमें नेगेटिविटी से बचाती हैं। इनके अभ्यास से हमारी क्षमताओं में वृद्धि होती है, नर्वस सिस्टम मज़बूत होता है और हमारे मन से हर तरह के बुरे और नुकसानदेह विचार दूर हो जाते हैं। कुल मिलाकर ध्यान से व्यक्ति का संतुलित और सर्वांगीण विकास होता है। दरअसल लोग विकास शब्द को केवल बच्चों से जोड़कर देखते हैं पर वास्तव में ऐसा नहीं है। इंसान में ताउम्र अच्छी बातें सीखते हुए अपना विकास करने की संभावना बनी रहती है और यह बहुत ज़रूरी भी है।
सब कुछ है नश्वर
जीवन में सच्ची खुशी हासिल करने के लिए सबसे पहले यह समझना बहुत ज़रूरी है कि यहां कुछ भी स्थायी नहीं है। धन-दौलत, प्रसिद्धि और दोस्त-रिश्तेदार, यह सब कुछ छोड़कर सभी को एक न एक दिन इस संसार से जाना ही पड़ता है। इसलिए अपने विवेक को जाग्रत करके यह समझना बहुत ज़रूरी है कि इस संसार में सब कुछ नश्वर है। यह जि़दगी बहुत छोटी है और हमारे लिए इसका एक-एक पल बेहद कीमती है। इसलिए अपने मन में एक-दूसरे के प्रति नफरत और क्रोध की भावना रखने के बजाय सभी के साथ अच्छा व्यवहार करते हुए हमें चारों ओर खुशियां बांटनी चाहिए। जब व्यक्ति को यह बात अच्छी तरह समझ आ जाती है तो उसका मन साक्षी भाव की अवस्था में चला जाता है। ऐसा होने के बाद वह सुख-दुख, लाभ-हानि और मान-अपमान जैसी भावनाओं से परे हो जाता है। इसके बाद चाहे स्थितियां अच्छी हों या बुरी, व्यक्ति हर हाल में अपना संयम कायम रखता है।  
वैराग्य और स्वतंत्रता
वैराग्य ही व्यक्ति के भीतर स्वतंत्रता लाता है। यह उसे सूक्ष्मता में ले जाता है और अंदर से मुक्त कर देता है। हमारे भीतर कुछ ऐसा है, जो कभी नहीं बदलता है। यह वही धुरी है, जहां से हम सारे परिवर्तनों को देख-समझ सकते हैं। यही सूक्ष्म और अपरिवर्तनशील धुरी हमारे अस्तित्व की निशानी है। स्वयं का ज्ञान होना ही हमें वर्तमान में रखता है। यह हमें पूर्णत: स्वस्थ और संतुलित बनाए रखता है। मान लीजिए अगर कभी आपके साथ कुछ बुरा हो भी जाए तो ऐसी स्थिति में आपको खुद से बार-बार यही कहना चाहिए कि 'तो क्या हुआ? कोई बात नहीं, जल्द ही सब ठीक हो जाएगा...। प्रत्येक चुनौती/स्थिति और भावनाओं का दृढ़ता और आत्मविश्वास के साथ सामना करें। यदि हम दुनिया के इतिहास को देखें तो पाते हैं कि कठिन समय में इंसान और ज्य़ादा ताकतवर होकर उभरता है। किस दुख से आप डर रहे हैं? आपका क्या होगा? पीछे नज़र घुमाइए, इससे पहले भी आप कई बार विपरीत परिस्थितियों से कुशलता पूर्वक बाहर निकल चुके हैं। इसी तरह आज भी आपको यही सोचना है कि इस समस्या का भी हल निकल ही आएगा। अतीत भी व्यक्ति को बहुत कुछ सिखाता है।
बना रहे संतुलन
जीवन में बहुत कुछ घटित होता रहता है, सुख-दुख, उतार-चढ़ाव और मान-अपमान। आपका दायित्व यही है कि हर स्थिति में समभाव बने रहें, आपके मन में भावनाओं का संतुलन कायम रहे। इस दुनिया में सब कुछ मीठा ही नहीं है। आपको शांतिपूर्वक स्वयं से यह सवाल ज़रूर पूछना चाहिए कि क्या हर परिस्थिति में आप शांत रह पाए? जब आपका सबसे खराब समय चल रहा हो, फिर भी आप हंस रहे हों, तब आपको यही समझना समझिए कि आपके अंदर आत्मविश्वास का सुरक्षा कवच मौज़ूद है। विपरीत समय ही हमें यह बताता है कि हम कितने समझदार और संतुलित हैं।
सेवा का सुख
आमतौर पर लोग केवल अपनी ही समस्याओं के बारे में सोचते हैं लेकिन कभी आप निजी लाभ-हानि की सोच से परे हट कर नि:स्वार्थ भाव से किसी अजनबी की सेवा करें, बदले में उससे कुछ भी पाने की आशा न रखें। ऐसी सेवा से मिलने वाली खुशी अनमोल होती है। इससे आपको खुद ही महसूस होगा कि इस संसार में दूसरे लोग आपसे भी ज्य़ादा दुखी और परेशान हैं। ऐसे में आपको अपनी समस्याएं बहुत छोटी लगने लगेंगी। जैसे ही आपको अपनी समस्याएं छोटी लगती हैं, वैसे ही आपके अंदर यह आत्मविश्वास आ जाता है कि मैं अपनी समस्याओं का हल ढूंढ सकता/सकती हूं। अगर सरल शब्दों में कहा जाए तो उन लोगों की सेवा कीजिए, वाकई जिन्हें आपकी ज़रूरत है।
समर्पण है ज़रूरी
जीवन में आने वाली मुश्किलें आसमान में छाई उन काली घटाओं की तरह होती हैं, जो  सूरज को ढक लेती हैं। इससे उसकी रोशनी कुछ देर के लिए मद्धम ज़रूर पड़ जाती है पर बादल में इतनी शक्ति नहीं है कि वह दिन को रात बना दे। थोड़े समय के बाद उसे हटना ही होता है। इसी तरह कोई भी बुरी भावना एक सीमा के बाद व्यक्ति के जीवन को प्रभावित नहीं कर सकती। बस, ज़रा गहराई से आप सि$र्फ इतना सोचिए कि आपके पास करने को बहुत कुछ है। ऐसा सोचने के बाद आप सभी शंकाओं और डर से ऊपर उठने में कामयाब होंगे। अगर कभी आपको ऐसा लगे कि हालात बहुत •यादा मुश्किल हैं और आप उनसे लडऩे में खुद को असमर्थ महसूस कर रहे हैं तो आपको हमेशा यही सोचना चाहिए, 'हां! जीवन की सच्चाई यही है और मुझे इसी हालात में जीना होगा। ऐसी मुश्किलों को दूर करने का एक ही रास्ता है कि आप उनके आगे समर्पण कर दें। समर्पण का अर्थ यह है कि जिन मुश्किलों को आप संभाल नहीं पा रहे, उन्हें ईश्वर को समर्पित कर दें। ऐसा करते हुए आपके मन में यही  भावना होनी चाहिए कि 'हे! प्रभु मैं बहुत दुखी हूं। मुश्किलों का यह बोझ मुझसे उठाया नहीं जा रहा। इसलिए आप ही मेरा खयाल रखें और मुझे इसकी जि़म्मेदारियों से मुक्त करें। किसी मुश्किल हालात में एक बार यह तरी$का आज़मा कर देखें। इसके बाद आप स्वयं को पूर्णत: तनावमुक्त महसूस करेंगे।
स्वयं पर न हो संदेह
आपको हमेशा यह मानकर चलना चाहिए कि इस ब्रह्मांड में कोई ऐसी अदृश्य और सर्वोच्च शक्ति है, जो आपका ध्यान रखेगी। आप कभी सोच भी नहीं सकते कि ईश्वर आपको कितना चाहता है। आपको यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि मैं भी उसी सर्वोच्च दिव्य शक्ति का अंश हूं। भगवान श्रीकृष्ण भगवत गीता में कहते हैं, 'जब किसी व्यक्ति में स्वयं के प्रति संदेह उत्पन्न हो जाता है तो वह अपने आप को खो देता है। इसलिए यह बहुत ज़रूरी है कि आप महसूस करे कि आप पर ईश्वर की सबसे अधिक कृपा है। पवित्रता, स्पष्टता और संतोष ही जीवन में प्रसन्नता का सूत्र है। यदि मन में संतोष नहीं है और लगातार आप शिकायत करते हैं तो आपके पास केवल नकारात्मक ऊर्जा की ही वृद्धि होगी। इसलिए अपने जीवन में हर मुश्किल स्थिति से बाहर निकलने की कोशिश करें और  जि़म्मेदारी लें, यही महत्वपूर्ण है। हमेशा खुश रहने की आदत डाल लें। रोज़मर्रा के मामूली कार्य भी पूरे उत्साह के साथ करें।  
प्रार्थना की शक्ति
यदि आपके पास विश्वास है तो आपके लिए कोई भी स्थिति कठिन नहीं होगी। सबसे ख़ास बात यह है कि प्रार्थना जीवन को सुधारने का लिए सबसे प्रमुख हथियार है। जब स्थितियां आपके बस के बाहर हों तो आप पूरी गहराई से प्रार्थना करें। वह आप पर अद्भुत प्रभाव डालेगी। जब कोई व्यक्ति स्वयं को असहाय या ईश्वर के प्रति अति कृतज्ञ महसूस करता है तो प्रार्थना उसकी आत्मा की सच्ची पुकार बन जाती है। इसलिए लोगों को प्रार्थना का फल ज़रूर मिलता है। इसकी प्रक्रिया ही से व्यक्ति में सकारात्मक बदलाव की शुरुआत हो जाती है। प्रार्थना के दौरान आप यह महसूस करते हैं कि आप अकेले नहीं हैं। एक अदृश्य हाथ सहयोग के लिए हमेशा आपके साथ है। प्रार्थना भगवान से सहायता की मांग है। यह आपको शक्तिशाली बनाती है क्योंकि ईश्वर हमेशा कमज़ोर की मदद करता है। इसीलिए उसे दीनबंधु कहा जाता है। आज ही मन में यह विचार सुदृढ़ कीजिए कि चाहे कुछ भी हो जाए, अपने इरादे पर मैं हमेशा अडिग रहूंगा। मेरे पास दिव्य सुरक्षा कवच है। जो कुछ हुआ उसे भूलकर आगे बढ़े, डरें नहीं। जीवन की संपूर्णता को खोजें। कुछ अच्छे और कुछ बुरे अनुभवों का नाम ही है जीवन। इन सबको दरकिनार करके पूर्ण आत्मविश्वास के साथ  मुसकुराते हुए आगे बढें।
 

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