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जानें-क्यों जैन धर्म के अनुयायी मनाते हैं दिवाली और क्या है इसका महत्व

इतिहासकारों की मानें तो जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी को मोक्ष मिला था। साथ ही इस दिन चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी के प्रथम शिष्य गौतम गणधर को भी ज्ञान प्राप्त हुआ था। भगवान महावीर का जन्म 599 वर्ष पूर्व वैशाली गणराज्य के क्षत्रिय परिवार हुआ था।

By Pravin KumarEdited By: Published: Sat, 23 Oct 2021 05:12 PM (IST)Updated: Sat, 23 Oct 2021 05:12 PM (IST)
जानें-क्यों जैन धर्म के अनुयायी मनाते हैं दिवाली और क्या है इसका महत्व
इतिहासकारों की मानें तो जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी को मोक्ष मिला था।

दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। हर साल कार्तिक महीने में अमावस्या के दिन दिवाली मनाई जाती है। इस साल 4 नवंबर को दिवाली है। यह पर्व एक साथ दुनियाभर में मनाया जाता है। साथ ही सभी धर्मों के लोग भारत में एक साथ दिवाली मनाते हैं। इस दिन घर द्वार को दीपों से जलाया जाता है। दिवाली का शाब्दिक अर्थ दीपों की पंक्ति है। इसके लिए दीपावली के दिन घरों को दीपों से सजाया जाता है। जैन और बौद्ध धर्म के अनुयायी भी दिवाली पर्व मनाते हैं। आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-

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जैन धर्म

इतिहासकारों की मानें तो जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी को मोक्ष मिला था। साथ ही इस दिन चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी के प्रथम शिष्य गौतम गणधर को भी ज्ञान प्राप्त हुआ था। भगवान महावीर का जन्म 599 वर्ष पूर्व वैशाली गणराज्य के क्षत्रिय परिवार हुआ था। इनका जन्म तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी के निर्वाण के बाद हुआ था। महज 30 वर्ष की आयु में महावीर ने गृह त्याग कर सन्यास धारण कर लिया था।

इसके बाद 12 वर्षों तक कठिन तपस्या के पश्चात उन्हें केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। केवल ज्ञान उस ज्ञान को कहा जाता है, जिसमें जैन धर्म के अनुयायियों को विशुद्धतम ज्ञान प्राप्त होता है। इसमें चार तरह के कर्मों पर विजय पाना होता है। इनमें मोहनीय, ज्ञानावरण, दर्शनवरण तथा अंतराय के कर्मों पर जीतने के बाद ज्ञान होता है। 527 ईशा पूर्व में कार्तिक महीने की अमावस्या के दिन बिहार के नालंदा जिले स्थित पावापुरी में मोक्ष प्राप्त हुआ था। इसके लिए जैन धर्म के अनुयायी निर्वाण दिवस के रूप में दिवाली मनाते हैं।

सिक्ख धर्म

सिक्ख धर्म के लोग भी दिवाली मनाते हैं। इतिहासकारों की मानें दिवाली के दिन ही साल 1577 में अमृतसर में स्वर्ण मंदिर का शिलान्यास हुआ था। वहीं, साल 1619 में सिक्खों के छठे गुरु हरगोविंद सिंह जो कारावास को जेल से रिहा किया गया था। इसके लिए सिक्ख धर्म के अनुयायियों के लिए भी दिवाली का दिन खास है।


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