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    Kabir Jayanti 2020: कबीर के जन्मदिवस पर उनके इन विचारों का आदान-प्रदान कर बनाएं दिन को खास

    By Priyanka SinghEdited By:
    Updated: Fri, 05 Jun 2020 08:00 AM (IST)

    Kabir Jayanti 2020 कबीर के विचार उनके व्यक्तित्व के बारे में बताने के लिए काफी हैं। सभी प्राणियों को समान समझने वाले कबीर के जन्मदिवस पर उनके विचारों को ऐसे करें प्रसारित।

    Kabir Jayanti 2020: कबीर के जन्मदिवस पर उनके इन विचारों का आदान-प्रदान कर बनाएं दिन को खास

    संत कबीर आत्मवादी संत थे। उन्होंने सिर्फ किताबें पढ़ने नहीं, बल्कि व्यावहारिक ज्ञान अर्जन पर अधिक जोर दिया। उन्होंने आध्यात्म का उपयोग मानव-व्यवहार को उत्तम बनाने और समाज की विसंगतियों के अंधेरों को दूर करने के लिए किया। संत कबीर ने धर्म में बुरी तरह घुल चुकी विसंगतियों पर प्रहार करके लोगों को सजग किया। उन्होंने सभी धर्मों की बुराइयों को उजागर किया, जिसमें अंधविश्वासों के प्रति लोगों को चेताया। कबीर के पास निर्मल हृदय और ईश्वर पर विश्वास था, तभी तो उन्होंने बिना भय के समाज के अंधेरों पर प्रकाश डाला और लोगों को जागरूक किया।

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    Kabir Jayanti Wishes in Hindi

    1. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय ।

    ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ।।

    अर्थ:- बड़ी बड़ी किताबे पढ़कर संसार में कितने ही लोग  मृत्यु के द्वार पहुंच गए, पर सभी विद्वान न हो सके। कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले। अर्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा।

    2. दोस पराए देखि करि, चला हसन्‍त हसन्‍त,

    अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत!!

    अर्थ:- यह मनुष्‍य का स्‍वभाव है कि जब वहदूसरों के दोष देखकर हंसता है, तब उसे अपने दोष याद नहीं आते जिनका न आदि है न अंत! 

    3. पंडित और मसालची, दोनों सूझे नाहिं।

    औरन को कर चांदना, आप अंधेरे माहिं।।

    अर्थ:- पंडित और मशाल वाले दोनों को ही परमात्मा विषयक वास्तविक ज्ञान नहीं है। दूसरों को उपदेश देते फिरते हैं और स्वयं अज्ञान के अंधकार में डूबे हुए हैं।

    4. बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,

    जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।

    अर्थ: जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला। जब मैंने अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है।

    5. अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,

    अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।

    अर्थ: न तो अधिक बोलना अच्छा है, न ही जरूरत से ज्यादा चुप रहना ही ठीक है। जैसे बहुत अधिक वर्षा भी अच्छी नहीं और बहुत अधिक धूप भी अच्छी नहीं है।

    6. कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर!

    ना काहू से दोस्‍ती, न काहू से बैर!!

    अर्थ:- इस संसार में आकर कबीर अपने जीवन में बस यही चाहते हैं,

    कि सबका भला हो और संसार में यदि किसी से दोस्‍ती नहीं तो दुश्‍मनी भी न हो!

    7. तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,

    कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।

    अर्थ: कबीर कहते हैं कि एक छोटे से तिनके की भी कभी निंदा न करो जो तुम्हारे पांवों के नीचे दब जाता है। यदि कभी वह तिनका उड़कर आँख में आ गिरे तो कितनी गहरी पीड़ा होती है !