बिन सोचे ही चला देते हैं शब्दों की तलवार, अंतरराष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस (16 नवंबर) पर समझें इसका महत्व
हम शब्दों का उपयोग तो लगभग हर समय करते हैं लेकिन मनुष्यों की इस सबसे बड़ी शक्ति का मौलिक उपयोग कम ही लोग करते हैं। छोटी सी घटना पर बिना सोचे-समझे तत्काल प्रतिक्रिया दे देते हैं यह कम होती सहिष्णुता का परिणाम है। अंतरराष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस पर ऐसा ही अनुभव

सत्या सरन।
शब्द कितने जादुई होते हैं। शब्द मुझे बेहद दिलचस्प, रहस्यमयी और एक अजब सी भावनाओं से भर देते हैं। विज्ञान की भाषा में कहें तो शब्द एक प्रकार के बेस मेटल(अपधातु) की तरह होते हैं और वे वैसे ही बन जाते हैं जैसा हम उन्हें बनाना चाहते हैं। हम लगभग हर वक्त शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, हां, लेकिन सोचें तो क्या हम हमेशा बोलने से पहले अपने शब्दों पर गौर करते हैं?
मेरे दिमाग में यह विचार कल आया जब एक लड़का मेरी कार के आगे से लगभग दौड़ते हुए सड़क पार कर रहा था। मैं हड़बड़ाहट में उस पर बरस पड़ी। वह मेरी कार से बचते और एक ट्रक से लगभग तिरछे होकर पार करते हुए उस अजीब स्थिति से बचकर अलग हटा। मैं उसके लिए वाकई में चिंतित थी, हालांकि मेरे शब्दों से ऐसा कुछ जाहिर नहीं हो रहा था। ‘मरना चाहते हो क्या, बुद्घू!’ अचानक ही मेरे मुंह से यह बात निकल गई। उसने बड़ी मासूमियत से मेरी तरफ देखा और मैं बस यही सोच रही थी कि काश मैंने ऐसा न कहा होता। यह मैंने बस अनायास ही बोल दिया था जबकि ये वो शब्द नहीं थे जिन्हें मैं बोलना चाहती थी, लेकिन जिस नाराजगी से मैंने इन्हें बोल दिया था, वे अब वापस नहीं लिए जा सकते थे।
ऐसा कई बार होता है। हमारे दिमाग में तमाम शब्दों, कहावतों और तंज भरे वाक्यों का भंडार होता है, जो खुले सिक्कों की तरह हमारे दिमाग में इधर-उधर बिखरे रहते हैं। ...और जब भी हम कुछ बोलना चाहते हैं हम उनमें से कुछ शब्दों को चुनते हैं और सामने वाले को कह देते हैं। शब्द वाकई बड़े अजीब होते हैं। इंसान होने के नाते ये हमारी सबसे बड़ी ताकत हैं जिनका हमने अपने तेज दिमाग की मदद से इस्तेमाल करना सीखा है। शब्द आपको खुश, आकर्षित, खुशामद, उत्तेजित, नाराज और शांत कर सकते हैं। कोई व्यक्ति इन शब्दों की मदद से अपनी मर्जी का लगभग हर काम करवा सकता है। आप शब्दों से किसी को भावुक कर सकते हैं, मार सकते हैं, नया जीवन दे सकते हैं, कोई बड़े से बड़ा राज छिपा सकते हैं या उजागर कर सकते हैं।
हालांकि, एक सच्ची मौलिक बात कहना बेहद मुश्किल होता है। हमसे पहले के लोग भी इन्हीं शब्दों का इस्तेमाल करते थे। भले ही उनकी भाषा, जाहिर करने के तरीके और अर्थ थोड़ा अलग हो, लेकिन कुल मिलाकर देखें तो आज भी वे ही शब्द हमारी भावनाओं को व्यक्त करने का तरीका बने हुए हैं। हम अपनी भावनाओं को कुछ अलग तरह से व्यक्त करने की कोशिश तो करते हैं, लेकिन यह काफी मुश्किल और कभी-कभी तो लगभग नामुमकिन हो जाता है। इससे आसान होता है कि हम आदतन पहले से कही जा रही बातों के कुछ गुच्छे बटोर लेते हैं और उनसे अपनी बात कह देते हैं। एक बात यह भी है कि अब हर प्रोफेशन के अपने बने-बनाए शब्द हैं, पत्रकारों, वकीलों की अपनी शब्दावली है तो यहां तक कि अब तो प्रोफेसर्स के भी कुछ चुनिंदा शब्द होते हैं। इनके अलावा सारा दिन नई-नई बातें करने वाले टीवी और रेडियो की दुनिया ने कुछ अनोखे शब्दों की एक पूरी दुनिया बसा दी है। हालांकि दुख की बात यह है कि लोग अब इन्हें सुनना या देखना बंद कर रहे हैं। सहन करने या शांत रहने की क्षमता कम होती जा रही है।
वैसे देखा जाए तो अगर आप शब्दों को यूं ही छोड़ दें तो वे बेहद मजेदार हो जाते हैं। आप कोई भी किताब खोलिए और उसमें शब्दों की खूबसूरत लिखावट को देखिए, उनकी बातों का आनंद लीजिए, शब्दों से आने वाली आवाज सुनिए, उनसे जागने वाली भावनाओं को महसूस करिए, दिमाग को इन शब्दों की दुनिया में गुम होने दीजिए और यकीन मानिए आप एकाएक नई खुशी और संतुष्टि महसूस अवश्य करेंगे। कभी-कभी गाने सुनते हुए मैं यह सोचती हूं कि इनकी सुरीली धुनों में बिना किसी अतिश्योक्ति के कितनी खूबसूरती से शब्दों को पिरोया गया है। एक परफेक्ट गीत तो वही है जिसकी धुन तो आकर्षक हो ही साथ ही जिसके शब्द उस धुन के साथ मिलकर यह एहसास दिलाते हैं कि इससे खूबसूरत और कुछ नहीं हो सकता है!
(लेखिका प्रख्यात पत्रकार हैं)
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