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    Independence Day 2023: आजादी की लड़ाई लड़ने वाले वो वीर, जिनका नाम इतिहास के पन्नों के बीच कहीं छिप गया

    By Ritu ShawEdited By: Ritu Shaw
    Updated: Tue, 08 Aug 2023 12:43 PM (IST)

    Independence Day 2023 हमारा देश बहुत जल्द 77वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है। इस खास अवसर पर अगर आपसे इस आजादी को दिलाने वाले हीरोज के बारे में पूछा जाए तो आपको कितने नाम याद होंगे? शायद कुछ ही नाम जो काफी प्रचलित हैं। लेकिन हम आज उनके बारे में बात करने जा रहे हैं जिनका नाम गुमनाम हो चुका है।

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    गुमनाम हो चुके हैं आजादी दिलाने वाले ये हीरोज

    नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Independence Day 2023: भारत को ब्रिटिश राज से आजाद हुए लगभग 76 साल हो गए हैं। लेकिन आज भी जब अंग्रेजों के जुल्मों की कहानी सुनने को मिलती है, तो रूह कांप उठती है। 200 साल भारत तक भारत पर राज और यहां के लोगों पर अत्याचार करने के बाद आखिरकार 15 अगस्त, 1947 का वह दिन आया, जब भारतवासियों ने स्वतंत्रता का सूरज देखा और आज भारत में सांस लेने का अनुभव किया। लेकिन इस आजादी को पाने के लिए न जाने कितनी ही जानें गईं और अनगिनत लोग इस लड़ाई में शहीद हुए। कुछ के नाम तो हमें मुंह जुबानी याद हैं, लेकिन कुछ ऐसे वीर भी रहे हैं, जिनके बलिदान के बारे में बहुत कम ही लोग जानते हैं। अगर ये न होते, तो शायद भारत वो नहीं होता, जो आज है। इसलिए इस आर्टिकल में उन्हीं के बारे में बात करेंगे, जो इतिहास के पन्नों में कहीं खो गए हैं।

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    आजादी की लड़ाई में बलिदान देकर गुमनाम हो गए ये हीरोज

    तिलका मांझी (1750-1758)

    तिलका मांझी एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और संथाल समुदाय के पहले आदिवासी नेता थे। उन्होंने आदिवासियों को एक सशस्त्र समूह बनाने के लिए संगठित करने का काम किया। आगे चलकर इसी संगठन ने मिलकर अंग्रेजों के शोषण के खिलाफ लड़ाई लड़ने में अहम भूमिका निभाई। हालांकि, साल 1784 में, अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ लिया, जिसके बाद उन्हें घोड़े की पूंछ से बांधकर घसीटते हुए भागलपुर में कलेक्टर के आवास तक लाया गया। यहां उन्हें एक बरगद के पेड़ से लटका दिया गया।

    गंगू मेहतर (1859 में मृत्यु)

    गंगू मेहतर, जिन्हें लोकप्रिय रूप से गंगू बाबा कहा जाता है, वह भी एक भारतीय क्रांतिकारी थे, जिन्होंने सन् 1857 के विद्रोह के दौरान अकेले ही लगभग 150 ब्रिटिश सैनिकों को मार गिराया था। हालांकि, 1878 में, उन्हें ब्रिटिश सैनिकों द्वारा घोड़े से बांधकर घसीटते हुए कानपुर तक ले जाया गया। इसके बाद चुन्नीगंज में उन्हें फांसी दे दी गई।

    तात्या टोपे (1814-1859)

    तात्या टोपे का असली नाम रामचंद्र पांडुरंग टोपे था और वह आजादी की लड़ाई का अहम हिस्सा रहे थे। उन्होंने ब्रिटिश राज के खिलाफ लगभग 150 लड़ाइयां लड़ी। इतना ही नहीं उन्होंने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की भी मदद की, जिसकी वजह से उन्हें ग्वालियर शहर पर अंग्रेजों के कब्ज़े को रोकने में सफलता मिली। अंत में, उन्हें 18 अप्रैल 1859 को शिवपुरी में ब्रिटिश सरकार द्वारा फांसी दे दी गई।

    चाफेकर बंधु (1869-1898)

    चाफेकर बंधु भारत की आजादी के लिए लड़ने वाले वह तीन वीर भाई थे, जिन्होंने पुणे के ब्रिटिश प्लेग कमिश्नर डब्ल्यूसी रैंड की हत्या की। ये हैं दामोदर हरि चाफेकर, बालकृष्ण हरि चाफेकर और वासुदेव हरि चाफेकर। पुणे के ग्राम चिंचवड के प्रसिद्ध कीर्तनकार हरिपंत चाफेकर के घर जन्मे चाफेकर बंधुओं ने लोकमान्य तिलक की प्रेरणा से अपने दोस्तों के साथ मिलकर 1894 में हिंदू धर्म रक्षिणी सभा की स्थापना की। हालांकि, बाद में उन पर कमिश्नर की हत्या का आरोप लगाया गया और दोषी पाए जाने पर उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई।

    कुंवर सिंह (1777-1858)

    सन् 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान कुंवर सिंह सैन्य कमांडर थे। लेकिन अपने देश की मिट्टी का कर्ज चुकाने की खातिर वह बिहार में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लड़ाई के मुख्य आयोजक बने।

    वासुदेव बलवंत फड़के (1845-1883)

    वासुदेव बलवंत फड़के ने 1875 में ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक आंदोलन खड़ा किया। इतना ही नहीं इस समूह ने अपने आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए धन इकट्ठा करने के लिए पैसे वाले यूरोपीय व्यापारियों पर छापे मारे।

    तिरोट सिंग (1802-1835)

    तिरोट सिंग भी उन्हीं नामों में से एक है, जिनके बिना आजादी की गाथा अधूरी है। उन्होंने खासी पहाड़ियों पर कब्ज़ा करने की कोशिश में जुटे ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ लड़ाई लड़ी। हालांकि, पकड़े जाने के बाद उन्हें ढाका की जेल में भेज दिया गया जहां 1835 में उनकी मृत्यु हो गई।

    मंगल पांडे (827-1857)

    मंगल पांडे का नाम आज हर कोई जानता है, लेकिन एक समय था जब ज्यादातर लोग इससे अनजान थे। वे बंगाल सेना में एक सैनिक थे और उन्होंने 1857 में भारतीय स्वतंत्रता की पहली लड़ाई में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हालांकि, उन्हें अपने वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ सैनिकों को उकसाने के लिए उसी साल फांसी दे दी गई थी।

    Pic Credit: Jagran