खूबसूरती ही नहीं खूबियों से भी भरपूर है यह फूल, दिवाली में इससे सजाएं अपने सपनों का घर
त्योहार यानि फूलों की खूबसूरती निहारने का एक और बहाना। ऐसे ही अवसरों में हर जगह साथ निभाता है गेंदे का फूल। कभी पूजा में तो कभी घरों की रंगोली या बंदनवार में क्यों सजाते हैं इसे।
धार्मिक-सामाजिक आयोजनों, उत्सवों या शादी समारोहों पर विभिन्न फलों-फूलों का महत्व है। इन्हीं फूलों में गेंदे के फूल का एक अलग ही स्थान है। चमकीले तेज, केसरिया, पीले, संतरी एवं सफेद रंग के गेंदे के फूल लगभग हर त्योहार पर अपनी मनमोहक खुशबू बिखेरते हैं। चाहे घर-कार्यस्थल हो या वाहन, सभी जगह गेंदे की महक घुली रहती है। बहुत ही मंद, कस्तूरी सी गंध वाले गेंदे के फूल को गुजराती में गलगोटा, मारवाड़ी में हजारी गेंदाफूल, मराठी में झंडू तथा संस्कृत में स्थलपद्मम् के नाम से जाना जाता है।
फायदे का सौदा
16वीं शताब्दी में मैक्सिको में खिला गेंदा धीरे-धीरे कई देशों में खुशबू बिखेरने लगा। दुनियाभर में गेंदे की 50 से ज्यादा प्रजातियां हैं लेकिन भारत में मखमली, जाफरे, हबशी, सुरनाई और हजारा नामक प्रजातियां ज्यादा मशहूर हैं। गेंदा भारतीय फूलों में बहुत मशहूर है, क्योंकि इस फूल की एक खासियत जो इसे सबसे ज्यादा खास बनाती है वह यह कि इस फूल को पूरे साल उगाया जा सकता है।
फूल एक, प्रतीक अनेक
गेंदे के फूल के बारे में कहा जाता है कि यह मनुष्य के अहंकार को कम करता है तथा फूल का केसरिया रंग त्याग और मोह-माया से दूरी को दर्शाता है। इसके अलावा एक ही बीज के सहारे ढेरों कंगूरेदार पत्तियां एक-दूसरे से जुड़ी होने के कारण इस फूल की तुलना एक अच्छे लीडर से की गई है। गेंदे के फूल के बारे में एक बात यह भी कही जाती है कि यह एकमात्र ऐसा फूल है जो एक छोटी-सी पंखुड़ी के सहारे भी उग जाता है तो इस फूल की तुलना शरीर की आत्मा से भी की गई है। जैसे आत्मा कभी नहीं मरती बस शरीर बदलती रहती है। इसके अलावा कहते हैं कि घर के मुख्य द्वार पर गेंदे के फूल के तोरण लगाने से घर में नकारात्मकता नहीं रहती। गेंदे के फूल के बारे में मुख्य बात कही गई है कि मुरझाने या सूखने के बाद भी इसकी धीमी-धीमी गंध फैलती रहती है यानी यह संदेश देता है कि आप भले ही थक या टूट रहे हों पर अपने धैर्य के बल पर अपना परचम फिर से लहरा सकते हैं। ऊर्जा तथा प्रेरणा से भरे इसके नारंगी रंग की महत्ता भी कम नहीं है।
परंपरा का हिस्सा
फूलों से सजावट की परंपरा प्राचीनकाल से ही रही है। जब श्री राम चौदह साल का वनवास काटकर अयोध्या आए तब उनका स्वागत पुष्पवर्षा करके ही किया गया था। इसी तरह भारत में हर त्योहार पर बंदनवार या सजावट व अतिथि का फूलों की माला से स्वागत करने की परंपरा रही है। ऐसा कहते हैं कि फूलों से किसी का स्वागत करना उसके मान-सम्मान को बढ़ाना है।
रेणु जैन