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    Guru Gobind Singh Jayanti 2021: जानें इस दिन को क्यों प्रकाश पर्व के रूप में मनाते हैं और इसका महत्व

    By Priyanka SinghEdited By:
    Updated: Tue, 19 Jan 2021 10:50 AM (IST)

    Guru Gobind Singh Jayanti 2021 गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती इस साल 20 जनवरी को है। इस दिन को सिख समुदाय गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रकाश पर्व के रुप में मनाता है। इस दिन गुरुद्वारों को सजाया जाता है। अरदास भजन कीर्तन के साथ लोग माथा टेकते हैं।

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    हाथ में बाज लिए हुए गुरु गोविंद सिंह जी

    गुरु गोविंद सिंह जी को एक महान स्वतंत्रता सेनानी और कवि भी माना जाता है। इनके त्याग और वीरता की आजतक मिसाल दी जाती है। उनकी सबसे बड़ी विशेषता उनकी बहादुरी थी। गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती इस साल 20 जनवरी को है। इस दिन को सिख समुदाय गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रकाश पर्व के रुप में मनाता है। इस दिन गुरुद्वारों को सजाया जाता है। अरदास, भजन, कीर्तन के साथ लोग माथा टेकते हैं। गुरु गोविंद सिंह जी के लिए यह शब्द इस्तेमाल किए जाते हैं, सवा लाख से एक लड़ांऊ? उनके अनुसार शक्ति और वीरता के संदर्भ में उनका एक सिख सवा लाख लोगों के बराबर है।

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    गुरु गोविंद सिंह जी सिखों के दसवें गुरु थे। इनका जन्म माता गुजरी जी तथा पिता श्री तेगबहादुर जी के घर हुआ था। उस समय गुरु तेगबहादुर जी बंगाल में थे। उन्हीं के वचनानुसार बालक का नाम गोविंद राय रखा गया और सन् 1699 को बैसाखी वाले दिन गुरुजी पंज प्यारों से अमृत छककर गोविंद राय से गुरु गोविंद सिंह जी बन गए।

    खालसा पंथ की स्थापना

    गुरु गोविंद सिंह जी एक महान योद्धा, कवि, भक्त एवं आध्यात्मिक व्यक्तित्व वाले थे। सन् 1699 में 13 अप्रैल बैसाखी के दिन उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की जो सिखों के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है। खालसा यानि खालिस (शुद्ध) जो मन, वचन एवं कर्म से शुद्ध हो और समाज के प्रति पूरी तरह से समर्पण का भाव रखता हो।

    ऐसे हुई पंज प्यारे की स्थापना

    सिख समुदाय की एक सभा में उन्होंने सबके सामने पूछा, कौन अपने सिर का बलिदान देना चाहता है? उसी समय एक स्वयंसेवक इस बात के लिए राजी हो गया और गुरु गोविंद सिंह उसे दूसरे तंबू में ले गए और कुछ देर बाद वापस लौटे एक खून लगी हुई तलवार के साथ। गुरु ने दोबारा उस भीड़ के लोगों से वही सवाल पूछा और उसी प्रकार एक और व्यक्ति राजी हुआ और उनके साथ गया। फिर वह खून से सनी तलवार लेकर बाहर आए, इसी प्रकार जब पांचवा स्वयंसेवक उनके साथ तंबू के भीतर गया तो कुछ देर बाद गुरु गोविंद सिंह सभी जीवित सेवकों के साथ वापस लौटे और उन्होंने उन्हें पंज प्यारे या पहले खालसा का नाम दिया।

    Pic credit- Freepik

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