संगीतायन की अगली कक्षा में जानें श्रृंगार प्रधान राग-सिंदूरा की खूबियां
राग सिंदूरा में निबद्ध गीत-संगीत को सुनकर ही इसके कलात्मक भाव का अनुभव किया जा सकता है। इसको दिन के चौथे प्रहर में गाया जाने वाला राग कहा जाता है। शास्त्रीय संगीत और हिंदी सिनेमा दोनों में ही राग सिंदूरा में कम रचनाओं को गाया गया है।

शशिप्रभा तिवारी, नई दिल्ली।
यह सच है कि सामवेद हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का श्रोत ग्रंथ है। भरतमुनि का नाट्यशास्त्र, शारंगदेव का संगीत रत्नाकर, विद्यारण्य का संगीत सार, दामोदर मिश्र का संगीत दर्पण, विष्णु दिगंबर पलुस्कर का संगीत तत्व दर्शक, विष्णु नारायण का हिंदुस्तानी संगीत पद्धति आदि ग्रंथों से शास्त्रीय संगीत के विभिन्न रागों के बारे में जानकारी मिलती है। भारतीय शास्त्रीय संगीत के रागों के बारे में ग्रंथों के माध्यम से स्वरों के चलन और प्रकृति के बारे में ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन किस स्वर का प्रयोग कहां, कितना और कैसे करना है, यह आप सुनकर या गुरु के सानिध्य में सीख सकते हैं।
बहरहाल, लोकप्रिय हिंदी सिनेमा के गीत भी राग के चलन और प्रकृति को समझने में मददगार साबित होते हैं। हिंदी सिनेमा में प्रचलित राग यमन, भैरवी, पहाड़ी में बहुत से गीतों को कलाकारों ने गाया है। शास्त्रीय संगीत और हिंदी सिनेमा दोनों में ही राग सिंदूरा में कम रचनाओं को गाया गया है।
राग सिंदूरा को सैंधवी भी कहा जाता है। राग सिंदूरा काफी थाट का राग है। यह श्रृंगार प्रधान राग है। यह दिन के चौथे प्रहर का राग है। इस राग को गाते समय आरोह में गांधार और निषाद स्वर वर्जित हैं। अवरोह में सभी सात स्वर के साथ कोमल निषाद का प्रयोग इसे खास बना देता है। उत्तरांग प्रधान राग सिंदूरा औड़व संपूर्ण जाति का राग है। इस राग का वादी स्वर षडज़ और संवादी स्वर पंचम है।
गायक के एल सहगल ने 1935 में बनी फिल्म 'देवदासÓ में गीत 'बलमा आय बसो मोर तनमनÓ गाया था। यह राग सिंदूरा पर आधारित है। फिल्म 'सुजाताÓ का मशहूर गीत 'जलते हैं जिसके लिएÓ भी इस राग पर आधारित है। इसे उस जमाने के मशहूर गायक तलत महमूद ने गाया था। इनके अलावा, कई होली गीत इस राग पर आधारित हैं। एक गीत के बोल हैं-'कौन तरह से तुम खेलत होरीÓ, 'आज हरि खेलत होरीÓ, 'बाजत ताल मृदंगÓ। फागुन के महीने में ब्रज में लोग आमतौर पर इन होली गीतों को गाते मिल जाते हैं। वहां ये गीत घर-घर में बहुत लोकप्रिय हैं।
वैसे यूट्यूब में भी पंडित डी वी पलुस्कर का चतुरंग, पंडित रवि शंकर और पंडित निखिल बनर्जी का सितार पर बजाया गया राग सिंदूरा को लोगों ने खूब पसंद किया है। यहां चतुरंग के बारे में बताना उचित होगा कि चतुरंग को पलुस्कर जी चतुरंगिनी सेना मानते थे। इसमें चार तत्व-काव्य, सरगम, तराने और संस्कृत या पर्शियन बोल शामिल होते हैं। इनके अलावा, पंडित उल्हास कशालकर की रिकार्डिंग भी इस माध्यम पर उपलब्ध है। इसे भी सुनकर राग सिंदूरा का आनंद लिया जा सकता है।
भारतीय कलाओं की विशेषता है कि ये हमारे व्यक्तित्व को पूर्णता प्रदान करतीं हैं और अधिक सजक, उत्सुक और संवेदनशील बनाती हैं। हमें स्वतंत्र इकाई होने का अहसास करवाती हैं और अपनी मंजिल और राह खुद चुनने की प्रेरणा देती हैं। वास्तव में, कला हमारे आत्म विस्तार को नया आयाम देता है।
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