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Raja Ravi Varma: भारतीय कला इतिहास के सबसे महान चित्रकार थे राजा रवि वर्मा, जिन्होंने देवी देवताओं को घर-घर पहुंचाया

Raja Ravi Varma राजा रवि वर्मा ने भारतीय साहित्य संस्कृति महाभारत रामायण की पौराणिक कथाओं और उनके पात्रों को जीवंत करने का काम किया। उनकी कला में भारतीय परंपरा और यूरोपीय तकनीक का एक बेहतरीन और उत्कृष्ट सम्मिश्रण देखने को मिलता है।

By Ruhee ParvezEdited By: Published: Fri, 29 Apr 2022 12:31 PM (IST)Updated: Fri, 29 Apr 2022 12:31 PM (IST)
Raja Ravi Varma: भारतीय कला इतिहास के सबसे महान चित्रकार थे राजा रवि वर्मा, जिन्होंने देवी देवताओं को घर-घर पहुंचाया
Raja Ravi Varma: भारतीय कला इतिहास के सबसे महान चित्रकार थे राजा रवि वर्मा

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Raja Ravi Varma: भारतीय कला के इतिहास के सबसे महान चित्रकार और कलाकार राजा रवि वर्मा की आज जयंती है। उनकी चित्रकलाओं ने न सिर्फ अपने समय के सभी राजाओं के दरबार को सुशोभित किया बल्कि उनके द्वारा बनाई गईं भगवानों की पौराणिक कथाओं की पेंटिंग हर घर, हर मंदिर में भी पहुंचीं।

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राजा रवि वर्मा का जन्म 29 अप्रैल 1848 को तिरुवनंतपुरम के किलिमानूर पैलेस में हुआ था। उनके प्रथम गुरु थे उनके चाचा राजराजा वर्मा। उन दिनों चित्रकारी सीख रहे छात्रों को शुरुआती पाठ के लिए समतल ज़मीन और चॉक दी जाती थी। कुछ समय इस पर अभ्यास करने के बाद उन्हें कागज और पेंसिल पर चित्र बनाने की अनुमति मिलती थी।

तिरुवनंतपुरम में रहकर चित्रकला सीखी

उन समय में आज की तरह बाजारों में चित्रकारी के लिए रंग नहीं मिलते थे और चित्रकारों को पौधों और फूलों से रंग तैयार करने पड़ते थे। पारंपरिक तरीके से प्रशिक्षण लेने वाले बाल कलाकार रवि वर्मा 1862 में अपने चाचा राजराजा वर्मा के साथ आयिल्यम तिरुनाल महाराजा से मिलने तिरुवनंतपुरम आए। महाराजा ने उन्हें तिरुवनंतपुरम में रहकर चित्रकला सीखने की सलाह दी। इस तरह रवि वर्मा पैलेस में रहकर इटालियल पुनर्जागरण शैली में चित्रकला सीखने लगे और साथ ही दरबार में रहने वाले तमिलनाडु के कलाकारों से उनकी कला शैली और तकनीक के बारे में सीखा।

डच चित्रकार से सीखी पश्चिमी चित्रकला

रवि वर्मा ने पश्चिमी शैली की चित्रकला और ऑयल पेंटिंग तकनीक थियोडोर जेंसन से सीखी, जो 1868 में त्रिवेंद्रम पैलेस आने वाले डच चित्रकार थे। रवि वर्मा ने महाराजा और राज परिवार के सदस्यों के चित्र नई शैली में बनाए। उनकी पेंटिंग “मुल्ल्प्पू चूडिया नायर स्त्री” से वे मशहूर हुए, जिससे उन्हें 1873 में चेन्नई में आयोजित चित्र प्रदर्शनी में प्रथम पुरस्कार भी मिला। इस पेंटिंग को ऑस्ट्रिया के विएना में आयोजित एक अन्य प्रदर्शनी में पुरस्कृत भी किया गया। 1876 में उनकी पेंटिंग 'शकुंतला' को चेन्नई में आयोजित एक प्रदर्शनी में पुरस्कृत किया गया।

130 साल बाद बिकी पेंटिंग

फादर ऑफ मॉडर्न इंडियन आर्ट के नाम से जाने जाने वाले महान राजा रवि वर्मा की एक पेंटिंग हाल ही में 130 से अधिक वर्षों के बाद नीलाम हुई। उनकी प्रतिष्ठित पेंटिंग में से एक यह पेंटिंग 21.16 करोड़ रुपये में बेची गई। 'द्रौपदी वस्त्रहरण' नाम की इस उत्कृष्ट पेंटिंग में दुशासन को महाभारत में महल में कौरवों और पांडवों से घिरी द्रौपदी की साड़ी उतारने के प्रयास को दिखाया गया है। पेंटिंग की बोली 15 करोड़ रुपये से 20 करोड़ रुपये के बीच आंकी गई थी।


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