प्रिय पुरुष जी, जब जब करें कुकिंग इन बातों का रखें खयाल, खाना भी बेहतर बनेगा, बेटर हाफ भी नहीं होंगी नाराज
पुरुषों के यदा-कदा शौकिया किचन में घुसने पर खाना तो लजीज बन जाता है पर बहुत सारी चीजें ऐसी हो जाती हैं जो पत्नियों के लिए सिरदर्द बन जाती हैं। तो आइए ...और पढ़ें

नई दिल्ली, अमित शर्मा। कहते हैं दिल का रास्ता, पेट से होकर जाता है। इस कहने पर कोई साइंटिफिक टिप्पणी तो नहीं, पर साफ है कि जायके की बात हो रही है। अच्छा खिलाइए और सामने वाले को अपना मुरीद बनाइए। पर बार-बार ये बहस छिड़ी रहती है कि क्या रोजमर्रा की जिंदगी में खाना बनाना सिर्फ महिलाओं की जिम्मेदारी है। एक सुर में महिलाओं का जवाब आएगा, 'नहीं, बिलकुल नहीं।' पुरुषों का भी जवाब होगा, 'जी नहीं। समय-समय पर हम दस्तरखान का दारोमदार निभा रहे हैं।' अच्छी बात है। पर, लेकिन, किन्तु, परन्तु। पुरुषों के यदा-कदा शौकिया किचन में घुसने पर खाना तो लजीज बन जाता है, पर बहुत सी चीजें ऐसी हो जाती हैं, जो न हों तो बेटर हाफ के चेहरे पर मुस्कान बनी रहेगी। चलिए उन्हीं पांच चीजों को डीकोड करते हैं। आप इनका खयाल रखें, आपकी बेगम आपका खयाल रखेंगी।
भिंडी बाजार न बना दें किचन को
अकसर ये देखने में आया है कि हफ्ते में एक बार या दो बार किचन में घुसकर अपनी पाक कला से दिल के दरवाजे खोलने वाले पुरुष पूरा किचन फैला देते हैं। मसालदान में हल्दी की चम्मच से नमक डाल दिया जाता है तो जीरा और राई एक ही डब्बे में कॉकटेल हो जाते हैं। अगर बाद में घरवाली की डांट से बचना है, तो सिस्टेमेटिक हो जाइए। जो चीज जहां से लें वहीं रखें, तरीके से, सलीके से।
तेल का करें किफायत से इस्तेमाल
प्राय: महिलाओं की ये शिकायत रहती है कि उनके पति जब शौकिया किचन में कब्जा करते हैं, खाना तो अच्छा बनाते हैं, लेकिन घी, तेल, मक्खन का कबाड़ा कर देते हैं। भर-भर कर डालते हैं जो सेहत के लिए भी हानिकारक है और घर के बजट के लिए भी। साथ ही ये शिकायत भी आती है कि सब्जी महिलाएं काट कर दे दें। प्रिय पुरुषों, मैदान संभाला है तो पूरा स्वयं फतह करें। तरकारी, धनिया खुद ही काटिए, आउटसोर्सिंग क्यों?
कचरा यहां वहां न फैलाएं
कुछ पुरुष ऊपर लिखी लाइन पर एतराज जताएंगे। कहेंगे कि हम तो सब्जी खुद ही काटते हैं। बा मुलायजा होशियार। हमारे दरबार में सब काम आत्मनिर्भर हैं। तो बरखुरदार, जरा किचन में नजर घुमा कर देखिए, उत्तरी कोने पर प्याज के छिलके हैं.. दक्षिणी कोने में तेल बिखरा है। अगर ऐसा नहीं है तो आप धन्य हैं। और ऐसा है तो आपके जायके के स्वाद से ज्यादा आपकी श्रीमती जी को किचन समेटने की चिंता रहेगी।
जरूरत से ज्यादा न बनाएं
अक्सर पुरुषों को भर भरकर बनाने की आदत है। मैगी से लेकर बिरयानी तक, जो बनाएंगे, थोक के हिसाब से। पत्नी के लाख इनकार के बाद भी चार के परिवार में इतना भोजन बनेगा कि 8 खा जाएं। तर्क ये कि सुबह भी तो खाएंगे। चलिए अच्छा है, लेकिन तभी तक जब वेस्ट न जाए।
हाथ न जलाएं, अंगूठा न कटाएं
एक जरूरी सूचना। वैधानिक चेतावनी। पति हित में जारी, पत्नी विभाग की ओर से। बराय मेहरबानी, किचन में जौहर दिखाते समय अपना हाथ बचा कर रखें। कभी गर्म तवे पर तो कभी चाकू चलाते समय यह मुंह से चीख निकलवा ही देता है। फिर छुपाते भी फिरते हो। बेहतर है, संभल के किचन किंग बनें। सावधानी हटी, दुर्घटना घटी।
चलते चलते एक शेर, व्हाटसअप यूनिवर्सिटी से साभार...
हमारी जोड़ी कुछ ऐसी जम जाए,
मैं मटर तो तू पनीर बन जाए,
मैं चटनी तो तू समोसा बन जाए।
Pic credit- freepik

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