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    हिंदी फिल्म संगीत के बदलावों व शास्त्री जी की मृत्यु की पड़ताल पर पुस्तक समीक्षा

    By Aarti TiwariEdited By:
    Updated: Sat, 19 Nov 2022 06:46 PM (IST)

    तीन खंड में विभक्त विजय वर्मा की किताव हिंदी फिल्म संगीत के एक अहम लेकिन अधिकांशत उपेक्षित पक्ष की ओर भी ध्यान आकर्षित करती है। तो वहीं विवेक रंजन अग्निहोत्री की यह किताब ‘द ताशकंद फाइल्स’ के लिए किए गए गहन शोध का हिंदी रूपांतरण है।

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    मील के पत्थर व लाल बहादुर शास्त्री

     किताबघर

    हिंदी फिल्म संगीत के बदलावों और विकास का विहंगावलोकन

    भारतीय समाज में हिंदी सिनेमा की मनोहारी भूमिका रही है। हमारे देश में जब से सिनेमा अस्तित्व में आया, उसके बारे में जानने को उत्सुक समाज ने हमेशा ही फिल्मी सितारों, उनके जीवन और सिनेमा निर्माण के विभिन्न पक्षों को अंतरंगता से जानने में दिलचस्पी दिखाई। इसी कारण, सिनेमा के साथ ही उससे संबंधित लेखन, पत्रकारिता और दस्तावेज बनाने का काम शुरू हुआ। ऐतिहासिक तौर पर याद करना चाहें, तो बाबूराव पटेल की प्रतिष्ठित सिने पत्रिका ‘फिल्म इंडिया’ को एक दौर में चाव से पढ़ा जाता था। बाद में बहुत सारा लेखन सिनेमा के विभिन्न विषयों को आधार बनाकर किया जाता रहा। इनमें फिल्म गीतकोश, इनसाइक्लोपीडिया से लेकर महत्वपूर्ण हस्तियों की जीवनियां और संस्मरण विशेष चर्चित रहे। हाल ही में प्रकाशित विजय वर्मा की 'हिंदी फिल्म संगीत का सफर: मील के पत्थर’ इस कैटलाग में एक नया जुड़ाव है। हिंदी फिल्म संगीत को लेकर राजू भारतन, बिश्वनाथ चटर्जी, विश्वास नेरूरकर, अनिरुद्ध भट्टाचार्य, युनूस खान, बालाजी विट्ठल, पवन झा, हरीश भिमाणी, सत्या सरन, भावना सोमाया का लेखन प्रामाणिक माना जाता है। इसी क्रम में बरसों की मेहनत और शोध के साथ बड़े सलीके से विजय वर्मा यह दस्तावेजनुमा किताब लेकर सामने आते हैं। सुरुचिपूर्ण ढंग से लिखा गया और संपादित यह शोधकार्य इस मायने में एक अलग ही मुकाम हासिल करता है कि यहां बहुत सारे ऐसे संदर्भों और फिल्मी कहानियों से परहेज किया गया है, जो गल्प की शक्ल में सिनेमा की दुनिया के बारे में कहे-सुनाए जाते हैं। उन्होंने अपने विषय की प्रस्तावना को गंभीरता से पकड़ते हुए पूरा कालखंड, इतिहाससम्मत दृष्टि से उकेरने की कोशिश की है, जो संगीत के बहाने हिंदी सिने संसार को बदलावों के साथ लक्ष्य करता रहा। यह एक क्रानिकल भी है, जिसको पढ़कर कोई सिने अध्येता और शोधार्थी उन तमाम तथ्यों और ब्यौरों को प्रामाणिक ढंग से एक जगह पढ़ सकता है, जिनको सिलसिलेवार जिल्दबद्ध करने की रचनात्मक पहल जल्दी नहीं हुई है। सिनेमा के अध्ययन के लिए चुनौती और संकट दोनों हैं कि उसकी अपार लोकप्रियता और किस्सागोई को दरकिनार करते हुए हम ऐसा रिकार्ड तैयार कर सकें, जो सिनेमा की दुनिया में संगीत के बहाने हुए ढेरों परिवर्तन, प्रयोगों, नवाचार और इतिहास गढ़ने में प्रखर भूमिका को सुनिश्चित कर सके।

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    तीन खंड में विभक्त यह किताव हिंदी फिल्म संगीत के एक अहम, लेकिन अधिकांशत: उपेक्षित पक्ष की ओर भी ध्यान आकर्षित करती है। सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि संगीत की वैचारिकी को सामाजिक अध्ययन का विषय बनाते हुए विजय वर्मा तर्कों के दायरे में जाते हैं। उदाहरण के तौर पर, पहले खंड में प्रारंभिक हिंदी फिल्म संगीत के परिवेश और प्रवृत्तियों तथा स्टूडियो सिस्टम की चर्चा करने के बाद वे बंगाल, महाराष्ट्र और पंजाब स्कूल की बात करते हैं। पंजाब स्कूल के पहले अध्याय में वे मास्टर गुलाम हैदर, रफीक गजनवी, खुर्शीद अनवर, फिरोज निजामी, रशीद अत्रे और जी.ए. चिश्ती जैसे प्रबुद्ध संगीतकारों की चर्चा करते हैं। आज की पीढ़ी शायद ही इन नामों से परिचित हो। इनका सांगीतिक हस्तक्षेप कितना बड़ा रहा है, यह उनके द्वारा संगीतबद्ध फिल्मों की फेहरिस्त और नवाचारों को देखते हुए समझा जा सकता है। ये वे शुरुआती लोग हैं, जिन्होंने हिंदी फिल्म संगीत का व्याकरण, ज्यामिति और तकनीक सुनिश्चित की, जिसके चलते एनालाग पैटर्न पर बरसों तक संगीत रिकार्ड किया जाता रहा, जब तक भारत में डिजिटल रिकार्डिंग नहीं आई थी। विभिन्न ध्वनियों के इस्तेमाल, बंगाल स्कूल द्वारा आर्केस्ट्रेशन निर्धारण की प्रविधि का ऐतिहासिक पक्ष भी जानने और मनन करने योग्य है। विजय वर्मा एक दक्ष संगीत विश्लेषक की तरह साउंड ट्रैक, रिकार्डिंग, माइक्रोफोन के प्रयोग और गीतों के स्ट्रक्चर पर भी पैनी नजर रखते हैं। इन सबमें लुभाने वाला पक्ष यह है कि वे अपनी पसंद के संगीतकारों और संगीत को लेकर कोई पक्षपात नहीं करते, बल्कि उनके मूल स्वभाव और कामों के हवाले से उस दौर का रचनात्मक परिदृश्य रेखांकित करते हैं। इसी कारण ऐसे संगीतकारों को भी पर्याप्त विमर्श का मौका मिला है, जिन पर लोकप्रिय ढंग का लेखन जल्दी खोजने पर भी सुलभ नहीं होता। ऐसे में हम ज्ञान दत्त, बुलो सी. रानी, शंकर राव व्यास, जमाल सेन और दत्ता कोरगांवकर पर भी वैचारिक लेखन पढ़ सकते हैं।

    पुस्तक में बिखरी उनकी स्थापनाएं विमर्श का नया प्रारूप खड़ा करती हैं। यह देखना भी सुखद है कि पुस्तक के आकल्पन को पाठकीय सुरुचि के अनुरूप बनाने के लिए ऐसे पक्षों को अलग से रेखांकित करते हुए रखा गया है। जैसे, आर.सी. बोराल के लिए यह कथन बहुत कुछ कहता है- ‘बोराल का संगीत, नाट्य संगीत की नाटकीयता, शास्त्रप्रधान गीत के ठेठपने और फिल्म संगीत के नाम पर अक्सर चला दिए जाने वाले सस्ते, भोंड़े सड़कछापपन से अलग, एक भाव, शब्द और मैलोडीप्रधान, सौम्य, संभ्रांत, विशुद्ध भारतीय-बंगाली संरचना था।’ पूरी किताब तर्कों और विचार के गंभीर धरातल पर खड़ी है, जहां से पाश्र्वगायन, कलाकारों, गीतकारों, फिल्मों और प्रचलित शिल्प आदि की सार्थक पड़ताल मूर्त रूप लेती है। एक भरोसेमंद दस्तावेज, जो हिंदी फिल्म संगीत के बदलावों और विकास का विहंगावलोकन करती है।

    हिंदी फिल्म संगीत का सफर: मील के पत्थर

    विजय वर्मा

    फिल्म संगीत/इतिहास

    पहला संस्करण, 2022

    खटाक, अंतरा इन्फोमीडिया प्रा. लि., जयपुर

    मूल्य: 1,500 रुपए

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    मयूरपंख

    शास्त्री जी की मृत्यु की पड़ताल

    ‘द ताशकंद फाइल्स’ और ‘कश्मीर फाइल्स’ फिल्मों से चर्चित फिल्म निर्देशक विवेक रंजन अग्निहोत्री की किताब ‘लाल बहादुर शास्त्री: मृत्यु या हत्या?’ कई ऐसे अनसुलझे प्रश्नों को उठाती है, जिसके तथ्यपरक जवाब आज तक अनुत्तरित रहे हंै। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमयी मृत्यु के बारे में बहुत कम प्रामाणिक लेखन या अभिलेखीकरण उपलब्ध है। ऐसे में अग्निहोत्री पुराने दस्तावेजों, शास्त्री जी के कार्यकाल के अभिलेखों, राजनीतिक पुस्तकों, सूचनाओं, ब्यौरों और अखबारों में प्रकाशित खबरों के आधार पर अपने तर्क प्रस्तुत करते हैं।

    ‘द ताशकंद फाइल्स’ के लिए किए गए गहन शोध का हिंदी रूपांतरण है यह कृति, जिसमें कई चौंकाने वाले प्रश्न उपस्थित हैं- उनके असमय निधन पर कोई पोस्टमार्टम क्यों नहीं किया गया? क्या इस मृत्यु की कभी भी किसी प्रकार की न्यायिक जांच नहीं की गई? निधन की इस दुर्घटना की आधी सदी बीत जाने के बाद भी कोई सच्चाई पूरी तरह से सामने नहीं है। शास्त्री जी की मृत्यु के बहाने उस दौर को नई वैचारिकी से परखने की ईमानदार कोशिश है यह दस्तावेज।

    लाल बहादुर शास्त्री: मृत्यु या हत्या?

    विवेक रंजन अग्निहोत्री

    अनुवाद: विश्वास तिवारी

    कथेतर/दस्तावेज

    पहला संस्करण, 2022

    ब्लूम्सबरी इंडिया, नई दिल्ली

    मूल्य: 499 रुपए