किताबघर व मयूरपंख की अगली किस्त में पढि़ए सदी के महानायक की जीवनगाथा और स्वयं से संवाद की जिरह
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जिस कलाकार पर पुष्पा भारती कलम चला रही हैं वह शख्स अभिनय की दुनिया में आने के पहले साहित्यिक वातावरण के माहौल में पला-बढ़ा है। आको बाको में कुछ ऐसी खिड़कियां खुलती हैं जिनसे हमारे रोजमर्रा के प्रश्नों को समाधान मिलता है।
लेखिका पुष्पा भारती की हिंदी फिल्मों के महानायक अमिताभ बच्चन पर एकाग्र पुस्तक आई है, जिसे उनकी जीवन-गाथा कहा गया है। अमिताभ और लेखिका पुष्पा भारती के संबंध पारिवारिक रहे हैं, जिनमें धर्मवीर भारती और हरिवंश राय बच्चन के दोस्ताने का बड़ा हाथ है। शायद इसीलिए बिना किसी औपचारिकता और फिल्मी पत्रकारिता का कलेवर ओढ़े लेखिका एक ऐसी सहज संवाद अदायगी वाली किताब संयोजित कर पाई हैं, जो किसी भी सफल फिल्म कलाकार के बारे में कर पाना मुश्किल है। फिर वह नायक यदि हर एक वय के दर्शक वर्ग का चहेता कलाकार हो, तो जीवन की पेचीदगियों और सफलताओं के बीच सामंजस्य बिठाकर कोई संतुलित बात कह पाना उल्लेखनीय माना जाएगा। उनके रिश्तों की पारस्परिक सहजता ने विभिन्न मौकों पर उनके लिए गए साक्षात्कारों को एक नया रंग दिया है। शायद इसीलिए जब आप अमिताभ बच्चन के जवाबों को पढ़ते हैं, तो एक टी.वी. इंटरव्यू देखने का भान होता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जिस कलाकार पर पुष्पा भारती कलम चला रही हैं, वह शख्स अभिनय की दुनिया में आने के पहले साहित्यिक वातावरण के माहौल में न सिर्फ पला-बढ़ा है, बल्कि अपने पिता की कविता का युवा दिनों से ही बड़ा प्रशंसक रहा है। बातचीत के क्रम में अमिताभ जिस भाषा और देशज व्यवहार में अपनी बात रखते हैं, वह उनके हिंदी पट्टी के नागरिक होने के अलावा भाषा-प्रेम और शहर से जुड़ाव रखने वाले इंसान का किरदार देती है। लंबे कालखंड में पसरे संवादों, टिप्पणियों और ‘धर्मयुग’ पत्रिका में प्रकाशित लेखों के संचयन से एक ऐसा गुलदस्ता निर्मित किया गया है, जिसकी केंद्रीय उपस्थिति अमिताभ बच्चन का व्यक्तित्व है न कि उनका अभिनेता वाला स्वरूप। यही बात इसके पाठ को दिलचस्प बनाती है। सिर्फ सिनेमा की दुनिया के कारनामे, उपलब्धियां और अभिनय को लेकर नायक की छवि वाले मामले से इतर, पुष्पा भारती चौकन्ने ढंग से वह परिवेश निर्मित करती हैं, जिनमें उनका घर-बार, मां-पिता और संघर्ष के दुर्दिन अपनी उदात्तता में उपस्थित हैं।
सिनेमा से जुड़े लोगों का अध्ययन कई बार स्थापित मान्यताओं को दोहराने का कारण बनता है। अधिकतर भारतीय समाज, जो राजनीति, सिनेमा और क्रिकेट से अपना जुड़ाव देखता है, वह अपने पसंद के अभिनेताओं/अभिनेत्रियों के प्रति खुद के लिए एक मानक बनाकर चलता है, जिसमें एक ही व्यक्ति के बहुस्तरीय और विविधरंगी किरदार हो सकते हैं। ऐसी पुस्तकों का जोखिम इसलिए भी बढ़ जाता है कि यदि प्रशंसक के मन मुताबिक वहां नायक की छवि गढ़ी नहीं गई, तो उसे वह पाठ्य सामग्री आकर्षित नहीं करती। अक्सर वह ऐसे लेखन को संशय की निगाह से देखने लगता है। आसान ढंग से कहा जाए, तो फिल्मी पत्र-पत्रिकाओं में आने वाली टीपों, इंटरव्यूज और सिनेमाई खबरों से बना हुआ ऐसा सुनहरा इंद्रजाल पसरा होता है, जिसमें अधिकांश समाज कुछ किस्सागोई अपनी राहत के लिए तलाश लेता है।
इस चुनौती को बखूबी तोड़ते हुए लेखिका, अमिताभ बच्चन को एक साधारण इंसान के बतर्ज पेश करती हैं, जिसने अपनी मेहनत और जुनून के चलते अपने जीते जी खुद के व्यक्तित्व को एक किंवदंती में बदल दिया है। हालांकि इस चेहरे के पीछे वह सहज मानवीय संस्पर्श मौजूद है, जिसकी कौंध मिलते ही पाठक को सुखद आश्चर्य होता है। किताब के विभिन्न छोटे-बड़े अध्यायों में ऐसे कई सीमांत बनते हैं, जहां अमिताभ ज्यादा गरिमामय, मानवीय और अपने से लगते हैं। इस किताब की खूबियों में यही बात अलग से रेखांकित करने योग्य है, जिससे पाठकीयता में रस बढ़ता है और हम मायानगरी की दुनिया में मौजूद एक शख्स की सहज आवाजाही को उन छोटे शहरों-कस्बों में देख पाते हैं, जहां रह रहे युवाओं के जीवन का सपना अक्सर ऐसे महानायकों की सिनेमाई छवियां होती हैं।
‘फिर वही अपना इलाहाबाद’ में अमिताभ बच्चन का ईमानदार संस्मरण लुभाता है। वे लिखते हैं- ‘अजीब यह है कि एक व्यक्ति चला था, लेकिन ट्रेन से उतरते हैं, एक साथ दो व्यक्ति, चंदर और अमिताभ बच्चन! एक इलाहाबाद के कण-कण में समाया हुआ, लाखों-करोड़ों पाठकों के हृदय में घर कर चुका है, दूसरा, इलाहाबाद से 14-15 वर्ष पहले मां-बाप के साथ दिल्ली चला गया था, फिर कलकत्ता और न जाने कहां-कहां! चंदर और अमिताभ दोनों अपने-अपने नजरिए से कुछ ढूंढ़ने की कोशिश करते हैं, लेकिन एक ही बिंदु पर दोनों इकट्ठे होते हैं, वही इलाहाबाद।’ ऐसी बहुत सारी पंक्तियां खुद से मुखातिब हैं, जिसमें संवेदनशील कवि मन का पता मिलता है। एक ‘मृत्युंजयी शाम की कविता’, ‘पतझर की हवा’, ‘शोहरत के ताने-बाने’, ‘बेला-गुलाब के मंडप तले सात फेरे’, ‘नृप तव तनय होब मैं आई’ जैसे अध्याय और तेजी बच्चन की टीपें असरदार ढंग से पाठकों का मन बेधती हैं। ‘यादों में रचा-बसा इलाहाबाद’ खंड में साक्षात्कार की रवानी आत्मीय और भरोसेमंद लगती है। परिशिष्ट खंड किताब के मूल आस्वाद में कुछ नया नहीं जोड़ता। कुल मिलाकर, पुष्पा भारती उस आत्मीय अमिताभ बच्चन से पाठकों का परिचय कराती हैं, र्जो ंहदी पट्टी के एक सदाबहार गीतकार का बेटा है और अपने शुरुआती सामान्य जीवन की खरोचों को अंतर्मन में सहेजे हुए है।
अमिताभ बच्चन: जीवन गाथा
पुष्पा भारती
जीवनी
पहला संस्करण, 2021
वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली
मूल्य: 500 रुपए
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मयूरपंख
यथार्थ और सम्मोहन की छुपम-छुपाई
(यतीन्द्र मिश्र)
स्वयं से संवाद की स्थिति में एक मनुष्य मन जिन ऊहापोहों से गुजरते हुए अपने रचनात्मक समय को दर्ज करता है, अक्सर उन दस्तावेजों से मिलने वाली रोशनी, सड़कों को उजाला देने वाले लैंपपोस्ट की चमक से अलग होती है। कह सकते हैं कि भीतर के अंधेरों से सहानुभूतिपूर्वक मित्रता करके एक लेखक जब कुछ प्रश्नों को बड़े परिसर में ले जाता है, तो ऐसी खिड़कियां खुलती हैं, जिनसे हमारे रोजमर्रा के प्रश्नों को समाधान मिलता है। चर्चित लेखक दिव्य प्रकाश दुबे ‘आको-बाको’ में यही करते हैं। अपनी नानी के दिए शब्द-सम्मोहन से समाज की नजरें उतारकर...अतीत में जाकर वर्तमान को प्रशस्त भाव से संजोना, छोटी सूक्तियों में गहरे निहितार्थ रचना और सामान्य जीवन के सुख-दुख को तटस्थ भाव से देखना- इन कहानियों को सामान्य से बेहतर और प्रचलित ढर्रे के कथा-विन्यास से अलग बनाती हैं। दिव्य, जिन अनुभवों को कस्बाई मानसिकता की उधेड़बुन से चुनकर महानगर के स्वप्न में ले जाते हैं, वहां ऐसी कई सिसकियां और अनुगूंजें शामिल हैं, जिनका पता ये कहानियां देती हैं।
आको-बाको
दिव्य प्रकाश दुबे
कहानी संग्रह
पहला संस्करण, 2021
हिंदयुग्म, नोएडा
मूल्य: 199 रुपए