Sahir Ludhiyanvi Birthday: एक गजल की वजह से ऐसे अब्दुल हई बन गए साहिर लुधियानवी
शायद ही कोई ऐसा हो जिसने कभी Sahir Ludhiyanvi का नाम न सुना हो। अपनी शायरी और गीतों के लिए मशहूर साहिर लुधियानवी का आज जन्मदिवस है। उनका जन्म 8 मार्च 1921 में पंजाब के लुधियाना में हुआ था। उनका असली नाम अब्दुल हई था लेकिन बाद में उन्हें साहिर लुधियानवी के नाम से शोहरत हासिल हुई। आइए जानते हैं उनके इस नाम के पीछे की कहानी।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। आज का दिन कई मायनों में बेहद खास है। एक तरफ जहां आज महिलाओं को समर्पित महिला दिवस मनाया जा रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ आज ही के दिन भारत की महान शख्सियत में से एक साहिर लुधियानवी (Sahir Ludhiyanvi Birthday) का जन्मदिवस मनाया जा रहा है। 8 मार्च, 1921 में पंजाब के लुधियाना में जन्मे साहिर लुधियानवी देश के मशहूर शायरों में से एक हैं, जिनकी शायरी आज भी उनके होने का अहसास दिलाती है। शायद ही कोई ऐसा होगा, जिसने उनका नाम न सुना हो, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर साहिर का असली नाम क्या था और कैसे वह साहिर लुधियानवी बने। अगर नहीं तो आज उनके जन्मदिन पर हम आपको बताएंगे उनके साहिर लुधियानवी बनने की कहानी-
साहिर लुधियानवी का जन्म 1921 में पंजाब के लुधियाना में हुआ था। उनके पिता चौधरी फजल मोहम्मद थे, जो उस जमाने में सिखेवाल के एक धनी जमींदार हुआ करते थे और गुज्जर समुदाय से थे। वहीं, उनकी मां सरदार बेगम थीं, जिन्होंने साहिर के छह महीने के होने पर ही उनके साथ पति का घर छोड़ दिया था। साहिर जी का असल नाम अब्दुल हई फजल मोहम्मद था। उन्हें बचपन से ही कविता पढ़ने और लिखने दोनों का ही शौक था। पढ़ने और लिखने की अपनी इसी रुचि से उन्हें अपना नया नाम साहिर लुधियानवी मिला था।
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ऐसे अब्दुल बने साहिर लुधियानवी
बात उस दौर की है, जब अब्दुल हई अपना तख़ल्लुस (ऐसा उपनाम जिसे शायर अपने के नाम तौर पर गजलों में इस्तेमाल कर सके) की तलाश कर रहे थे। साल 1937 में जब अब्दुल की परीक्षाएं चल रही थी और तभी अपनी किताब पलटते हुए उनकी नजर मशहूर शायर मोहम्मद इकबाल की एक गजल पर पड़ी। इस गजल के साहिर लफ्ज का इस्तेमाल किया गया था, जिसका अर्थ जादूगर यानी मैजिशियन होता है। इस शब्द ने अब्दुल के दिल को छू लिया और इस तरह उन्होंने अपने के लिए साहिर नाम का चुनाव किया।
वहीं, अपने उपनाम को उन्होंने अपने जन्मस्थान से जोड़कर चुना। चूंकि वह लुधियाना से थे, ऐसे में अपने शहर के नाम खुद से जोड़ते हुए उन्होंने अपने उपनाम के लिए लुधियानवी चुना और इस तरह वह अब्दुल हई से साहिर लुधियानवी बन गए। समय के उन्होंने अपने नाम के अर्थ को सच साबित करते हुए अपने शब्दों से लोगों पर ऐसा जादू किया, जो आज तक कम नहीं हो पाया है।
ऐसे मिला था पहला प्यार
साहिर लुधियानवी साल 1943 में लुधियाना छोड़कर लाहौर चले गए और वहां के दयाल सिंह कॉलेज में पढ़ाई करने लगे। यही वो जगह थी, जहां से उनके अंदर शायरी लिखने का हुनर निखर के आया था और यहीं पर उनकी मुलाकात अपने पहले प्यार और मशहूर पंजाबी लेखक और साहित्यकार अमृता प्रीतम से हुई। हालांकि, धर्म अलग होने की वजह से अमृता के पिता को इस रिश्ते से ऐतराज था, जिसकी वजह से साहिर को कॉलेज से भी निकाल दिया गया था।
इस वजह से छोड़ना पड़ा पाकिस्तान
लाहौर में भी रहते हुए उन्होंने साल 1949 में, एक क्रांतिकारी नज्म 'आवाज-ए-आदम' (द वॉयस ऑफ मैन) लिखी। हालांकि, इस नज्म के प्रकाशित होने के बाद उन्हें खुफिया एजेंसियों ने धमकी मिलने लगी, जिसके बाद उन्हें मजबूर होकर पाकिस्तान छोड़ना पड़ा और वह मजबूर होकर वह भारत आ गए और फिर कभी वापस नहीं लौटे। भारत में बसने के बाद वह फिल्मी गानों को लिखने लगे।
हिंदी सिनेमा में अहम योगदान
साहिर के कुछ मशहूर गानों में ‘साथी हाथ बढ़ाना’,‘औरत ने जन्म दिया मर्दों को’,‘मैं पल दो पल का शायर हूं’ और ‘ईश्वर अल्लाह तेरे नाम’ आदि शामिल हैं। इतना ही नहीं बेहद कम लोग ही यह जानते होंगे कि साहिर देश के पहले ऐसे गीतकार थे, जिनके गीतों के आधार पर संगीतकारों ने धुन बनाई। बॉलीवुड में यह चलन शुरू करने वाले साहिर ही थे। इससे पहले लोग पहले धुन बनाते थे और फिर उसके आधार पर गीत लिखे जाते थे। हिंदी सिनेमा के उनके अहम योगदार के लिए उन्हें पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया। 25 अक्टूबर, 1980 को मुंबई में उनका निधन हो गया।
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