Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Oppenheimer's Death Anniversary: 'परमाणु युग के जनक' कहलाने वाले Oppenheimer ने क्यों किया एटम बम का विरोध?

    Updated: Tue, 18 Feb 2025 09:52 AM (IST)

    जे. रॉबर्ट ओपेनहाइमर परमाणु बम के जनक एक प्रतिभाशाली फिजिसिस्ट और दार्शनिक थे। उन्होंने मैनहट्टन प्रोजेक्ट का नेतृत्व किया जिसने पहला परमाणु बम बनाया। संस्कृत और भगवद्गीता से प्रभावित ओपेनहाइमर ने परमाणु परीक्षण के दौरान गीता का श्लोक पढ़ा। उनका जीवन विज्ञान नैतिकता और त्रासदी का मिश्रण था। उनकी पुण्यतिथि (Oppenheimer Death Anniversary) पर आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ बातें।

    Hero Image
    18 फरवरी 1967 को न्यू जर्सी में हुआ था J. Robert Oppenheimer का निधन (Picture Courtesy: Instagram)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Oppenheimer Death Anniversary: जे. रॉबर्ट ओपेनहाइमर, जिन्हें "परमाणु बम के जनक" के रूप में जाना जाता है, एक महान अमेरिकी फिजिसिस्ट थे। उनका निधन 18 फरवरी 1967 को न्यू जर्सी में थ्रोट कैंसर की वजह से हुआ था। उनका जीवन विज्ञान, दर्शन और मानवीय संवेदनाओं का अद्भुत संगम था।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    ओपेनहाइमर ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान मैनहट्टन प्रोजेक्ट का नेतृत्व किया, जिसके तहत पहला परमाणु बम विकसित किया गया। इस परियोजना ने न केवल विज्ञान के क्षेत्र में एक नए युग की शुरुआत की, बल्कि मानवता के लिए गंभीर नैतिक प्रश्न भी खड़े किए।

    (Picture Courtesy: Instagram)

    ऐसा था शुरुआती जीवन

    ओपेनहाइमर का जन्म 22 अप्रैल 1904 को न्यूयॉर्क शहर में हुआ था। उन्होंने हार्वर्ड विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि हासिल की और बाद में यूरोप में कैम्ब्रिज और गॉटिंगेन विश्वविद्यालयों में आगे की शिक्षा ली। उनकी बौद्धिक क्षमता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण ने उन्हें फिजिक्स के क्षेत्र में एक अहम व्यक्तित्व बना दिया।

    यह भी पढ़ें: 'मैं बन गया हूं मृत्यु', परमाणु बम बनाने वाले विज्ञानी ओपेनहाइमर ने ली गीता से सीख; खोज को बताया था विनाशकारी

    मैनहट्टन प्रोजेक्ट के निदेशक बने

    साल 1942 में, उन्हें मैनहट्टन प्रोजेक्ट का निदेशक नियुक्त किया गया, जिसका उद्देश्य परमाणु बम का निर्माण करना था। 16 जुलाई 1945 को न्यू मैक्सिको में हुए पहले परमाणु परीक्षण (ट्रिनिटी टेस्ट) के दौरान ओपेनहाइमर ने भगवद्गीता के एक श्लोक का उच्चारण किया: "कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः" (मैं काल हूं, संसारों का संहारक हूं)। यह श्लोक उनकी गहरी दार्शनिक समझ और परमाणु शक्ति के प्रति उनकी जटिल भावनाओं को दर्शाता है।

    भगवद्गीता से थे प्रभावित

    ओपेनहाइमर का जीवन केवल विज्ञान तक सीमित नहीं था। वे एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे और छह भाषाओं के जानकार थे। उन्होंने संस्कृत का गहन अध्ययन किया और भगवद्गीता से गहराई से प्रभावित थे। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले में उन्होंने संस्कृत के प्रोफेसर आर्थर डब्ल्यू राइडर से संस्कृत सीखी। राइडर ने कालिदास और पंचतंत्र जैसे भारतीय ग्रंथों का अंग्रेजी में अनुवाद किया था, जिससे ओपेनहाइमर को भारतीय दर्शन और साहित्य की गहरी समझ मिली।

    प्रमाणु हथियारों का किया विरोध

    हालांकि, ओपेनहाइमर का जीवन त्रासदी से भरा रहा। परमाणु बम के निर्माण के बाद, उन्होंने इसके विनाशकारी परिणामों को देखा और परमाणु हथियारों के प्रसार के खिलाफ आवाज उठाई। 1954 में, मैकार्थी युग के दौरान, उन्हें राजनीतिक कारणों से सुरक्षा मंजूरी से वंचित कर दिया गया, जिससे उनका वैज्ञानिक करियर प्रभावित हुआ। इसके बावजूद, उन्होंने विज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में अपना योगदान जारी रखा।

    विज्ञान और दर्शन की यात्रा

    ओपेनहाइमर की जीवनी, "अमेरिकन प्रोमेथियस: द ट्रायम्फ एंड ट्रेजडी ऑफ जे. रॉबर्ट ओपेनहाइमर" (काई बर्ड और मार्टिन जे. शेरविन द्वारा लिखित), उनके जीवन के उतार-चढ़ाव को विस्तार से बताती है। उनकी विरासत आज भी विज्ञान, दर्शन और नैतिकता के बीच संतुलन बनाने की चुनौती को  दर्शाती है। ओपेनहाइमर ने मानवता को एक ऐसी शक्ति दी, जिसका उपयोग और दुरुपयोग दोनों संभव है। उनका जीवन हमें यह सीख देता है कि विज्ञान और तकनीक का इस्तेमाल सावधानी और जिम्मेदारी से किया जाना चाहिए।

    यह भी पढ़ें: क्रिस्टोफर नोलन को किस बात ने किया फिल्म बनाने के लिए प्रेरित और किलियन कैसे बने 'ओपेनहाइमर'?