पैर से थाली सरकाकर पति को खाना परोसती है नई दुल्हन, थारू जनजाति के लिए बेहद खास है यह रस्म
भारत विविधताओं से भरा देश है जहां हर राज्य गांव और समुदाय की अपनी-अपनी संस्कृति और परंपराएं हैं। कुछ परंपराएं हमें गौरव से भर देती हैं तो कुछ ऐसी भी होती हैं जिन्हें जानकर हम चौंक उठते हैं। ऐसी ही एक अनोखी परंपरा देखने को मिलती है थारू जनजाति में जहां एक नई दुल्हन अपने पति को खाना हाथ से नहीं बल्कि पैर से परोसती है (Tharu Tribe Wedding Ritual)।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। सोचिए, कोई आपके सामने खाने की थाली लाकर रखे, लेकिन हाथों से नहीं, पैरों से! क्या आप बुरा मानेंगे? शायद हां, क्योंकि भारतीय संस्कृति में खाना परोसना हमेशा प्रेम, आदर और स्नेह का प्रतीक रहा है, लेकिन अगर हम आपसे कहें कि एक जनजाति ऐसी भी है जहां नवविवाहिता दुल्हन अपने पति को भोजन पैरों से खिसकाकर देती है और पति नाराज होने के बजाय उस थाली को सिर से लगाता है! है ना हैरानी की बात?
पढ़ने में अजीब जरूर लगता है, लेकिन थारू जनजाति में निभाई जाने वाली यह परंपरा (Tharu Tribe Wedding Ritual) सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि इतिहास, भावनाओं और रिश्तों की गहराई से जुड़ी एक अनोखी परिभाषा है। आइए, जानते हैं इस रहस्यमयी और भावनात्मक परंपरा (Tharu Bride Foot Serving) की पूरी कहानी, जो आपको सोचने पर मजबूर कर देगी।
(AI-generated Image)
क्यों पैर से खाना परोसती है नई दुल्हन?
सुनने में यह बात भले ही अजीब लगे, लेकिन थारू समुदाय में यह एक बेहद महत्वपूर्ण और पुरानी परंपरा है। जब नई नवेली दुल्हन अपने ससुराल पहुंचती है और पहली बार अपने पति के लिए खाना बनाती है, तो वह उस थाली को अपने पैरों से धीरे-धीरे खिसकाकर पति के पास पहुंचाती है। पति इसे न केवल बिना नाराज़गी के स्वीकार करता है, बल्कि उसे अपने सिर से भी छूता है। यह दृश्य जितना हैरान करने वाला है, उतना ही गहरा इसका प्रतीकात्मक अर्थ भी है।
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एक रस्म में छिपी हैं ढेरों भावनाएं
थारू समुदाय के इस रिवाज में कई भावनाएं एक साथ झलकती हैं। पहली नजर में यह रस्म पति-पत्नी के रिश्ते में एक अनोखे जुड़ाव को दर्शाती है। यह पति द्वारा पत्नी के श्रम और त्याग को सम्मान देने का तरीका है। दूसरी ओर, इस परंपरा में इतिहास की पीड़ा भी छिपी हुई है।
मान्यता है कि थारू समुदाय की महिलाएं कभी राजसी परिवारों से ताल्लुक रखती थीं। परंतु समय के उतार-चढ़ाव में जब उन्हें अपने सामाजिक स्तर से नीचे विवाह करना पड़ा, तो उनके मन में एक छुपा हुआ विरोध भी पनपने लगा। इस विरोध को व्यक्त करने के लिए उन्होंने एक प्रतीकात्मक तरीका चुना – पैर से थाली परोसना।
‘अपना-पराया’ - दुल्हन के जीवन का द्वंद्व
इस रस्म को थारू समुदाय में ‘अपना-पराया’ कहा जाता है। यह शब्द खुद में ही गहराई समेटे हुए है। जब दुल्हन अपने मायके को छोड़कर ससुराल आती है, तो वह अपने दोनों जीवन के बीच झूलती है – एक तरफ उसका बचपन, उसकी जड़ें और उसके माता-पिता का घर; दूसरी तरफ उसका नया जीवन, नया परिवार और नए रिश्ते। यह रस्म उसी मनोभाव का प्रतीक है – वो अब इस परिवार की है, लेकिन उसने अपने अतीत को पूरी तरह नहीं छोड़ा है।
‘चाला’ - नई शुरुआत की रस्म
थारू समाज में विवाह सिर्फ दो लोगों का बंधन नहीं होता, यह दो परिवारों और संस्कृतियों का मिलन होता है। शादी के बाद ‘चाला’ नामक रस्म होती है, जिसमें दुल्हन अपने नए घर में कदम रखती है। यह रस्म दिखाती है कि अब वह एक नई जिंदगी की ओर बढ़ रही है। इसी ‘चाला’ के दौरान ही वह अपने पति के लिए पहला खाना बनाती है, और यह रस्म निभाई जाती है।
पैर से थाली खिसकाना - सिर्फ परंपरा नहीं, एक संदेश
इस अनूठी परंपरा को केवल एक रस्म के रूप में देखना उचित नहीं होगा। यह एक तरह से उस समय की महिलाओं की आंतरिक आवाज थी, जब उन्हें उनकी मर्जी के खिलाफ फैसले स्वीकार करने पड़े। वे जीवन तो स्वीकार करती हैं, लेकिन अपनी पहचान को पूरी तरह खोने के लिए तैयार नहीं थीं। यह परंपरा इसी दोराहे को दर्शाती है- स्वीकार्यता और विरोध, प्रेम और पीड़ा।
आज के समय में जब समाज तेजी से बदल रहा है, तब ऐसी परंपराएं सवालों के घेरे में भी हैं, लेकिन इतना तय है कि यह रस्म हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि परंपराओं के पीछे केवल नियम ही नहीं, कहानियां और भावनाएं भी छिपी होती हैं।
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