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    भारतीय संस्कृति से मंडाना चित्रकला का है अटूट नाता, जानें इससे जुड़ी कुछ खास बातें

    Updated: Sat, 09 Nov 2024 03:54 PM (IST)

    भारतीय संस्कृति का एक अहम हिस्सा है मांडना (Mandna Painting)। विभिन्न पर्वों मुख्य उत्सवों तथा ॠतुओं के आधार पर वर्गीकृत मांडना का संबंध अध्यात्म से जुड़ा माना जाता है। राजस्थान के कई समुदाय इस कला को बनाते हैं। यहां हम इस चित्रकला से जुड़ी कुछ अहम बातों के बारे में बताने वाले हैं। आइए जानते हैं मांडना चित्रकला के बारे कुछ खास बातें।

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    राजस्थान की पारंपरिक कला है मांडना (Picture Courtesy: Instagram)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Mandna Painting: मांडना एक प्रकार की भित्ति कला है जो फर्श और दीवारों पर की जाने वाली चित्रकला तथा घरों के बाहरी और आंतरिक सतहों पर उकेरी गई चित्रकारी को शामिल करती है। फर्श चित्रकला के रूप में, मांडना राजस्थान के विभिन्न समुदायों द्वारा की जाती है, लेकिन भित्ति चित्रकला और मिट्टी की ‘राहत’ कला की परंपरा मुख्य रूप से मीणा अथवा मीना समुदाय से जुड़ी हुई है, जो राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश में बसते हैं। राजस्थान के पूर्वी जिलों जैसे सवाई माधोपुर, टोंक, करौली और दौसा को इस कला का केंद्र माना जाता है। ‘मांडना’ शब्द न केवल तकनीक बल्कि तैयार चित्रकला को भी दर्शाता है। पारंपरिक रूप से मांडना को लाल मिट्टी और चाक से बनाया जाता है और इसे मुख्य रूप से महिलाएं बनाती हैं।

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    हर पर्व की अपनी आकृति

    फर्श चित्रकला के रूप में मांडना भारत में देहरी की सजावट की प्राचीन और समृद्ध परंपरा का हिस्सा है। राजस्थान में फर्श के मांडना आमतौर पर प्रतीकात्मक आकृतियों के रूप में होते हैं, जिनमें विशेष अवसरों जैसे दीपावली, गणगौर और मकर संक्रांति जैसे त्योहारों के लिए, साथ ही जन्म, विवाह और युवावस्था से जुड़े समारोहों के लिए विशिष्ट डिजाइन बनाए जाते हैं। ये आकृतियां घर के प्रवेश द्वार, पूजा कक्ष, रसोई या आंगन में बनाई जाती हैं। यह आकृतियां और इन्हें बनाने की तकनीकें पीढ़ी-दर-पीढ़ी मां से बेटी तक पहुंचाई जाती हैं। पारंपरिक रूप से, इसका हर खंड एक गोल या बहुभुज के आकार वाले केंद्रीय क्षेत्र से जुड़ा होता है, जिसके चारों ओर आपस में मिलते हुए बैंड होते हैं, जो एक तरह से ‘मोबियस स्ट्रिप’ जैसा प्रभाव देते हैं। पूरा मांडना अक्सर ‘पगल्या’ जैसे छोटे-छोटे मोटिफ से घिरा होता है, जो पैरों के निशान का प्रतीक होते हैं।

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    हफ्तों पहले शुरू हो जाती है प्रक्रिया

    फर्श पर मांडना शुरू करने से पहले सतह को गोबर और लाल मिट्टी के लेप से तैयार किया जाता है, जिसे स्थानीय रूप से ‘रत्ती’ कहा जाता है। पेंटिंग के लिए उपयोग किए जाने वाला रंग दरअसल चाक का घोल होता है, जिसे ‘खारी’ या ‘खरिया’ कहते हैं। इसका पारंपरिक तरीका कपड़े को रंग में डुबोकर उसे निचोड़ने और अंगुलियों से रंग को सतह पर टपकाने का होता है जबकि इसमें ब्रश का उपयोग आसानी से किया जा सकता है। फर्श और दीवार के मांडना की एक अद्भुत विशेषता होती है, जिसमें एक जटिल तिर्यक रेखा ‘छायन’ विभिन्न मोटाई और शैलियों में बनाई जाती है, जो रेखाओं के बीच की खाली जगहों को भरती है।

    दीवार के मांडना बनाने की प्रक्रिया मानसून के बाद शुरू होती है, जब मिट्टी के घरों की मरम्मत और पलस्तर किया जाता है। जब मरम्मत पूरी हो जाती है, तो दीवारों पर गोबर और लाल मिट्टी की परत चढ़ाई जाती है (जिसे लिपाई कहते हैं) जो चित्रकारी के लिए एक गहरा लाल आधार तैयार करती है। सतह को चिकना करने के बाद चाक का घोल पेंटिंग के लिए लगाया जाता है। सवाई माधोपुर में दीवार के मांडना बनाने के लिए दो रंगों का उपयोग किया जाता है: सफेद रंग चाक के घोल से और लाल रंग स्थानीय लाल मिट्टी (गेरू) या हेमाटाइट (हिरमिच) से प्राप्त किया जाता है।

    दीवार के मांडना बनाने के लिए ब्रश खजूर या बांस की टहनियों से बनाए जाते हैं, जिनके एक सिरे को कुचलकर रेशों जैसा बना दिया जाता है। कपास की स्वैब और सरकंडा घास का भी उपयोग रंग लगाने के लिए किया जाता है।

    जैसा देश वैसा भेष

    भित्ति चित्र आमतौर पर दीवाली से पहले के हफ्तों में बनाए जाते हैं, जब महिलाएं घरेलू कामों से समय निकालकर पेंटिंग करती हैं। मीना समुदाय के भीतर मांडना का उपयोग महत्वपूर्ण स्थानों को सजाने या घर के अंदरूनी हिस्सों में सजावट बढ़ाने के लिए भी किया जाता है। उदाहरण के लिए अनाज का भंडार- जिसे स्थानीय रूप से ‘कोठा’ या ‘कोठी’ कहा जाता है।

    यह मीना समुदाय में घर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है और इसे ज्यामितीय और पुष्प मांडना पैटर्न से सजाया जाता है। चूल्हा एक और स्थान होता है जिसे अक्सर मांडना से सजाया जाता है। उभरे हुए मांडनों को मिट्टी की सतह पर उकेरा जाता है और इन्हें आकर्षक बनाने के लिए शीशे, मोती और रंगीन कांच लगाए जाते हैं। जहां फर्श के मांडनों में अवसर विशेष के डिजाइन होते हैं, वहीं दीवार के मांडनों में वन्यजीवन और समुदाय जीवन से प्रेरित एक विस्तृत शृंखला के मोटिफ होते हैं, जैसे गुजर-गुजरी (पुरुष और महिला), बैलगाड़ी और ऊंटगाड़ी। राजस्थान के मांडनों के विपरीत-जो मुख्य रूप से सफेद और लाल रंग का उपयोग करते हैं-मध्य प्रदेश में बनाए गए डिजाइन अक्सर अधिक रंगीन होते हैं।

    अन्य भित्ति चित्र परंपराओं की तरह, जो मिट्टी की सतहों पर शुरू हुईं, मांडना तकनीक को भी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि मिट्टी के घर कम होते जा रहे हैं। हालांकि, स्थानीय कलाकारों ने अपने डिजाइनों और मोटिफों को कागज पर भी उकेरना आरंभ कर दिया है और कुछ मामलों में पारंपरिक तकनीकों का उपयोग करते हुए आधुनिक थीमों के साथ प्रयोग भी किया है!

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