Women’s Day 2024: 5 साहसी भारतीय महिलाएं, जिन्होंने तोड़ी पुरुषवादी सोच की दीवार
महिला दिवस महिलाओं के अधिकारों के लिए काफी अहम दिन माना जाता है। इस दिन महिलाओं के अधिकारों के साथ-साथ उनकी उपलब्धियों की भी सराहना की जाती है ताकि अन्य महिलाओं को प्रेरणा मिल सके। इसलिए आज हम आपको कुछ ऐसी महिलाओं के बारे में बताने वाले हैं जिन्होंने इतिहास में अपने नाम का परचम लहराया है। जानें उन खास महिलाओं की उपलब्धियों के बारे में।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Women's Day 2024: सदियों से महिलाओं के प्रति हमारे समाज में कई प्रकार की बंदिशें रही हैं, जिनकी वजह से वे अपनी जिंदगी खुलकर नहीं जी पाती हैं। इन रोक-टोक की वजह से ही महिलाएं अपने सपनों का गला घोटकर, सिर्फ घर-गृहस्थी के कामों में लगी रहती हैं, लेकिन हमारे इतिहास के पन्नों में ऐसी कई महिलाओं के नाम आपको मिल जाएंगे, जिन्होंने पैतृक समाज की बेड़ियों को तोड़कर, अपने सपनों की उड़ान भरी है।
महिलाओं को अक्सर कोमल और कमजोर समझा जाता है। इस कारण से उनके परिवारजन भी उन्हें किसी ऐसी फील्ड में नहीं जाने देना चाहते हैं, जहां ज्यादा शारीरिक मेहनत करनी पड़ती हो या प्रतिकूल वातावरण हो। इस कारण से ही काफी लंबे समय तक डिफेंस के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी काफी कम देखने को मिलती थी। महिलाओं को इन क्षेत्रों में जाने की अनुमति घरवालों से भी नहीं मिल पाती थी, लेकिन आज हम आपको कुछ ऐसी महिलाओं की कहानी सुनाने वाले हैं, जिन्होंने सुरक्षा के क्षेत्र में अपने नाम का परचम लहराया है और देश का नाम गौरवान्वित किया है।
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सूबेदार हवलदार प्रीति रजक
सूबेदार प्रीति रजक मध्यप्रदेश के एक छोटे से गांव, इटारसी, से आती हैं। इनके पिता एक ड्राइक्लीनिंग का काम करते थे। इन्होंने एशियन गेम्स में ट्रैप शूटिंग में सिल्वर मेडल जीतकर, भारत का नाम रोशन किया। इसके बाद इन्होंने दिसंबर 2022 में कॉर्प ऑफ मिलिट्री पुलिस ज्वॉइन किया। सुबेदार रजक, शूटिंग में पहली महिला स्पोर्ट्स पर्सन हैं, जिन्होंने हवलदार के पद पर आर्मी ज्वाइन किया।
एशियन गेम्स में इनके शानदार प्रदर्शन की वजह से, उन्हें 12 लाख स्ट्रॉन्ग आर्मी में पहली महिला सूबेदार के पद पर प्रमोट किया गया। हाल में, सूबेदार रजक भारत में महिला ट्रैप इवेंट में छठे स्थान पर आती हैं और पेरिस ओलंपिक गेम्स के लिए आर्मी मार्क्समैनशिप यूनिट में तैयारी कर रही हैं।
सूबेदार रजक की उपलब्धियां न केवल उनके मजबूत इरादों की कहानी है बल्कि, यह भारत की हर महिला के लिए प्रेरणा है कि स्त्री अगर कुछ ठान ले, तो उसे पूरा कर सकती है।
विंग कमांडर नम्रता चांदी
डिफेंस सेक्टर में पहले महिलाओं को जाने के लिए घरवालों से अनुमति मिलना बहुत मुश्किल था। अगर तीन दशक पहले की भी बात होती कि एक महिला एयरफोर्स में विंग कमांडर बनकर सियाचिन के ऊपर उड़ान भरेगी, तो मानना मुश्किल होता, लेकिन इस दीवार को तोड़कर विंग कमांडर नम्रता चांदी ने इतिहास में अपना नाम अमर कर दिया।
सियाचिन को दुनिया का सबसे ऊंचा बैटलफील्ड माना जाता है। 18,000 फीट की ऊंचाई पर होने की वजह से इस जगह का मौसम काफी प्रतिकूल होता है और उड़ान भरने के लिए इसे काफी खतरनाक माना जाता है, लेकिन 10 फरवरी 2001 को विंग कमांडर नम्रता चांदी इंडियन एयरफोर्स की पहली महिला पायलट बनीं, जिन्होंने सियाचिन पर उड़ान भरी थी।
सियाचिन के एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड के बेस को छूने वाली भी ये पहली महिला पायलट बनीं। अपनी बहन के साथ मिलकर नम्रता ने पहला सिस्टर डुयो बनाया, जिनका नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में भी शामिल है। नम्रता की उपलब्धियां देश की हर महिला के लिए प्रेरणा है। महिलाओं के लिए यह एक संदेश है कि सपनों में ताकत हो, तो कोई भी उड़ान भरना मुश्किल नहीं है।
नम्रता दुबे
नम्रता दुबे महिलाओं की उपलब्धियों में एक और जुड़ चुका नाम है। महर्षि वाल्मिकी इंटरनेशनल एयरपोर्ट, अयोध्या धाम में नम्रता एकलौती महिला अफसर हैं। यहां ये टर्मिनल मैनेजर की भूमिका निभाती हैं और एयरपोर्ट के रोज के ऑपरेशन्स और पैसेंजर्स के आवागमन को निगरानी करती हैं।
राम मंदिर के उद्घाटन के बाद से इस एयरपोर्ट पर लोगों की भीड़ बढ़नी शुरू हो गई है, ऐसे में नम्रता दुबे टर्मिनल मैनेजर के तौर पर काफी अहम भूमिका निभाती हैं। नम्रता की उपलब्धि महिलाओं के लिए एक प्रेरणा का स्त्रोत है। उनकी इस उपलब्धि को देखकर कई महिलाएं और छोटी बच्चियां अपने सपने को पूरा करने के लिए प्रेरित होंगी।
सब-इंस्पेक्टर सुमन कुमारी
सुरक्षा के फील्ड में स्नाइपर की काफी अहम भूमिका होती है। बीएसएफ में पहली वुमन स्नाइपर के तौर पर सब-इंस्पेक्टर सुमन कुमारी ने इतिहास रच दिया है। इन्होंने इंदौर के सेंट्रल स्कूल ऑफ वेपंस एंड टैक्टिक्स में अपनी आठ हफ्ते की ट्रेनिंग पूरी की और बीएसएफ की पहली महिला स्नाइपर बनीं।
सुमन पंजाब में एक प्लैटून को कमांड देती थीं, जहां उन्होंने स्नाइपर्स की वजह से होने वाले खतरे को समझा। इसके बाद उन्होंने स्नाइपिंग के कोर्स में दाखिला लिया। इस कोर्स में वे एकलौती महिला थीं। कमांडो की ट्रेनिंग के बाद स्नाइपर की ट्रेनिंग को सबसे मुश्किल माना जाता है। ऐसे में पहली महिला कमांडर बनना एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। यह अन्य महिलाओं के लिए भी काफी प्रेरणादायक है।
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Picture Courtesy: Facebook and Instagram
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