सस्टेनेबल फैशन की मिसाल हैं ‘बाघ प्रिंट्स’, भारत के दिल Madhya Pradesh से जुड़ा है इस कला का इतिहास
भारत के ठीक बीचों-बीच बसा मध्य प्रदेश देश की सांस्कृतिक धरोहरों का अद्भुत केंद्र है। यहां की कला किले मंदिर और प्राकृतिक विविधता हर पर्यटक का मन मोह लेते हैं लेकिन इन सबके बीच एक खास पहचान है जिसने मध्य प्रदेश को पूरे देश में अलग स्थान दिलाया है। जी हां हम यहां के मशहूर बाघ प्रिंट्स की बात कर रहे हैं।
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। क्या आपने कभी सोचा है कि भारत का दिल, मध्य प्रदेश, सिर्फ विशाल किलों और प्राचीन मंदिरों से कहीं ज्यादा क्यों है? यह सिर्फ इतिहास और प्रकृति का संगम नहीं, बल्कि अनगिनत कलाओं और कहानियों का एक जीता-जागता खजाना भी है। यहां की मिट्टी में रच-बस गई है ऐसी कलाएं, जो न सिर्फ देखने में खूबसूरत हैं, बल्कि अपने साथ सदियों पुराना इतिहास और पहचान भी समेटे हुए हैं। ऐसी ही एक मनमोहक और बेजोड़ कला है 'बाघ प्रिंट'। आइए विस्तार से जानते हैं इसकी खासियत के बारे में।
एक गांव, एक नदी और एक परंपरा
बाघ प्रिंट की कहानी शुरू होती है धार जिले के एक छोटे से गांव बाघ से, जो एक नदी के किनारे बसा है। बता दें, इसी नदी से प्रेरित होकर इस गांव का नाम और इस कला की पहचान बनी। माना जाता है कि यह कला करीब 400 साल पहले शुरू हुई थी, जब सिंध से खत्री समुदाय के लोग इस गांव में आकर बसे।
बाघ प्रिंट की खासियत यह है कि इसे लकड़ी के नक्काशीदार ब्लॉक्स से हाथों से छापा जाता है, और उसमें प्रयुक्त रंग प्राकृतिक होते हैं- खासकर काला और लाल, जो सफेद कपड़े पर उकेरे जाते हैं। इन रंगों का सांस्कृतिक महत्व भी है, खासकर धार जिले की जनजातियों में।
प्राकृतिक रंगों से बनी सुंदरता
बाघ प्रिंट को खास बनाते हैं इसके प्राकृतिक रंग और पारंपरिक डिजाइन, जो अक्सर फूलों, पत्तियों, जानवरों और ऐतिहासिक इमारतों से प्रेरित होते हैं। उदाहरण के लिए ‘गेंदा फूल’ और ‘नारियल जाल’ जैसे डिजाइन काफी लोकप्रिय हैं। रंगों को तैयार करने के लिए फलों, फूलों और लोहे की पुरानी कीलों का इस्तेमाल किया जाता है।
कपड़े को पहले विशेष रसायनों से उपचारित किया जाता है, फिर उस पर डिजाइन छापे जाते हैं और अंत में उसे बहते हुए नदी के पानी में धोया जाता है। ऐसा माना जाता है कि नदी के पानी में मौजूद खनिज इन रंगों की चमक और टिकाऊपन को बढ़ाते हैं।
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कला जो पर्यावरण का भी रखे ध्यान
बाघ प्रिंट सिर्फ एक कला नहीं, बल्कि सस्टेनेबल फैशन का बेहतरीन उदाहरण भी है। इसमें न तो केमिकल का प्रयोग होता है और न ही मशीनों की जरूरत पड़ती है। पूरा काम हाथ से किया जाता है- यानी यह पर्यावरण के लिए भी अनुकूल है और कारीगरों के लिए सम्मानजनक आजीविका का साधन भी।
हर पर्यटक के लिए एक खास सौगात
जो भी सैलानी मध्य प्रदेश आते हैं, उन्हें बाघ प्रिंट की खूबसूरती से रूबरू जरूर होना चाहिए। स्थानीय बाजारों में घूमते हुए आप इन कपड़ों में वह एहसास महसूस कर सकते हैं जो सदियों से इस धरती में रचा-बसा है। साल 2008 में इस प्रिंट को ‘जियोग्राफिकल इंडिकेशन (GI) टैग’ भी मिला, जो इसकी विशिष्टता और परंपरा को मान्यता देता है।
चाहे आप खुद के लिए कोई साड़ी, दुपट्टा, स्टोल, बेडशीट या कुशन कवर लेना चाहें, या किसी को खास उपहार देना चाहें- बाघ प्रिंट हर ऑप्शन के लिए बेस्ट है।
बाघ प्रिंट सिर्फ कपड़ा नहीं, एक संस्कृति है जो मध्य प्रदेश के दिल से निकलकर पूरे देश और दुनिया में अपनी छाप छोड़ रही है। यह हमें यह सिखाती है कि परंपरा और प्रकृति से जुड़कर भी फैशन में अनोखापन लाया जा सकता है। ऐसे में, अगली बार जब भी आप मध्य प्रदेश घूमने जाएं, इस खूबसूरत आर्ट को अपने साथ जरूर ले जाएं।
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Source:
Incredible India: https://www.incredibleindia.gov.in/en/madhya-pradesh/bagh-prints-of-madhya-pradesh
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