एआइ ला रहा है शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति, कैसे पढ़ाई में मदद कर रहा है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस?
भारत की शिक्षा प्रणाली में चाहे वह गुरुकुल की प्राचीन परंपरा हो या नई शिक्षा नीति 2020 हमेशा शिक्षक ही केंद्र में रहा है। प्रो. संजीव कुमार शर्मा के अनुसार यह समय भारतीय शिक्षा की नई शुरुआत का है जहां आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस शिक्षकों का सहायक बन रहा है। आइए जानें कैसे।

प्रो. संजीव कुमार शर्मा, नई दिल्ली। भारत, जो हजारों सालों तक दुनिया को ज्ञान का रास्ता दिखाता रहा, उसने कई हमलों के बाद अपना गौरव खो दिया। एक समय का विश्वगुरु गुलाम हो गया। लगभग एक हजार साल की परतंत्रता, बहुत संघर्ष और बलिदान के बाद भारत फिर से एक स्वतंत्र देश के रूप में खड़ा हुआ।
गरीबी और लूट से थके हुए देश में एक नई उमंग जागी। लगातार मेहनत से आज भारत फिर से पूरी दुनिया के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया है। भारत की बड़ी आबादी होने के बावजूद, उसकी आर्थिक तरक्की पूरी दुनिया को हैरान कर रही है। सेना के मामले में भी भारत ने अपनी ताकत साबित की है और अंतरिक्ष विज्ञान में तो वह अगुवाई कर रहा है।
दूसरे कई क्षेत्रों में भी भारत की तरक्की की कहानी गर्व महसूस कराने वाली है। अब शिक्षा और विज्ञान के क्षेत्र में भारत फिर से विश्वगुरु बनने का सपना देख रहा है। ऐसे में, दुनिया में टेक्नोलाजी में हो रहे बदलावों से भारत दूर नहीं रह सकता। आज विज्ञान बहुत तेजी से चीजों को बदल रहा है। कोविड महामारी के बाद से तो इंटरनेट और नई टेक्नोलाजी पर हमारी निर्भरता बहुत बढ़ गई है।
गांवों में भी टेक्नोलाजी का असर साफ देखा जा सकता है। स्कूल से लेकर कालेज और रिसर्च तक, पढ़ाई-लिखाई में टेक्नोलाजी का इस्तेमाल लगातार बढ़ रहा है। आज ब्लेंडेड लर्निंग, आनलाइन कोर्सेज और ‘स्वयं’ जैसे तरीके शिक्षा का हिस्सा बन गए हैं।
शिक्षक ही रहेंगे केंद्र में
इसी माहौल में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) का आना एक बहुत ही बड़ी घटना है। एआइ के आने से समाज और विज्ञान के क्षेत्र में ऐसे बदलाव हो रहे हैं, जिनकी हमने कल्पना भी नहीं की थी। शिक्षा के क्षेत्र में भी एआइ एक बड़ा बदलाव ला रहा है। जहां व्यापार, विज्ञान और दूसरे क्षेत्रों में लोग एआइ को अपनाने के लिए तैयार दिख रहे हैं, वहीं शिक्षा में इसके आने पर कुछ लोग उत्सुक भी हैं और कुछ डरे हुए भी।
कुछ शिक्षा संस्थानों ने तो बिना सोचे-समझे इसे तुरंत अपना लिया है, जबकि कुछ जगहों पर लोग एआइ के ज्यादा इस्तेमाल से होने वाले बुरे नतीजों को लेकर चिंतित हैं। हमारे भारत की शिक्षा प्रणाली में, चाहे वह गुरुकुल की पुरानी परंपरा हो या नई शिक्षा नीति 2020, हमेशा शिक्षक ही केंद्र में रहा है। हमारे शास्त्रों और परंपराओं में गुरु को बहुत सम्मान दिया गया है। एआइ के आने से सबसे बड़ी चिंता इसी बात की है कि कहीं एआइ शिक्षकों की जरूरत को ही खत्म न कर दे।
प्रभावित हुई है पूरी सभ्यता
असल में, एआइ की ताकत और क्षमता हमारे सोच से कहीं ज्यादा है। इसके इस्तेमाल के नए-नए रास्ते रोज खुल रहे हैं। यह विद्यार्थियों के लिए अनगिनत संभावनाओं के दरवाजे खोल रहा है। एआइ इनोवेशन, क्रिएटिविटी और नए प्रयोगों को बहुत बढ़ावा दे रहा है। इसने विचारों को सच करने के ऐसे मौके दिए हैं कि पूरी मानव सभ्यता पर इसका असर पड़ रहा है।
कविता, साहित्य, संगीत और कला भी एआइ से प्रभावित हो रही हैं। यह भी हो सकता है कि आने वाले दिनों में एआइ अपनी अच्छाइयों के साथ-साथ समाज के बुरे लोगों को भी उपयोगी लगने लगे। अगर एआइ का इस्तेमाल क्लासरूम, लैब और पढ़ाई-लिखाई से होते हुए परीक्षाओं और नतीजों तक पहुंच गया तो क्या होगा-यह सोचना भी डरावना है।
एआइ के बढ़ते इस्तेमाल से शिक्षकों के लिए यह चुनौती भी है कि उन्हें रोज नई जानकारी के साथ खुद को अपडेट रखना होगा। शिक्षकों को एआइ से बचने के बजाय अपने अनुभव और ज्ञान को एआइ के साथ जोड़ना होगा।
आएंगे बेहतर बदलाव
यह सच है कि शिक्षा संस्थान सिर्फ ज्ञान देने या डिग्री बांटने की जगह नहीं हो सकते। असल में, ये संस्थान विद्यार्थियों में जानने की इच्छा, सवाल पूछने की आदत और जिज्ञासा को सही दिशा देते हैं। वे उन्हें नया सोचने, पुरानी चीजों को समझने और उनकी समीक्षा करने की नजर देते हैं। इसमें सबसे बड़ी भूमिका शिक्षक और विद्यार्थी के बीच लगातार बातचीत की होती है।
शिक्षक दरअसल विद्यार्थी के लिए एक आदर्श, मार्गदर्शक और उसे गढ़ने वाले होते हैं। इसीलिए हमारी परंपरा में शिक्षक से बहुत अच्छे आचरण और मूल्यों की उम्मीद की जाती है। एआइ के आने से शिक्षक का काम सिर्फ जानकारी देना नहीं रह गया है। आज सवाल पूछने के लिए चैटजीपीटी जैसे कई ऐप मौजूद हैं।
ई-लर्निंग और चैटबाट भी शिक्षा को फैलाने में मदद कर रहे हैं। हम रोज नए ऐप के बारे में जान रहे हैं जो शिक्षा में क्रांति ला रहे हैं। एआइ के समर्थक बहुत उम्मीद से देख रहे हैं कि इससे शिक्षा में बहुत अच्छे बदलाव आएंगे। डिजिटल असमानता की समस्या को भी एआइ से दूर करने की कोशिश की जा रही है। विद्यार्थी वर्ग को इसकी उपयोगिता पर कोई संदेह नहीं है!
बाकी हैं कुछ प्रश्न
आज पढ़ाई की सामग्री की जगह एआइ ने ले ली है और ज्ञान के स्रोत के रूप में भी एआइ की स्वीकार्यता बहुत बढ़ गई है। लेकिन इस आपाधापी में कुछ जरूरी सवाल छूट रहे हैं:
- एआइ के ज्यादा इस्तेमाल से इंसान की भावनाओं, नैतिकता, सामाजिकता और सच्चाई जैसे मूल्यों परकितना बुरा असर पड़ेगा?
- एआइ का ज्यादा उपयोग हमारी मौलिकता और सोचने की शक्ति को कैसे प्रभावित करेगा?
- एआइ शिक्षा संस्थानों में आपसी बातचीत और भाईचारे को कितना नुकसान पहुंचाएगा?
ये सभी सवाल अभी अनुत्तरित हैं। शायद दुनिया से पीछे छूट जाने के डर से एआइ को हर जगह जल्दी से फैलाने की कोशिश और यह मान लेना कि टेक्नोलाजी ही हर समस्या का समाधान है, ने इन जरूरी सवालों को नजरअंदाज कर दिया है।
भारत जैसा बड़ा और कई भाषाओं वाला देश, जिसमें शिक्षा के क्षेत्र में बहुत विविधता है, को एआइ का बेपरवाह इस्तेमाल करने से पहले राष्ट्रीय स्तर पर सोचना चाहिए कि यह हमारी आपसी एकता और पहचान के साथ कैसे तालमेल बिठाएगा।
(लेखक महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी, बिहार के पूर्व कुलपति हैं)
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