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    क्या AI छीन रहा है इंसानों की सोचने-समझने की शक्ति? ChatGPT यूजर्स की क्रिएटिविटी पर मंडरा रहा खतरा!

    Updated: Sun, 22 Jun 2025 12:53 PM (IST)

    आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) ने हमारी लाइफ को पहले से कहीं ज्यादा आसान बना दिया है। अब चाहे स्कूल का प्रोजेक्ट हो या ऑफिस की रिपोर्ट, एक क्लिक पर Chatty जैसे टूल्स हर काम चुटकी में कर देते हैं, लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि इस सुविधा के बदले में हम क्या खो रहे हैं?

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    AI के इस्तेमाल से घट रही सोचने समझने की क्षमता? (Image Source: Freepik) 

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। हाल ही में अमेरिका के मशहूर रिसर्च संस्थान एमआईटी (MIT) ने एक ऐसा अध्ययन किया है जिसने इस सवाल का चौंकाने वाला जवाब दिया है। इस रिसर्च में यह सामने आया है कि एआई टूल्स का ज्यादा इस्तेमाल हमारी सोचने-समझने की क्षमता को प्रभावित कर रहा है।

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    कैसे की गई रिसर्च?

    इस अध्ययन में एमआईटी मीडिया लैब, वेलस्ले कॉलेज और मासआर्ट के वैज्ञानिकों ने मिलकर 54 छात्रों पर रिसर्च की। इन छात्रों को तीन अलग-अलग ग्रुप में बांटा गया:

    AI ग्रुप – इन छात्रों ने केवल चैटजीपीटी का इस्तेमाल करके निबंध लिखा।

    सर्च इंजन ग्रुप – इस ग्रुप ने गूगल जैसी वेबसाइटों से जानकारी लेकर निबंध तैयार किया।

    ब्रेन-ओनली ग्रुप – इस समूह ने बिना किसी डिजिटल मदद के खुद से निबंध लिखा।

    रिसर्च के दौरान हर छात्र के दिमाग की गतिविधियों को EEG मशीन के जरिए मापा गया, जिससे पता लगाया गया कि लेखन के समय उनका दिमाग कितना सक्रिय था।

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    रिसर्च में क्या-क्या सामने आया?

    इस अध्ययन से तीन मुख्य बातें निकलकर सामने आईं:

    सोचने की क्षमता कम हो रही है

    जिन छात्रों ने निबंध सिर्फ चैटजीपीटी से लिखा था, उनके दिमाग की एक्टिविटी सबसे कम पाई गई। यानी जब दिमाग को कुछ सोचने की जरूरत नहीं पड़ती, तो वह सुस्त हो जाता है। वहीं, जो छात्र खुद से लिख रहे थे, उनके दिमाग में ज्यादा हलचल और सक्रियता देखी गई।

    याददाश्त और इमोशनल कनेक्शन भी घटा

    जब छात्रों से बाद में पूछा गया कि उन्होंने क्या लिखा था, तो चैटजीपीटी यूज करने वाले छात्रों को सबसे कम याद था। इतना ही नहीं, वे अपने लेखन से भावनात्मक रूप से भी कम जुड़ाव महसूस कर रहे थे। इससे यह समझा जा सकता है कि जब हम खुद कुछ सोचते और लिखते हैं, तो वो हमारे अंदर गहराई से बैठता है।

    क्वालिटी बनाम मौलिक सोच

    AI से बनाए गए निबंध भाषा और व्याकरण के लिहाज से बेहतर थे, लेकिन उनमें मौलिकता की कमी थी। इसके उलट, खुद से लिखे गए निबंधों में भले ही कुछ टाइपो हो सकते हैं, लेकिन उनमें रचनात्मकता, नई सोच और अलग अंदाज झलकता था।

    क्या हमें AI से दूरी बना लेनी चाहिए?

    इस सवाल का जवाब बिल्कुल नहीं है। AI एक उपयोगी औजार है, बशर्ते हम उसका सही इस्तेमाल करें। यह हमारी मदद कर सकता है, लेकिन अगर हम पूरी तरह से उसी पर निर्भर हो जाएं, तो हमारी सोचने और सीखने की क्षमता कमजोर पड़ सकती है।

    इसलिए जरूरी है कि हम AI का इस्तेमाल एक सहायक के रूप में करें, न कि अपने विचारों की जगह देने वाले विकल्प के रूप में। जब आप खुद से सोचते हैं, लिखते हैं, तो न सिर्फ आप नई चीजें सीखते हैं, बल्कि आपके विचारों की स्पष्टता और आत्मविश्वास भी बढ़ता है।

    AI की दुनिया तेजी से आगे बढ़ रही है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारी सबसे बड़ी ताकत हमारी सोचने की क्षमता है। अगर हम हर बात के लिए तकनीक पर निर्भर हो जाएंगे, तो धीरे-धीरे हम अपनी वही ताकत खो देंगे। इसलिए तकनीक का इस्तेमाल समझदारी से करें और खुद को सीखने का मौका देते रहें।

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    Source: 

    MIT: https://arxiv.org/pdf/2506.08872v1