World Preeclampsia Day: मां और बच्चे के लिए जानलेवा साबित हो सकता है प्रीक्लैम्प्सिया, जानें इससे बचने के उपाय
प्रेग्नेंसी में अक्सर महिलाएं कई समस्याओं का शिकार हो जाती हैं। प्रीक्लैम्प्सिया इसी समस्या में से एक है जो कई बार मां-बच्चे के लिए जानलेवा साबित हो सकती है। ऐसे में इसे लेकर जागरुकता फैलाने के मकसद से हर साल 22 मई को विश्व प्रीक्लैम्प्सिया डे मनाया जाता है।

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। World Preeclampsia Day: गर्भावस्था के दौरान एक महिला के जीवन में कई सारे बदलाव होते हैं। इस दौरान महिला को कई सारे शारीरिक और मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। प्रेग्नेंसी में महिलाएं अक्सर डायबिटीज, बीपी, तनाव और अवसाद जैसी समस्याओं का शिकार होती हैं। प्रीक्लैम्प्सिया गर्भावस्था में होने वाली एक ही समस्या है, जिससे कई महिलाएं परेशान रहती हैं।
यह एक हाइपरसेंसिटिव विकार है, जिससे दुनियाभर में कई गर्भवती महिलाओं और बच्चों की मौत हो जाती है। यह एक विकार है, जो गंभीर होने पर जानलेवा भी साबित हो सकती है। प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाली इस समस्या से महिलाओं को बचाने और इसे लेकर जागरुकता बढ़ाने के मकसद से हर साल 22 मई को विश्व प्रीक्लैम्प्सिया डे मनाया जाता है। तो इस मौके पर आज जानेंगे गर्भावस्था के दौरान होने वाली इस जटिलता से कैसे बचें।
क्या है प्रीक्लैम्प्सिया?
प्रीक्लैम्प्सिया की एक गंभीर समस्या है, जिसमें गर्भवती महिला को हाई ब्लड प्रेशर की समस्या हो जाती है और इस वजह से उन्हें दौरे भी पड़ने लगते हैं। यह बेहद खतरनाक स्थिति है, जिसका अगर सही समय पर इलाज न किया जाए, तो इससे बच्चे और मां दोनों की जान को खतरा हो सकता है।
प्रीक्लैम्प्सिया के लक्षण क्या है?
आमतौर यह समस्या महिला को गर्भधारण के 20 हफ्ते के बाद होती है। ऐसे में यह बेहद जरूरी है कि समय से इसकी पहचान कर इसका उचित इलाज किया जाए, ताकि किसी भी अप्रिय हालात से बचा जा सकता है। आप इन आम लक्षणों से प्रीक्लैम्प्सिया की पहचान कर सकते हैं।
- हाई बीपीयूरीन में प्रोटीन
- तेज सिरदर्द
- छाती में दर्द
- चेहरे और हाथों की सूजन
- गर्भावस्था के बाद मतली
- सांस की तकलीफ
- धुंधली दृष्टि
- पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द
प्रीक्लैम्प्सिया के रिस्क फैक्टर क्या है?
प्रीक्लैम्प्सिया एक ऐसी समस्या है, जो प्रेग्नेंसी के दौरान किसी भी महिला को हो सकता है। हालांकि, कुछ महिलाएं ऐसी भी हैं, जिनकी इस बीमारी के चपेट में आने की संभावना काफी ज्यादा होती है। प्रीक्लैम्प्सिया के रिस्क फैक्टर में निम्न शामिल हैं-
- पहली बार मां बनने वाली महिलाएं
- गर्भावस्था के दौरान हाई बीपी का पूर्व अनुभव वाली महिलाएं
- गर्भ में एक से ज्यादा बच्चे होना
- 20 वर्ष से कम उम्र की गर्भवती महिलाएं
- 40 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाएं
- उच्च रक्तचाप या गुर्दे की बीमारी
- बॉडी मास इंडेक्स 30 से अधिक होने पर ज्यादा वजन वाली महिलाएं
प्रीक्लैम्प्सिया से कैसे बचें?
प्रेग्नेंसी के दौरान प्रीक्लैम्प्सिया को रोकना काफी मुश्किल है। इसे लेकर जागरुकता की कमी की वजह से अक्सर महिलाएं इसका शिकार बनती हैं। लेकिन आप विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सुझाए कुछ आप उपायों और कदमों को उठाकर प्रीक्लैम्प्सिया की जटिलताओं से बच सकते हैं।
- एक महिला को 16 सप्ताह, 24-28 सप्ताह, 32 सप्ताह और 36 सप्ताह में कम से कम चार बार डॉक्टर से मिलना चाहिए।
- इस दौरान डॉक्टर से मां और बच्चे के स्वास्थ्य की गहन जांच कराएं। अगर बीपी या
- यूरिन प्रोटीन में कोई बदलाव दिखे, जो जरूरी जांच करवाएं।
- प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाली जटिलताओं से बचने के लिए अपनी जीवनशैली में उचित बदलाव करें।
- संतुलित आहार और नियमित व्यायाम करने से मां और बच्चे को कई समस्याओं से बचाया जा सकता है।
Disclaimer: लेख में उल्लिखित सलाह और सुझाव सिर्फ सामान्य सूचना के उद्देश्य के लिए हैं और इन्हें पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। कोई भी सवाल या परेशानी हो तो हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह लें।
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