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    World's First Vaccine: मई के महीने में ही लगी थी दुनिया की पहली वैक्सीन, इस बीमारी के लिए बना था पहला टीका

    Updated: Fri, 03 May 2024 05:11 PM (IST)

    जन्म के साथ ही व्यक्ति को कई तरह की बीमारियों से बचाने के लिए अलग-अलग तरह की वैक्सीन लगाई जाती है। एक स्वस्थ जीवन जीने के लिए कई बीमारियों से बचाव करना जरूरी है और वैक्सीन कई बीमारियों से हमें बचाने में मदद करती है लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुनिया की पहली वैक्सीन कब और कैसे बनी। अगर नहीं तो आइए जानते हैं वैक्सीन का इतिहास।

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    जानें कब और कैसे बनी दुनिया की पहली वैक्सीन

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। किसी भी बीमारी से बचने के लिए वैक्सीन (Vaccine) को सबसे प्रभावी तरीका माना जाता है। कोरोना महामारी (Coronavirus) के भयानक मंजर को शायद ही कोई भुला पाया होगा। इस दौरान सभी ने वैक्सीन के महत्व को पहचाना था। जन्म के साथ ही व्यक्ति को कई तरह की बीमारियों से बचाने के लिए अलग-अलग तरह की वैक्सीन लगाई जाती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर वैक्सीन की शुरुआत (World’s First Vaccine) कैसे हुई थी? क्या आपको पता है कि दुनिया की सबसे पहली वैक्सीन कब और किसने बनाई थी? अगर नहीं, तो आज इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे वैक्सीन के दिलचस्प इतिहास के बारे में-

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    वैक्सीन से पहले ऐसे होता था बचाव

    वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) की मानें तो 1400 से 1700 के दशक तक, दुनिया के विभिन्न हिस्सों में लोगों ने जानबूझकर स्वस्थ लोगों को चेचक यानी स्मॉलपॉक्स के संपर्क में लाकर बीमारी को रोकने का प्रयास किया है। इस प्रैक्टिस को वेरियोलेशन के नाम से जाना जाता है। कुछ स्रोतों से पता चलता है कि ये प्रथाएं 200 ईसा पूर्व से ही चल रही थीं।

    क्या थी वेरियोलेशन प्रक्रिया

    वेरियोलेशन, जिसे इनोक्यूलेशन के नाम से भी जाना जाता है, एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें लोगों को उन्हें चेचक से बचाने के लिए जानबूझकर स्मॉलपॉक्स के घाव या दाने में मौजूद पदार्थ के संपर्क में लाया जाता था। यह पदार्थ त्वचा को इंजेक्ट कर या नाक के जरिए सांस लेकर लोगों तक पहुंचाया जाता है। इसे बाद यह उम्मीद की जाती थी कि व्यक्ति को स्मॉलपॉक्स जैसा माइल्ड प्रोटेक्टिव इन्फेक्शन होगा, जो जानलेवा नहीं होगा। इस प्रक्रिया का मकसद स्मॉलपॉक्स के खिलाफ इम्युनिटी बिल्ड करना था।

    1796 में बनी थी दुनिया की पहली वैक्सीन

    इसके कई साल बाद 1796 में, इंग्लिश फिजिशियन एडवर्ड जेनर ने इस बात का पता लगाया कि काऊपॉक्स (एक बोवाइन वायरस, जो मवेशियों से इंसानों तक फैलता है) से पीड़ित लोग स्मॉल पॉक्स से बच सकते हैं। इसके लिए उन्होंने काऊ पॉक्स से संक्रमित एक दूधवाले के हाथ में हुए घाव से पस जमा किया। इसके बाद मई 1796 में इस जमा किए गए पस को जेनर ने 8 साल के जेम्स फिप्स को टीके के तौर पर लगाया। इसके परिमाणस्वरूप वह कुछ दिनों तक बीमार रहा और कुछ दिनों बाद फिप्स पूरी तरह से रिकवर हो गए।

    ऐसे पड़ा वैक्सीन का नाम

    वैक्सीन देने को दो महीने बाद जुलाई 1796 में, जेनर ने फिप्स की प्रतिरोधक क्षमता को टेस्ट करने के लिए स्मॉलपॉक्स से पीड़ित एक व्यक्ति के घाव से निकले पस के साथ फिप्स को टीका लगाया। इसके बाद भी फिप्स बिल्कुल स्वस्थ थे और इस तरह वह चेचक यानी स्मॉलपॉक्स के खिलाफ टीका लगवाने वाले पहले इंसान बन गए हैं। स्मॉलपॉक्स के टीके की खोज के बाद टीके को बाद में वैक्सीन नाम दिया गया। गाय के लिए इस्तेमाल होने वाले लैटिन शब्द वैक्सा से ही टीके को अंग्रेजी नाम वैक्सीन दिया गया।

    1802 में आई थी भारत में वैक्सीन

    ये तो हुई दुनिया में वैक्सीन की खोज की बात, लेकिन अगर बात करें भारत में आई पहली वैक्सीन की, तो भारत में इस वैक्सीन की पहली डोज मई 1802 में आई। नेशनल इंस्टीट्यूट्स ऑफ हेल्थ के मुताबिक मुबंई (तब बॉम्बे) की तीन साल की बच्ची अन्ना डस्टहॉल 14 जून, 1802 को स्मॉलपॉक्स का टीका पाने वाली भारत की पहली व्यक्ति बनीं। इसके बाद साल 1897 में डॉ हाफकिन ने भारत में पहली वैक्सीन विकसित की थी, जो प्लेग के लिए थी।

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    Picture Courtesy: Freepik