Body Dysmorphic Disorder: लुक्स को लेकर टेंशन में रहना हो सकता है बॉडी डिस्मॉर्फिक डिसऑर्डर का संकेत
Body Dysmorphic Disorder बॉडी डिस्मॉर्फिया या बॉडी डिस्मॉर्फिक डिसऑर्डर (बीडीडी) एक ऐसी स्थिति है जिसमें लोगों को लगता है कि वो अच्छे नहीं दिखते। इसके चलते वो मानसिक रूप से परेशान रहते हैं तो आइए जानते हैं इस समस्या के बारे में और विस्तार से।

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Body Dysmorphic Disorder: बॉडी डिस्मॉर्फिक डिसऑर्डर एक तरह की मानसिक बीमारी है। जिसमें खुद को एकदम सुपरफिट और खूबसूरत दिखने की चाहत हद से ज्यादा हो जाती है। ब्रिटेन में हुई एक स्टडी के मुताबिक, 54% पुरुष और 49% महिलाएं बॉडी डिस्मॉर्फिक डिसऑर्डर (BDD) का शिकार हैं। ये बीमारी तेजी से महामारी की तरह फैल रही है। लोग अपनी बॉडी को लेकर जरूरत से ज्यादा कॉन्शियस हो रहे हैं, जो एक अलग ही तरह का मेंटल प्रेशर भी दे रहा है। इस समस्या को और ज्यादा बढ़ाने का काम कर रही है सोशल मीडिया। जहां लोग अपनी खूबसूरती और फिटनेस को बढ़ा- चढ़ाकर फ्लॉन्ट करते हैं। जिसे देखकर दूसरे लोग कुंठित होते रहते हैं। बीडीडी के शिकार लोगोंं को हर समय अपनी शारीरिक बनावट को लेकर चिंता सताती रहती है, जो उनके जीवन और उससे जुड़े लोगों पर भी बुरा असर डालती है। यह समस्या शरीर के किसी भी अंग को लेकर हो सकती है, लेकिन चेहरे और बालों को लेकर लोग सबसे ज्यादा परेशान रहते हैं।
अच्छी हाइट, टोन्ड बॉडी, नॉर्मल वजन ये परफेक्ट बॉडी का पैमाना बन चुका है और हम ये भलीभांति जानते हैं, कि ऐसी बॉडी हर किसी की नहीं हो सकती, लेकिन फिर भी इसे लेकर परेशान होते रहते हैं।
क्या है बॉडी डिस्मॉर्फिक डिसऑर्डर?
यह एक ऐसी मेंटल प्रॉब्लम है, जिसमें लोगों में खुद को सुपरफिट और सुंदर दिखाने की चाहत जरूरत से ज्यादा बढ़ जाती है। मेयो क्लीनिक की रिपोर्ट के अनुसार, बॉडी डिस्मॉर्फिक डिसऑर्डर में इंसान अपनी बॉडी और लुक के बारे में बार-बार सोचकर परेशान होता रहता है। इंटरनेशनल OCD फाउंडेशन का कहना है, 40 फीसदी पुरुषों और 60 फीसदी महिलाओं में 12 से 13 साल की उम्र से ही इसके लक्षण दिखना शुरू हो जाते हैं।
डॉ. रिंकू सेनगुप्ता धर, वरिष्ठ परामर्शदाता, प्रसूति एवं स्त्रीरोग, मधुकर रेनबो चिल्ड्रेन्स हॉस्पिटल ने बताया कि, 'बॉडी डिस्मॉर्फिक डिसऑर्डर का शिकार सिर्फ युवा ही नहीं हैं, बल्कि गर्भावस्था के दौरान कई सारी महिलाओं में भी इसके लक्षण देखने को मिलते हैं। शरीर में कई तरह के बदलाव होते हैं, जो उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से परेशान कर सकते हैं। तो इस समस्या से बचाने के लिए उनसे इस मैटर पर बात करें। उन्हें बताएं कि ये नेचुरल है, प्रेग्नेंसी के दौरान शारीरिक बदलावों को लेकर दुखी और तनाव में रहने से मां के साथ होने वाले बच्चे की सेहत पर भी असर पड़ता है।
कोग्निटिव-बिहेवर थेरेपी व्यक्ति के निगेटिव थॉट्स पैटर्न की पहचान कर उनसे निपटने की काफी कारगर तकनीक है। इसके साथ ही महिलाओं को व्यायाम, प्रीनेटल योग, ध्यान या उन एक्टिविटी में भाग लेना चाहिए, जो उनके मेंटल हेल्थ को इंप्रूव करने में मददगार हो सकते हैं।
हर व्यक्ति का BDD के साथ अनुभव अलग होता है, इसलिए उनकी जरूरत के अनुसार ही इलाज तय किए जाने चाहिए और गर्भावस्था के दौरान तो इस समस्या से जूझ रही महिलाओं के लिए एक्सपर्ट की सहायता लेना बहुत जरूरी है।'
डिस्मॉर्फिक डिसऑर्डर के लक्षण
- अपने शरीर की बनावट की तुलना किसी दूसरे से करना
- अपने अंगों को देखकर कुंठित होना
- बॉडी को लेकर नेगेटिव सोच रखना
- अपने चेहरे को ढंककर रखना
- किसी से मिलना-जुलना नहीं
क्या है इलाज
- अपनी बॉडी को एक्सेप्ट करें।
- फिट रहने के लिए योग व एक्सरसाइज का सहारा लें न कि दवाइयों और सप्लीमेंट्स का।
- इसे लेकर बहुत ज्यादा तनाव में हैं, तो डॉक्टर से मिलने में हिचकिचाएं नहीं।
Pic credit- freepik
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