Post Traumatic Stress Disorder (PTSD)
Post Traumatic Stress Disorder इन दिनों लोग लगातार बढ़ते प्रेशर की वजह से कई तरह की मानसिक समस्याओं का शिकार हो रहे हैं। पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (पीटीएसडी) ऐसी ही एक मानसिक विकार है जो अक्सर अतीत में हुई किसी बुरी घटना का परिणाम होता है। ऐसे में इस बीमारी के प्रति जागरूकता फैलाने के मकसद से हर साल 27 जून को PTSD जागरूकता दिवस मनाया जाता है।

पीटीएसडी क्या है?
पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (पीटीएसडी) एक मानसिक विकार है, जो कुछ ऐसे लोगों में विकसित होता है, जिन्होंने किसी चौंकाने वाली, डरावनी या खतरनाक घटना का अनुभव किया है। किसी दर्दनाक स्थिति के दौरान और उसके बाद डर महसूस होना स्वाभाविक है। किसी आघात के बाद लोगों को विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रियाओं का अनुभव हो सकता है, और अधिकांश लोग समय के साथ इन अनुभन से ऊपर उठ जाते हैं। हालांकि, जो लोग अतीत में हुई घटना को भूल नहीं पाते और लगातार उसका अनुभव करना करते रहते हैं, वह PTSD का शिकार हो जाते हैं।
पीटीएसडी किसे होता है?
कोई भी व्यक्ति किसी भी उम्र में पीटीएसडी का शिकार हो सकता है। यह खासतौर पर ऐसे लोगों में विकसित होता है, जिन्होंने शारीरिक या यौन उत्पीड़न, दुर्व्यवहार, दुर्घटना, आपदा या अन्य गंभीर घटनाओं का अनुभव किया या देखा हो। जिन लोगों को PTSD की शिकायत होती है, वे तनावग्रस्त या भयभीत महसूस कर सकते हैं, भले ही वे खतरे में न हों। PTSD से पीड़ित हर व्यक्ति किसी खतरनाक घटना से गुज़रा हो यह जरूरी नहीं, कभी-कभी किसी मित्र या परिवार के सदस्य के आघात का अनुभव भी पीटीएसडी का कारण बन सकता है।
PTSD के लक्षण क्या हैं?
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के मुताबिक पीटीएसडी के लक्षण आमतौर पर दर्दनाक घटना के 3 महीने के भीतर शुरू होते हैं, लेकिन कभी-कभी यह बाद में भी सामने आते हैं। पीटीएसडी से पीड़ित व्यक्ति में निम्न लक्षण नजर आ सकते हैं-
- पुरानी घटनाओं का अनुभव करना
- दर्दनाक घटना को फिर से जीना, जिसकी वजह दिल की धड़कन तेज होना, पसीना आना आदि
- घटना से संबंधित यादें या सपने बार-बार आना
- कष्टकारी विचार आना
- तनाव के शारीरिक लक्षण
- उन स्थानों, घटनाओं या वस्तुओं से दूर रहना, जो दर्दनाक अनुभव की याद दिलाए
- दर्दनाक घटना से संबंधित विचारों या भावनाओं से बचना
- आसानी से चौंक जाना
- तनावग्रस्त महसूस करना
- ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई होना
- सोने या सोने में कठिनाई होना
- चिड़चिड़ापन, गुस्सा या आक्रामक होना
- दर्दनाक घटना को याद रखने में परेशानी होना
- अपने या दुनिया के बारे में नकारात्मक विचार रखना
- भय, क्रोध, अपराधबोध या शर्मिंदगी की भावना
- मनोरंजक गतिविधियों में रुचि खोना
- सामाजिक अलगाव की भावना होना
PTSD के लिए जोखिम कारक क्या हैं?
किसी खतरनाक घटना से गुजरने वाले हर व्यक्ति में पीटीएसडी विकसित नहीं होता। इसके लिए कई कारक मुख्य भूमिका निभाते हैं। इस गंभीर मानसिक विकार के जोखिम कारक मुख्य है-
- पिछले दर्दनाक अनुभवों से अवगत होना, विशेषकर बचपन के दौरान
- खुद को या लोगों को आहत होते या मारे जाते हुए देखना
- भय, असहायता या अत्यधिक भय महसूस करना
- घटना के बाद बहुत कम या कोई सामाजिक समर्थन न होना
- घटना के बाद अतिरिक्त तनाव से निपटना, जैसे किसी प्रियजन की हानि, दर्द-चोट या नौकरी या घर की हानि
- मानसिक बीमारी का व्यक्तिगत या पारिवारिक इतिहास होना
PTSD का इलाज कैसे किया जाता है?
पीटीएसडी के शिकार व्यक्ति को अपने इलाज के लिए समय रहते किसी मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर से संपर्क करना चाहिए। इस समस्या का मुख्य उपचार मनोचिकित्सा और दवाओं के जरिए किया जाता है। इसके अलावा निम्न थैरेपी की मदद से भी PTSD का इलाज किया जाता है-
- बिहेवियरल थैरेपी: इस थैरेपी में पीड़ित व्यक्ति से बातचीत कर उसके बर्ताव को समझा जाता है। इसके साथ ही व्यक्ति के अंदर मौजूग नकारात्मक विचार को दूर करने की भी कोशिश की जाती है।
- आघात केंद्रित सीबीटी: इस थैरेपी के जरिए पीड़ित से उस घटना के बारे में बात की जाती है, जिससे उससे आघात पहुंचा है, ताकि वह हल्का महसूस करें और उसकी झिझक दूर हो सके।
- रीप्रोसेसिंग थैरेपी: इसमें पीड़ित को चिकित्सक की अंगुली को देखते हुए अपने आघात के बारे में बातें करने को कहा जाता है। इसे कारगर तरीका माना जाता है।
- एक्सपोजर थैरेपी: इस थैरेपी के जरिए अतीत में हुई किसी दुर्घटना या बुरे सपने के बारे में जानने की कोशिश की जाती है, ताकि इसके आधार पर इलाज की आगे की रूप-रेखा तैयार की जाती है।
- फेमिली थैरेपी: कई बार पीटीएसडी से ग्रसित व्यक्ति के जीवन में मौजूद परेशानी की वजह से उनके परिवार के लोग प्रभावित होने लगते हैं। इस स्थिति में फेमिली थैरेपी का इस्तेमाल किया जाता है।
Picture Courtesy: Freepik
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