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    क्या है नोसेबो इफेक्ट और कैसे यह कर सकता है आपकी सेहत को प्रभावित? जानें यहां

    बीमार होने के बावजूद अगर आप हेल्थ को लेकर पॉजिटिव सोचेंगे तो आप जल्दी उससे रिकवर हो सकते हैं।वहीं अगर आप लगातार नेगेटिव सोचते हैं तो सेहत सुधारने की जगह और ज्यादा बिगड़ सकती है। ऐसा क्यों होता है और कैसे कर सकते हैं इससे बचाव आज के लेख में हम इसी के बारे में जानने वाले हैं विस्तार से।

    By Priyanka Singh Edited By: Priyanka Singh Updated: Sun, 24 Dec 2023 11:07 AM (IST)
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    क्या है नोसेबो इफेक्ट और कैसे यह सेहत को कर सकता है प्रभावित

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। घर में कोई सदस्य बीमार होता है, तो बड़े- बुजुर्ग उसका हौसला बढ़ाने के लिए कहते रहते हैं कि हल्का- फुल्का बुखार है, जल्दी ठीक हो जाएगा। ऐसा सिर्फ मरीज का दिल बहलाने के लिए नहीं कहा जाता, बल्कि ये सकारात्मक विचार बीमार व्यक्ति के मन पर भी गहरा असर डालती हैं। इससे मरीज की सेहत में जल्द सुधार देखने को मिलती है। इसलिए तो कहा जाता है कि अच्छा सोचोगे, तो अच्छा ही होगा और बुरा सोचोगे तो बुरा। 

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    रिसर्च ने भी की है पुष्टि

    इस बात को सालों पहले विज्ञान द्वारा भी प्रमाणित किया जा चुका है। अमेरिकी साइंटिस्ट वॉल्टर पी कैनेडी ने 1961 में सबसे पहले एक शब्द 'नोसबो इफेक्ट' का इस्तेमाल किया था। जिसकी जन्म लैटिन शब्द नोसेरा से हुई थी, इसका मतलब होता है नुकसान पहुंचाना। ट्रीटमेंट के दौरान बीमार व्यक्ति की मनोदशा पर उसके पॉजिटिव थॉट्स का क्या असर होता है, यह जाानने के लिए साइंटिस्ट ने जब उनके बारे में स्टडी की तो पता लगा कि अच्छे रिजल्ट के बारे में सोचने से दवाओं का सेवन करने वाले लोगों की हेल्थ जल्दी इंप्रूव होती है। इस प्रभाव का नाम प्लेसीबो इफेक्ट दिया गया, जिसका मतलब होता है, मैं जल्दी ठीक हो जाऊंगा/जाऊंगी। इसी स्टडी के उलट प्रभाव को समझने के दौरान नोसेबो इफेक्ट का असर सामने आया। इन दोनों ही तरह की रिसर्च में कई रोचक परिणाम देखने को मिले, जैसे- मामूली सिरदर्द होने पर वैज्ञानिकों ने लोगों को दर्द निवारक रहित टॉफी जैसी ऐसी ही सिंपल गोली दी, जिसे लेने के बाद लोगों ने कहा कि उन्हें आराम महसूस हो रहा है, बल्कि असल में उन्हें कोई दवा दी ही नहीं गई थी।

    क्यों होता है ऐसा?

    सेहत को लेकर जागरूक रहना अच्छी बात है, लेकिन जो लोग कुछ ज्यादा ही करते रहते हैं उनमें भी नेसोबो इफेक्ट के लक्षण देखने को मिलते हैं। स्टडी में यह सामने आया है कि जब कोई व्यक्ति लगातार ऐसा सोचता रहे कि मुझे दर्द हो रहा है, मुझे कोई बीमारी है, तो कुछ वक्त बाद वाकई उसे शरीर में कहीं न कहीं दर्द जैसा महसूस होने लगता है, जबकि फिजिकली वो फिट होता है। इसके पीछे मनोवैज्ञानिक कारण जिम्मेदार होते हैं।

    इंटरनेट मीडिया और गैजेट्स

    आजकल किसी भी स्वास्थ्य समस्या का नाम सुनते ही लोग इंटरनेट पर उसके बारे में सर्च करना शुरू कर देते हैं। वहां दी गई हर जानकारी पूरी तरह सही नहीं होती। कई बार किसी हेल्थ प्रॉब्लम की डिटेल्स इंटरनेट पर ऐसी दी हुई होती है कि वो लोगों को और ज्यादा डिस्टर्ब कर सकती है। शरीर में महसूस हो रहे हल्के-फुल्के लक्षणों को किसी गंभीर बीमारी से कनेक्ट कर लेते हैं। इसी तरह 24 घंटे स्मार्ट वॉच जैसे गैजेट्स का इस्तेमाल करने वाले लोग हमेशा इसी चिंता से ग्रस्त रहते हैं कि आज 10 हजार कदम चलने से मेरा टारगेट पूरा नहीं हुआ, कल रात मैं 8 घंटे की नींद नहीं ले पाया, मेरा ब्लड प्रेशर बढ़ रहा है, नाड़ी तेज गति से चल रही है। इस तरह गैजेट्स लोगों को हेल्थ एंग्जाइटी का मरीज बना देते हैं। इनकी वजह से हेल्दी व्यक्ति भी स्वयं को थका हुआ और बीमार महसूस करने लगता है। ऐसी समस्या से बचाव के लिए गैजेट्स का सीमित इस्तेमाल करें और इंटरनेट से दूर रहें। अपनी सेहत के बारे में हमेशा अच्छा सोचें, तो हमेशा हेल्दी और एक्टिव रहेंगे।

    ऐसे करें बचाव

    - थॉट रिप्लेसमेंट का तरीका अपनाएं। जब भी आपके मन में सेहत के प्रति कोई नेगेटिव ख्याल आए, तो उससे अपना ध्यान भटकाने की कोशिश करें।

    - मोबाइल, स्मार्ट वॉच और हेल्थ एप का बहुत ज्यादा इस्तेमाल न करें।

    - नेगेटिव बातों से ध्यान हटाने के लिए मनपसंद गाने सुनें, अच्छी किताबें पढ़ें और अपने इंटरेस्ट का काम करें।

    - योग और मेडिटेशन को अपने रूटीन में शामिल करें।

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    Pic Credit- freepik