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    Ear Pain: फ्लाइट या पहाड़ों पर जाकर क्यों होने लगता है कानों में दर्द, एक्सपर्ट से जानें इसका इलाज

    By Ritu ShawEdited By: Ritu Shaw
    Updated: Thu, 08 Jun 2023 03:38 PM (IST)

    Ear Pain आपने कभी न कभी ऊंची जगहों का रुख किया होगा और तब आपको अपने कानों में दर्द या फिर कान बंद होने का भी अनुभव हुआ होगा। यह दर्द वैसे तो आम है लेकिन कई बार गंभीर रूप ले सकता है।

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    Ear Pain: ऊंची जगह पर जाने से क्यों होता है कान में दर्द?

    नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Ear Pain: नई-नई जगहों को एक्स्प्लोर करना जितना शानदार होता है, उतना ही चुनौतीपूर्ण भी। खासकर ऊंचाई भरी जगहों पर जाना। इस दौरान कुछ लोगों को कानों में दर्द का अनुभव होता है, जिसे विज्ञान की भाषा में ईयर बैरोट्रॉमा के रूप में जाना जाता है। यह दर्द क्यों होता है और इससे राहत पाने के लिए क्या करें इसके बारे में जानने के लिए हमने गुड़गांव के फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट के प्रिंसिपल डायरेक्टर (ईएनटी) डॉ. अतुल कुमार मित्तल से बात की।

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    ईयर बैरोट्रॉमा क्या होता है?

    ईयर बैरोट्रॉमा एक ऐसी स्थिति है, जो एयर प्रेशर में बदलाव के कारण कान में परेशानी का कारण बनती है। कानों में एक ट्यूब होती है, जो कान के बीच के हिस्सों को गले और नाक से जोड़ती है। यह ट्यूब कान के दबाव को नियंत्रित करने में भी मदद करती है। इस ट्यूब को यूस्टेशियन ट्यूब (Eustachian Tube) कहा जाता है। ईयर बैरोट्रॉमा एक आम प्रक्रिया है, खासकर ऐसे वातावरण में जहां आप काफी ऊंचाई पर होते हैं। उदारहण के लिए प्लेन में सफर करते वक्त या फिर पहाड़ों पर।

    ऊंचाई वाली जगहों पर या फ्लाइट में बैठने से क्यों होता है कान का दर्द?

    अतुल कहते हैं, ऊंची जगहों पर जाने से कानों में होने वाले दर्द का कारण जानने से कान की अंदरूनी बनावट को समझना जरूरी है। हमारे कान में मध्‍य कान (मिडल ईयर) ऐसा भाग है, जो ईयर ड्रम के पीछे होता है और इसमें हवा का दबाव उतना ही होता है, जो कि वातावरण का होता है। यह ईयर ड्रम के कंपन (वाइब्रेशन) और सुनने के लिहाज़ से महत्‍वपूर्ण होता है। कान में इस दबाव का रखरखाव वेंटिलेशन ट्यूब यानी यूस्‍टेशियन ट्यूब द्वारा किया जाता है, जो नैसोफैरिंक्‍स और मध्‍य कान को आपस में जोड़ती है।

    लेकिन जब हम किसी ऐसे स्‍थान पर होते हैं जहां हवा का दबाव कम होता है, जैसे कि किसी ऊंचे स्‍थान पर या फ्लाइट में उड़ान भर रहे होते हैं या फिर स्‍कूबा डाइविंग के दौरान दबाव बढ़ता है, तो कान में दर्द होने लगता है या कान बंद हो जाते हैं क्‍योकि वेंटिलेशन ट्यूब हवा के दबाव को बरकरार रखने में नाकाम रहती है।

    क्या गंभीर रूप ले सकती है ईयर बैरोट्रॉमा?

    ईयर बैरोट्रॉमा की परेशानी वैसे तो काफी आम है और फ्लाइट के टेक ऑफ या लैंडिंग के समय भी लोगों को इसका सामना करना पड़ता है। इस दौरान भी मिडल ईयर में नेगेटिव प्रेशर पड़ता है, जिससे कान बंद हो जाते हैं या उनमें दर्द होता है। कई बार यह दर्द हल्का होता है, लेकिन कुछ मामलों में यह काफी तेज़ भी हो सकता है।

    ऐसा भी हो सकता है कि इसके साथ रिंगिंग सेंसेशन (कान में घंटियां बजने) या चक्‍कर आने की शिकायत भी हो। ईयर बैरोट्रॉमा की सबसे गंभीर स्थिति में ईयर ड्रम में ब्‍लीडिंग (हेमोटिंपेन) की समस्‍या भी हो सकती है। ऐसा आमतौर पर तब होता है जब वेंटिलेशन ट्यूब इतनी मजबूत नहीं होती कि वह हवा के दबाव को बराबर कर सके। हालांकि, ऐसा खांसी-जुकाम, एसिड रिफ्लक्‍स या अन्‍य किसी स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी परेशानी की वजह से भी हो सकता है।

    ईयर बैरोट्रॉमा से राहत पाने के लिए क्या करें?

    वहीं इस समस्या से राहत पाने के लिए हमने गुड़गांव के सीके बिरला हॉस्‍पिटल के ईएनटी, लीड कंसल्‍टैंट डॉ अनीष गुप्‍ता से जानना चाहा, तो उन्होंने इसके इंस्टेंट इलाज के लिए गरम पानी पीने या चढ़ने-उतरने के दौरान कैंडी लेने की सलाह दी। 

    वह कहते हैं कि, अगर आपको भी ऐसी कोई समस्‍या पेश आए तो कानों को राहत पहुंचाने के लिए, कैन्‍डी चूसें, गरम पानी के घूंट भरे या फिर हल्‍के-फुल्‍के तरीके से वल्‍सल्‍वा मैनुवर (सांस बाहर निकालने की एक खास तकनीक जो बंद कान खोलने में मददगार होती है) तकनीक का इस्‍तेमाल करें।

    कानों के बंद होने और दर्द की समस्‍या आमतौर पर लैंडिंग होते ही खुद-ब-खुद खत्‍म हो जाती है, लेकिन कई बार यह 2 से 3 हफ्तों तक बनी भी रहती है। इससे बचने के लिए, खांसी-जुकाम से पीड़‍ित होने पर विमानयात्राओं से बचें और अगर दर्द काफी तेज़ हो या लक्षण काफी लंबे समय तक बने रहें या हर बार फ्लाइट में आपको इन लक्षणों का सामना करना पड़ता हो तो ईएनटी फिजिशियन से सलाह लें।

    इन लक्षणों पर तुरंत ध्यान देना जरूरी है, क्योंकि ईयर बैरोट्रॉमा के गंभीर मामलों के परिणामस्वरूप अधिक गंभीर समस्याएं हो सकती हैं, जिसमें सुनने की क्षमता पर असर पड़ना भी शामिल है। वहीं, बेचैनी बरकरार रहने पर ईएनटी विशेषज्ञ से मिलने की सलाह दी जाती है।

    Pic Credit: Freepik