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    Cognitive Test की मदद से समय रहते लगा सकते हैं इन दिमागी बीमारियों का पता, जानें कब पड़ती है इसकी जरूरत

    Updated: Sat, 20 Jul 2024 07:13 PM (IST)

    बीते कुछ समय से अमेरिका में लगातार मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडेन का Cognitive Test कराने की मांग उठ रही है। ऐसे में सभी के मन में यह सवाल है कि आखिर यह टेस्ट क्या है और इसके क्यों और कब कराया जाता है। अगर आपके मन में भी इसे लेकर सवाल है तो आज इस आर्टिकल में डॉक्टर से जानेंगे इस टेस्ट से जुड़ी सभी जरूरी बातें।

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    क्यों होती है कॉग्नेटिव टेस्ट की जरूरत (Picture Credit- Freepik)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। दुनियाभर में इन दिनों अमेरिकी चुनाव चर्चा में बना हुआ है। नवंबर में होने वाले इस चुनाव के जरिए राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव किया जाएगा। राष्ट्रपति पद के लिए फिलहाल यूएस के मौजूदा राष्ट्रपति 81 वर्षीय जो बाइडन और पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प रेस में है। हालांकि, पिछले कुछ दिनों से अमेरिका में विपक्षी दल में जो बाइडन की दावेदारी को लेकर काफी विरोधाभास देखने को मिल रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि बीते कुछ समय से बाइडन के स्वास्थ्य को लेकर कई तरह की खबरें सामने आ रही हैं, जिसे देखते हुए उनका Cognitive Test कराने का मांग होने लगी थी।

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    विपक्षी दल की इस मांग के बाद से ही दुनियाभर में कॉग्नेटिव टेस्ट के बारे में चर्चाएं होने लगी। हर कोई यह जानने के लिए उत्सुक था कि आखिर यह टेस्ट क्या होता है, कब कराया जाता है और इसे कराने से किन बीमारियों का पता लगाया जा सकता है। ऐसे में इस बारे में विस्तार से जानने के लिए फरीदाबाद के फोर्टिस हॉस्पिटल में न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट के निदेशक डॉ.विनित बंगा से बातचीत कर इस टेस्ट के बारे में जाना।

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    क्या है Cognitive Test?

    डॉक्टर बताते हैं कि Cognitive Test, जिसे संज्ञानात्मक परीक्षण भी कहा जाता है, एक प्रकार का असेसमेंट है, जिसका इस्तेमाल मेमोरी, ध्यान, प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल, लैंग्वेज एबिलिटीज और अन्य मेंटल फंक्शन सहित कॉग्निशन के विभिन्न पहलुओं को मापने के लिए किया जाता है। ये टेस्ट विभिन्न तरीकों से लिया जा सकता है, जिसमें जैसे प्रश्नावली, पहेलियां, मेमोरी एक्सरसाइज और प्रॉब्लम सॉल्विंग टास्ट शामिल हैं।

    कब होती है Cognitive Test की जरूरत

    • बीमारी का पता लगाने के लिए: यह टेस्ट कॉग्नेटिव लॉस का निदान करने में मदद करते हैं। इससे अल्जाइमर डिजीज, डिमेंशिया और अन्य न्यूरोडीजेनेरेटिव कंडीशन का पता लगाया जा सकता है।
    • बेसलाइन असेसमेंट: वे कॉग्नेटिव फंक्शनिंग की एक बेसलाइन स्थापित करते हैं, जो समय के साथ बदलावों की निगरानी के लिए उपयोगी हो सकते हैं, खासकर वयस्कों और बुजुर्गों में।
    • चोटों या बीमारियों के प्रभाव का असेसमेंट: सिर की चोट, स्ट्रोक या अन्य न्यूरोलॉजिकल एक्सीडेंट के बाद कॉग्नेटिव टेस्ट की मदद से कॉग्नेटिव इफेक्ट की सीमा तय कर सकते हैं और जल्दी ठीक होने के लिए गाइडलाइन दे सकते हैं।
    • एजुकेशनल असेसमेंट: बच्चों में, कॉग्नेटिव टेस्ट की मदद से सीखने की अक्षमताओं की पहचान कर सकते हैं और अकेडमिक प्लानिंग के लिए गाइडेंस दे सकते हैं।

    कॉग्नेटिव टेस्ट से किन बीमारियों का पता चलता है-

    डॉक्टर बताते हैं कि इन टेस्ट की मदद से, विभिन्न स्वास्थ्य स्थितियों का पता लगाया जा सकता है, जिनमें निम्न शामिल हैं:-

    • डिमेंशिया: कॉग्नेटिव टेस्ट की मदद से मेमोरी लॉस, लैंग्वेज प्रॉब्लम और डिमेंशिया के अन्य लक्षणों का पता लगाया जा सकता है।
    • अल्जाइमर डिजीज: इस टेस्ट की मदद से अल्जाइमर डिजीज का भी पता चलता है। इसमें cognitive decline के कुछ विशेष पैटर्न अल्जाइमर की ओर इशारा कर सकते हैं।
    • माइल्ड कॉग्नेटिव इंपेयरमेंट (MCI): कॉग्नेटिव डेक्लाइन के शुरुआती लक्षण जो डिमेंशिया में बदल सकते हैं, की भी इस टेस्ट से पहचान की जा सकती है।
    • दिमाग की चोटें: कॉग्नेटिव टेस्ट का इस्तेमाल दिमाग में लगी चोटों और अन्य आघात का पता लगाने के लिए भी किया जाता है।
    • स्ट्रोक: स्ट्रोक के कॉग्नेटिव इफेक्ट, जैसे बोलने, याददाश्त या एक्सीक्यूटिव फंक्शन में कठिनाई का मूल्यांकन भी इस टेस्ट से किया जा सकता है।

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