लेप्टोस्पायरोसिस के खतरे को कम करने के लिए ये हैं कारगर तरीके
मानसून के दौरान पानी से जुड़ी कई तरह की बीमारियां फैलने का खतरा काफी बढ़ जाता है। ऐसे में उन्हें तुरंत पहचानना और इलाज करना जरूरी है। मानसून के दौरान कीचड़ व पानी के भरे गड्ढों से बचना संभव नहीं है। इतना ही नहीं इस मौसम में सीवेज के गंदे पानी के संपर्क में आने की संभावना भी बढ़ जाती है।

नई दिल्ली, ब्रांड डेस्क। मानसून में भारी बारिश के कारण कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। मानसून में अक्सर सड़कों पर पानी भर जाता है और ऐसे में इन गंदी सड़कों पर चलने से आप कई तरह की बीमारियों की चपेट में आ सकते हैं। इसलिए, यह जरूरी है कि इस मौसम में न केवल अतिरिक्त सावधानी बरती जाए, बल्कि लोगों को भी जागरुक किया जाए, जिससे वे स्वयं को सुरक्षित रख सकें। Savlon Swasth India Mission का मानना है कि जागरूकता और स्वच्छता के जरिए ही एक स्वस्थ और मजबूत भारत का निर्माण किया जा सकता है।
बीमारी को समझें और उससे बचाव के तरीके जानें
मानसून के दौरान पानी से जुड़ी कई तरह की बीमारियां फैलने का खतरा काफी बढ़ जाता है। ऐसे में उन्हें तुरंत पहचानना और इलाज करना जरूरी है। मानसून के दौरान, कीचड़ व पानी के भरे गड्ढों से बचना संभव नहीं है। इतना ही नहीं, इस मौसम में सीवेज के गंदे पानी के संपर्क में आने की संभावना भी बढ़ जाती है। इसलिए, इस मौसम में खुद को सुरक्षित रखने के लिए कुछ जरूरी कदम अवश्य उठाने चाहिए। सुनिश्चित करें कि आप लंबी पैंट और जूते पहनें और चोट लगने पर वॉटरप्रूफ बैंडेज का ही इस्तेमाल करें। इसके अलावा, पानी में एंटीसेप्टिक मिलाकर पैरों और हाथों को अच्छी तरह से धोएं, ताकि किसी भी तरह के संक्रमण का खतरा टल सके।
यह लेख मानसून के दौरान होने वाली समस्या अर्थात् लेप्टोस्पायरोसिस के लक्षणों, उनके फैलने के तरीके और बचाव के तरीकों के बारे में जानकारी दे रहा है-
लेप्टोस्पायरोसिस क्या है?
सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के अनुसार, लेप्टोस्पायरोसिस एक बैक्टीरियल इंफेक्शन है जो जानवरों के मूत्र और मल के जरिए फैलता है। यह मिट्टी, पानी और शाक-सब्जी को दूषित करता है। इस इंफेक्शन के लिए जिम्मेदार बैक्टीरिया को लेप्टोस्पाइरा कहा जाता है। यह इंफेक्शन चूहों, कुत्तों, घोड़ों, सूअरों या गायों सहित अवारा या घरेलू जानवरों के जरिए फैल सकता है।
लेप्टोस्पायरोसिस कैसे होता है?
लेप्टोस्पाइरा से इंफेक्टिड जानवर आसानी से पानी या मिट्टी को दूषित कर सकता हैं, जिससे बैक्टीरिया अन्य जानवरों या मनुष्यों में फैल सकता है। किसी को लेप्टोस्पायरोसिस कई तरीकों से हो सकता है-
- लेप्टोस्पाइरा से संक्रमित जानवर के मूत्र या अन्य शारीरिक तरल पदार्थ के साथ सीधा संपर्क होने पर।
- आंखों, मुंह, नाक, म्यूकस मेम्ब्रेन या खुले घावों का दूषित पानी या मिट्टी से सीधा संपर्क होने पर।
लेप्टोस्पायरोसिस आमतौर पर सीवेज जैसे दूषित पानी के संपर्क में आने से होता है। मानसून के दौरान सीवेज के दूषित पानी के संपर्क में आने का जोखिम कई गुना बढ़ जाता है, क्योंकि ड्रेनेज लाइनों में लीकेज के कारण सड़कों पर पानी भर जाता है, जिससे इन बैक्टीरिया के इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है। इस बीमारी के लक्षण नजर आने में 5-14 दिन लग सकते हैं। हालांकि, लक्षण नजर आने की अवधि 2-30 दिनों की होती है।
लक्षणों को पहचानें
लेप्टोस्पायरोसिस के लक्षण हर व्यक्ति में अलग-अलग हो सकते हैं। लेप्टोस्पायरोसिस के सामान्य लक्षणों में बुखार, सिरदर्द, रैशेज, उल्टी और पेट दर्द शामिल हैं। इस स्थिति में डॉक्टर एंटीबायोटिक दवाओं का सहारा लेते हैं। हालांकि, सीडीसी किसी भी लक्षणों पर पैनी नजर बनाए रखने और लापरवाही ना बरतने की सलाह देता है। अगर लक्षणों को नजरअंदाज करके इलाज नहीं करवाया जाता है तो इससे अंदरूनी ब्लीडिंग के साथ-साथ ऑर्गन फेलियर की समस्या भी हो सकती है।
लेप्टोस्पायरोसिस के खतरे को कम करने के लिए उपाय
मानसून के मौसम के दौरान लेप्टोस्पायरोसिस को रोकने के लिए कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए, खासकर जलभराव वाले क्षेत्रों में। इंफेक्शन को रोकने का सबसे अच्छा तरीका रुके हुए पानी में न जाना है। आप खुद को सुरक्षित रखने के लिए कुछ उपाय अपना सकते हैं-
- रुके हुए पानी में चलने से बचें- रुके हुए पानी में चलने से परहेज करें, क्योंकि यह बैक्टीरिया के लिए प्रजनन स्थल हो सकता है।
- खुद की करें सुरक्षा-मानसून में बाहर निकलते समय लंबी पैंट पहनें। चप्पल पहनने के स्थान पर रबर के जूते पहनें। यदि कहीं पर कट लग गया है तो उसे कवर करें क्योंकि वे दूषित पानी या मिट्टी के संपर्क को कम करने में मदद करते हैं।
- स्वच्छता का रखें ध्यान- घर लौटने के बाद, बैक्टीरिया को खुद से दूर रखने के लिए अपने पैरों और हाथों को अच्छी तरह से धो लें। यदि आप सीवेज पानी या संभावित रूप से दूषित पानी के संपर्क में आए हैं, तो पानी में एंटीसेप्टिक मिलाएं और पैरों व हाथों को अच्छी तरह से धोएं। अंत में, एक साफ तौलिये से सुखाएं।
इसके अलावा, डॉक्टर द्वारा दी गई सलाह के अनुसार साफ-सफाई का ध्यान रखने और समय पर उपचार के जरिए मानसून में खुद को सुरक्षित रखा जा सकता है।

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