Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    कोविड संंक्रमण के इस दौर में फेफड़ों को रखें स्वस्थ और सुरक्षित इन उपायों के साथ

    By Priyanka SinghEdited By:
    Updated: Tue, 11 Aug 2020 07:11 AM (IST)

    फेफड़े शरीर के लिए एयर फिल्टर का काम करते हैं। इनमें होने वाली मामूली-सी खराबी से भी कई गंभीर समस्याएं पैदा हो सकती हैं। कोविड संक्रमण के दौर में इस अंग का खास ध्यान रखें।

    कोविड संंक्रमण के इस दौर में फेफड़ों को रखें स्वस्थ और सुरक्षित इन उपायों के साथ

    अगर शरीर के प्रमुख अंगों की बात की जाए तो इस दृष्टि से फेफड़ों की अहमियत सबसे ज़्यादा है क्योंकि इन्हीं की वजह से हम सांस ले पाते हैं। नाक और सांस की नलियों के साथ मिलकर ये शरीर के भीतर शुद्ध ऑक्सीजन पहुंचाने और कॉर्बनडाइऑक्साइड को बाहर निकालने का काम करते हैं। भले ही ये शरीर के भीतर होते हैं पर किसी भी तरह के संक्रमण या प्रदूषण का सबसे ज़्यादा असर इन्हीं पर ही पड़ता है। कोरोना वायरस का भी सीधा असर व्यक्ति के लंग्स पर ही पड़ता है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि मेडिकल साइंस के क्षेत्र में अभी कोई ऐसी तकनीक उपलब्ध नहीं है, जिससे किडनी, लिवर या हार्ट की तरह लंग्स को भी टांसप्लांट किया जा सके। इसीलिए हमें इनका विशेष ध्यान रखने की ज़रूरत होती है।क्या है कार्य प्रणाली

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    हमारे शरीर को जीवित रखने के लिए प्रत्येक कोशिका को शुद्ध ऑक्सीजन की ज़रूरत होती है। इसे पूरा करने की जि़म्मेदारी हमारे श्वसन-तंत्र पर होती है, जो नाक, सांस की नलियों और फेफड़ों के साथ मिलकर सांस लेने और छोड़ने की प्रक्रिया को संचालित करता है। सांस लेने के दौरान नाक के ज़रिए हवा फेफड़ों तक पहुंचती है। उसमें मौज़ूद धूल-कण और एलर्जी फैलाने वाले बैक्टीरिया के कुछ अंश नाक के भीतर ही फिल्टर हो जाते हैं पर इतना ही काफी नहीं है। फेफड़ों में अत्यंत बारीक छलनी की तरह छोटे-छोटे असंख्य वायु तंत्र होते हैं, जिन्हें एसिनस कहा जाता है। फेफड़े में मौज़ूद ये वायु तंत्र हवा को दोबारा फिल्टर करते हैं। इस तरह ब्लड को ऑक्सीजन मिलता है और हार्ट के ज़रिए शरीर के हर हिस्से तक शुद्ध ऑक्सीजन युक्त ब्लड की सप्लाई होती है। इसके बाद बची हुई हवा को फेफड़े दोबारा फिल्टर करके उसमें मौज़ूद नुकसानदेह तत्वों को सांस छोड़ने की प्रक्रिया द्वारा शरीर से बाहर निकालने का काम करते हैं। अगर लंग्स अपना काम सही तरीके से न करें तो दूषित वायु में मौज़ूद बैक्टीरिया और वायरस रक्त में प्रवेश करके दिल सहित शरीर के अन्य प्रमुख अंगों को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसीलिए स्वस्थ और सक्रिय जीवन के लिए व्यक्ति के फेफड़े भी पूरी तरह मज़बूत होने चाहिए और यह तभी संभव होगा, जब हम फेफड़ों की कार्य-प्रणाली को समझते हुए, इनकी सुरक्षा का ध्यान रखें। 

    कब होती है रुकावट

    वातावरण में मौज़ूद वायरस और बैक्टीरिया की वजह से फेफड़े में संक्रमण और सूजन की समस्या होती है, जिसे न्यूमोनिया कहा जाता है। सांस का बहुत तेज़ या धीरे चलना, सीने से घरघराहट की आवाज़ सुनाई देना, खांसी-बुखार आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं। छोटे बच्चों और बुज़ुर्गों का इम्यून सिस्टम बहुत कमज़ोर होता है। इसलिए अकसर उनमें यह समस्या देखने को मिलती है। प्रदूषण फेफड़े का सबसे बड़ा दुश्मन है। ज़्यादा स्मोकिंग करने वाले लोगों के फेफड़े और सांस की नलियों में नुकसानदेह केमिकल्स का जमाव होने लगता है। आमतौर पर सांस की नलियां भीतर से हलकी गीली होती हैं लेकिन धुआं, धूल और हवा में मौज़ूद प्रदूषण की वजह से इनके भीतर मौज़ूद ल्यूब्रिकेंट सूखकर सांस की नलियों कीभीतरी दीवारों से चिपक जाता है। इससे व्यक्ति को सांस लेने में तकलीफ होती है। बदलते मौसम में हानिकारक बैक्टीरिया ज़्यादा सक्रिय होते हैं और उनसे लड़ने के लिए इम्यून सिस्टम को ज़्यादा मेहनत करनी पड़ती है। इसलिए कुछ लोगों को इस दौरान भी सांस लेने में परेशानी होती है। ज्य़ादा गंभीर स्थिति में ब्रेन तक ऑक्सीज़न पहुंचने के रास्ते में भी रुकावट आती है तो ऐसी अवस्था सीपीओडी यानी क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिज़ीज़ कहा जाता है। ऐसी स्थिति में मरीज़ को नेब्युलाइज़र द्वारा दवा देने की ज़रूरत होती है और डॉक्टर पल्स ऑक्सीमीटर द्वारा यह जांचते हैं कि ब्रेन को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीज़न मिल रही है या नहीं? अगर ब्रेन में ऑक्सीजन सैचुरेशन 90 प्रतिशत से कम हो तो व्यक्ति को अलग से ऑक्सीजन देने की आवश्यकता होती है। ऐसे हालात में उसे कुछ समय के लिए हॉस्पिटल में एडमिट कराने की भी नौबत आ सकती है। कुछ विशेष स्थितियों में सीपीओडी के गंभीर मरीज़ों के लिए घर पर ही पल्स ऑक्सीमीटर, ऑक्सीजन सिलिंडर या कन्संट्रेटर रखने की ज़रूरत पड़ती है। उन उपकरणों का इस्तेमाल बहुत आसान होता है और इनकी मदद से मरीज़ के लिए सांस लेने की प्रक्रिया आसान हो जाती है।      

    उपचार से बेहतर बचाव

    अगर आप खुद को सीओपीडी, न्यूमोनिया और टीबी जैसी गंभीर बीमारियों से बचाना चाहते हैं तो स्मोकिंग से दूर रहें। घर से बाहर निकलते समय मास्क ज़रूर पहनें। कार का शीशा हमेशा बंद रखें। बच्चों को इन्फेक्शन से बचाने के लिए घर में सफाई का पूरा ध्यान रखें। अनुलोम-विलोम की क्रिया भी फेफड़ों को स्वस्थ बनाए रखने में मददगार होती है। इसके बावज़ूद अगर सांस लेने में तकलीफ हो तो बिना देर किए डॉक्टर से सलाह लें।

    डॉ. हिमांशु गर्ग, एचओडी डिपार्टमेंट ऑफ रेस्पिरेटरी एंड क्रिटिकल केयर, आर्टिमिज़ हॉस्पिटल, गुरुग्राम

    Pic credit- https://www.freepik.com/free-vector/lungs-physiology-illustration_843334.htm#page=1&query=healthy%20lungs&position=5

    comedy show banner
    comedy show banner