सिकल सेल एनीमिया: उन्मूलन के लिए अभियान
Sickle Cell Anemiaसिकल सेल रोग में होने वाले एनीमियाफेफड़ों के संक्रमण प्रसव के समय होने वाले आकस्मिक रक्त प्रवाह एवं अन्य पेचीदगियों का लक्षणिक प्रबंधन और उपचार किया जाता है। वर्तमान में सिकल सेल रोग के जड़ से उन्मूलन का एक मात्र उपाय बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन है।
नई दिल्ली, आकाश शुक्ला/शशिकांत तिवारी। Sickle Cell Anemia: 2023-24 के केंद्रीय बजट में सिकल सेल एनीमिया बीमारी की चर्चा और 2047 तक इसके उन्मूलन के लिए अभियान चलाने की घोषणा होने से हर तरफ इसकी चर्चा है। छत्तीसगढ़ समेत मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, राजस्थान, झारखंड, उत्तर प्रदेश समेत अन्य राज्यों यह बीमारी फैली हुई है। छत्तीसगढ़ में 15 से 25 प्रतिशत तो मध्य प्रदेश में 10 से 30 प्रतिशत लोग इस बीमारी से प्रभावित हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार विश्व के सात प्रतिशत लोग इस बीमारी की चपेट में हैं। उन्मूलन अभियान के तहत जनजातीय इलाकों में रहने वाले शून्य से 40 वर्ष आयु वर्ग के सात करोड़ लोगों की जांच की जाएगी और उन्हें जागरूक किया जाएगा। सिकल सेल एनीमिया की विभीषिका का संज्ञान लेते हुए संयुक्त राष्ट्र प्रतिवर्ष 19 जून को विश्व सिकल सेल दिवस मनाता है।
क्या है सिकल सेल एनीमिया
रायपुर स्थित सिकल सेल संस्थान के निदेशक डा. आशीष सिन्हा के अनुसार सिकल सेल एक आनुवंशिक बीमारी है। इसमें लाल रक्त कोशिकाएं (आरबीसी) टेंढ़ी हो जाती हैं। रक्त प्रवाह के दौरान ये टूटने लगती हैं, जिससे खून की कमी हो जाती है। यह बीमारी ज्यादातर आदिवासी समुदाय में पाई जाती है। इनमें मलेरिया के मामले पहले ज्यादा होते थे, इस कारण जीन में बदलाव हुआ और आरबीसी का रूप बदल गया। इसमें पति-पत्नी दोनों के पीड़ित होने पर बच्चों में बीमारी आने की पूरी आशंका रहती है। रक्त कणों के जल्दी-जल्दी टूटने से रोगी को सदैव रक्त की कमी (एनीमिया) रहती है, इसलिए इस रोग को सिकल सेल एनीमिया भी कहा जाता है।
ये रक्त कण शरीर की छोटी रक्तवाहिनियों (शिराओं) में फंसकर लिवर, किडनी, मस्तिष्क आदि अंगों के रक्त प्रवाह को बाधित कर देते हैं। यह बीमारी अफ्रीका, सऊदी अरब, एशिया और भारत में ज्यादा पाई जाती है, जहां मलेरिया का प्रकोप अधिक है। वस्तुतः विश्व के आधे सिकल सेल रोगी भारत में हैं।
उपचार की दिशा
सिकल सेल रोग में होने वाले एनीमिया,फेफड़ों के संक्रमण, प्रसव के समय होने वाले आकस्मिक रक्त प्रवाह एवं अन्य पेचीदगियों का लक्षणिक प्रबंधन और उपचार किया जाता है। वर्तमान में सिकल सेल रोग के जड़ से उन्मूलन का एक मात्र उपाय बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन है। हालांकि जीन थेरेपी पर शोध का काम चल रहा है। भविष्य में स्टेम सेल के माध्यम से विकृति जीन को स्वस्थ जीन के रूप में प्रतिस्थापित किया जा सकेगा।
बचाव के उपाय
-जन्म के बाद या लक्षण नजर आने पर जांच कराएं।
-सिकल सेल वाहक आपस में शादी ना करें।
-शादी से पहले कुंडली मिलान व जागरूकता लाएं।
-सिकल सेल मरीज नियमित इलाज लें।
आज से 100 साल पहले डा.मेसन और जेम्स हेरिक ने सबसे पहले माइक्रोस्कोप में लंबे नुकीले और हंसिए के आकार के लाल रक्त कणों को देखा। उन्होंने सिकल जैसे अर्धचंद्राकर आकार के कारण इस बीमारी को सिकल सेल एनीमिया का नाम दिया।
डा. एआर दल्ला, पूर्व अध्यक्ष, भारतीय रेडक्रास सोसायटी, छत्तीसगढ़
क्या हैं लक्षण
खून की कमी, चलने या काम करने पर सांस फूलना, फेफड़े में संक्रमण, तिल्ली का बढ़ जाना।
समय पर बीमारी का पता चल जाए तो हाइड्राक्सी यूरिया नामक दवा से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। बार-बार फेफड़े में संक्रमण हो रहा है। समस्या बढ़ रही है तो बोन मैरो ट्रांसप्लांट कराने पर विचार करना चाहिए। शादी से पहले कुंडली मिलाने की जगह इस बीमारी के वाहक या पाजिटिव होने का मिलान जरूर किया जाना चाहिए।
डा. राहुल भार्गव, हिमैटोलाजिस्ट
फोर्टिस अस्पताल, गुरुग्राम