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    Ayurvedic: साइटिका के दर्द पर आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति का अंकुश

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Thu, 23 Jun 2022 04:26 PM (IST)

    रायपुर के शासकीय आयुर्वेदिक महाविद्यालय के काय चिकित्सा विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डा. अरुणा ओझा ने बताया कि असहनीय होता है साइटिका का दर्द। इसके निदान के लिए तीन साल तक चले शोध के हालिया परिणाम ने आशा की किरण जगाई है।

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    आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति से तैयार दवा इसके दर्द को नियंत्रित करने में प्रभावकारी साबित हो रही है...

    आकाश शुक्ला, रायपुर। चलने, काम करने और उठने-बैठने में दर्द हो और किसी के सहारे की जरूरत पड़े तो इस बात को गंभीरता से लें। इसके अलावा अगर दर्द कमर के निचले हिस्से से शुरू होकर दोनों पैरों में असहनीय स्थिति पैदा करे तो सावधान! यह साइटिका (गृध्रसी व्याधि) का लक्षण हो सकता है। अध्ययनों के अनुसार, देश का हर 10 में से एक व्यक्ति इस बीमारी से पीड़ित है। कुछ वर्षों पूर्व तक साइटिका से अधिकतर 50 वर्ष की उम्र के बाद वाले लोग ही ग्रसित होते थे, लेकिन अब यह पैमाना टूट रहा है। बदली जीवनशैली में युवा भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। यह बात अलग है कि समस्या कम या अधिक हो सकती है। आकड़ों के अनुसार, देश में 25 से 45 वर्ष की उम्र के 10 फीसद लोग साइटिका की चपेट में हैं।

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    रायपुर शासकीय आयुर्वेदिक कालेज के चिकित्सकों द्वारा तीन साल के शोध के बाद तैयार आयुर्वेदिक दवा ने साइटिका रोगियों के वर्षों पुराने दर्द को 80 फीसद तक नियंत्रित कर लिया है। वर्ष 2017 से 21 के बीच किए गए शोध में तैयार दवा के तीन माह तक प्रयोग से साइटिका पीड़ितों को बहुत राहत मिल रही है। इस दवा से आराम पाने वाले कुछ ऐसे मरीज भी हैं, जिन्हें लंबे उपचार के बाद आराम न मिलने पर आपरेशन की सलाह दी गई थी।

    क्या है साइटिका: शरीर की सबसे बड़ी नस रीढ़ की हड्डी से पैर तक जाती है। साइटिका में नस दबने से उसमें सूजन आ जाती है। कुछ मामलों में नस दबने के कारण खिसक जाती है या उसमें सूखापन आ जाता है यानी नस का प्राकृतिक लचीलापन प्रभावित हो जाता है। इससे कमर और पैरों में असहनीय दर्द की परेशानी होती है। रोगी को बैठने तथा चलने में ही नहीं, करवट लेने में भी समस्या होती है। कई बार स्थिति इतनी गंभीर हो जाती है कि रोगी दैनिक कार्य करने में असमर्थ होता है। अंतिम निदान के रूप में आपरेशन का विकल्प ही बचता है। इस बीमारी का एक बड़ा कारण अनियमित जीवनशैली भी है। अनियंत्रित वजन, शारीरिक निष्क्रियता, धूमपान व अल्कोहल का सेवन इसे और जटिल बना देता है। हालांकि इस बीमारी के अधिसंख्य मामले रीढ़ की हड्डी में चोट लगने, भारी वजन उठाने और गलत पोस्चर के कारण होते हैं।

    साइटिका के लक्षण

    • कमर के नीचे के भाग में दर्द और अकड़न
    • दर्द का कमर से एक पांव में पीछे की तरफ नीचे एड़ी तक आना
    • कभी-कभी दोनों पैरों में दर्द होना
    • बैठने या अधिक समय तक खड़े रहने पर दर्द का बढ़ना
    • कूलर या एसी के सामने लगातार बैठने, झुककर काम करने, गाड़ी चलाने, सीढ़ी चढ़ने, वजन उठाने पर दर्द का बढ़ जाना
    • उठते-बैठते वक्त पैरों में तेज दर्द या खिंचाव होना
    • जलन, झनझनाहट या मांसपेशियों में कमजोरी महसूस होना
    • चलने में अचानक चक्कर आना

    तीन समूहों में इलाज: शोध के दौरान मरीजों को तीन समूहों में बांटा गया था। पहले समूह के मरीजों को द्वात्रिशंक गुग्गुल दवा दी गई। दूसरे समूह के मरीजों को गृध्रसीहर तेल दिया गया और तीसरे समूह के मरीजों को दवा एवं तेल के साथ कुछ योगासन बताए गए। इसमें तीसरे समूह के परिणाम बहुत अच्छे रहे। इस समूह के रोगियों को उम्मीद से अधिक लाभ मिला।

    राहत भरी खबर: आयुर्वेदिक कालेज के काय चिकित्सा विभाग में द्वात्रिशंक गुग्गुल (32 तरह की औषधियों के मिश्रण से निर्मित) और गृध्रसीहर तेल (पांच तरह की औषधियों का मिश्रण) तैयार किया गया। यह शोध मेरे निर्देशन में डा. सोमेश कुशवाहा ने पूरा किया है। रोगियों के लिए वर्ष 2017 में इन दवाओं को विकसित कर इससे ग्रसित 60 लोगों पर प्रयोग किया गया। इसके तहत द्वात्रिशंक गुग्गुल के सेवन के साथ गृध्रसीहर तेल का प्रयोग ‘अभ्यंग और कटिवस्ति’ के रूप में कराया गया अर्थात गुनगुने तेल से शरीर के प्रभावित अंग और कमर के आसपास मालिश की गई। इसके साथ ही रोगियों को कुछ विशेष प्रकार के योगासन भी बताए गए।

    तीन महीने में ही रोगियों को 80 से 82 फीसद तक लाभ प्राप्त हुआ। इनमें कुछ मरीज ऐसे भी थे, जो लंबे समय से स्वयं के काम दूसरों के सहारे से कर पा रहे थे और चिकित्सकों ने आपरेशन की सलाह दी थी। उन्हें इतना आराम है कि वे अब खुद चिकित्सालय आकर चिकित्सकीय सलाह ले रहे हैं। आज कालेज के काय चिकित्सा विभाग से हर माह औसतन 600 साइटिका रोगी लाभान्वित हो रहे हैं।