Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Reels Addiction: रील्स का एडिक्शन सेहत के लिए हो सकता है बहुत ही खतरनाक

    By Priyanka SinghEdited By: Priyanka Singh
    Updated: Thu, 08 Jun 2023 03:57 PM (IST)

    Reels Addiction अगर आपको भी रील्स देखने में बहुत मजा आता है टाइम पास आसानी से हो जाता है तो आपको बता दें कि ये एडिक्शन सेहत के लिए हो सकता है बहुत ही खतरनाक। फिर चाहें वो बच्चे हों या बूढ़े।

    Hero Image
    Reels Addiction: रील्स के एडिक्शन से कैसे पाएं छुटकारा

    नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Reels Addiction: पहले मैं मेट्रो में अपना सफर कुछ पढ़ते या रेडियो सुनते हुए वक्त बिताती थी और अगर कभी कम भीड़ वाली मेट्रो मिल गई, तो हाथ-पैरों के साथ नेक की थोड़ी-बहुत स्ट्रेचिंग भी कर लेती थी। डेस्टिनेशन पर पहुंचकर लगता था कि मैंने अपने इस समय को कितने अच्छे से यूज किया, लेकिन अभी फिलहाल कुछ महीनों से मेरा वो समय रील्स देखने में गुजर रहा है। स्क्रॉल करते हुए कैसे मेरा पूरा डेढ़ घंटा निकल जाता है मुझे इसका पता ही नहीं चलता। अपने समय का ऐसा दुरुपयोग करके मुझे बहुत गुस्सा भी आता है, लेकिन रील्स की एडिक्शन ऐसी लग गई है कि इससे खुद को बाहर ही नहीं निकाल पा रही हूं। मेरे जैसे और भी कई लोग इस एडिक्शन का शिकार हैं। क्या बड़े क्या बच्चे अब तो बूढ़े लोगों को भी इसकी लत लग चुकी है। 

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    क्या हैं रील्स और शॉर्ट्स?

    30 सेकंड के छोटे-छोटे वीडियोज़ शॉर्ट्स कहलाते हैं। वैसे कुछ वीडियो 2 मिनट तक के भी होते हैं। रील्स भी एक तरह के शॉर्ट वीडियोज़ ही हैं। रील्स बनाने का चस्का टिकटॉक ऐप से शुरू हुआ था। भारत में टिकटॉक बैन होते ही लोग फेसबुक और इंस्टाग्राम पर हर तरह के रील्स डालने लगें। फनी, इन्फॉर्मेशनल, इमोशनल हर तरह के वीडियोज़ की रील्स पर भरमार है। तभी तो लोगों को इसका एडिक्शन हो रहा है। इन रील्स को सेलिब्रिटी से लेकर आम लोग तक बना रहे हैं, लेकिन बच्चों और युवाओं में इसका ज्यादा क्रेज देखने को मिल रहा है। फेसबुक और इंस्टाग्राम पर जो शॉर्ट वीडियो अपलोड किए जाते हैं उन्हें रील्स कहते हैं। वहीं यूट्यूब के शॉर्ट वीडियोज़ को शॉर्ट्स (Shorts) कहते हैं।

    डिप्रेशन की वजह बन सकता है ये एडिक्शन

    इस लत के चलते लोगों में जो सबसे बड़ी समस्या देखने को मिल रही है वो है डिप्रेशन। वीडियो देखने वाला शख्स खुद को वीडियो में मौजूद शख्स से कम्पेयर करने लगता है। वो भी उसकी तरह दिखना चाहता है, उसकी तरह जिंदगी जीना चाहता है और जब ऐसा नहीं होता, तो गुस्सा, चिड़चिड़ापन होना लाजमी है। धीरे-धीरे ये तनाव डिप्रेशन में बदल जाता है। 

    i2iTelesolutions के निदेशक अरिंदम सेन ने बताया कि, कई रिसर्च के अनुसार, बहुत ज्यादा इंटरनेट का इस्तेमाल केवल मजे नहीं देता बल्कि ये आपको डिपेंडेंट बना सकता है। इस डिपेंडेंसी के परिणामस्वरूप किसी की भावनाओं को नियंत्रित करने में असमर्थता हो सकती है, जो तनाव और उदासी का कारण बन सकती है। क्योंकि इंटरनेट वास्तविकता से बचने की पेशकश करता है। उपयोगकर्ता भावनात्मक रूप से अलग हो सकते हैं, जिससे अवसाद और चिंता बढ़ जाती है। मस्तिष्क व्यर्थ की जानकारी और उपद्रव से भर सकता है, जो प्रोडक्टिविटी को कम कर सकता है।

    इंटरनेट की लत से मानसिक स्वास्थ्य पर कई तरह के प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकते हैं, जिनमें सामाजिक भय, अटेंशन-डेफिसिट डिसऑर्डर (ADD), चिंता, उदासी और अंतर्मुखता शामिल हैं। जो लोग बड़े पैमाने पर इंटरनेट का उपयोग करते हैं, उनके ऑर्बिटोफ्रॉन्स्टल कॉर्टेक्स में ग्रे मैटर में कमी दिखाने की संभावना अधिक होती है, जो समस्या-समाधान और निर्णय लेने से संबंधित है। इसके अतिरिक्त, कुछ दीर्घकालिक इंटरनेट उपयोगकर्ताओं ने हिप्पोकैम्पस की मात्रा कम कर दी है, जो स्मृति को प्रभावित करता है। किसी भी पदार्थ की लत के समान, इंटरनेट की लत में मस्तिष्क में एक इनाम केंद्र शामिल होता है जो डोपामिन की प्रोडक्शन को ट्रिगर करता है, जिससे खुशी मिलती है। 

    इसके अलावा, इंटरनेट की लत से अवसाद हो सकता है। लोग सोशल मीडिया पर खुद की तुलना दूसरों से करने लगते हैं, जिससे बेकार और अपर्याप्तता की भावना पैदा होती है। इससे नकारात्मक विचार आ सकते हैं और आत्मसम्मान में कमी आ सकती है। इंटरनेट की लत नींद में भी खलल पैदा कर सकती है। अध्ययनों में पाया गया है कि देर रात इंटरनेट का उपयोग, विशेष रूप से उज्ज्वल डिस्प्ले वाले उपकरणों पर, शरीर के मेलाटोनिन (एक प्राकृतिक नींद हार्मोन) के उत्पादन को दबा सकता है जो नींद को बाधित करता है। इससे अनिद्रा, नाइट टेरर और नींद से संबंधित अन्य समस्याएं हो सकती हैं।

    आखिर क्यों है इन्हें देखने का ऐसा जुनून?

    - रील्स, शॉर्ट्स में सबसे ज्यादा तादाद में कॉमेडी वीडियो हैं। बड़ों से लेकर बच्चे, बूढ़े तक इन वीडियोज़ को देखते हैं और हंसते हैं, जिससे उनका माइंड रिलैक्स भी होता है। 

    - कई शॉर्ट वीडियोज़ ऐसे होते हैं जिनमें फैशन और स्टाइल को फोकस किया जाता है, खासतौर से महिलाओं को। मार्केट के लेटेस्ट ट्रेंड के बारे में जानने के लिए इन्हें देखा जाता है। 

    - कुछ शॉर्ट वीडियो में लोगों अजीबोगरीब एक्टिंग करते और डायलॉग बोलते हैं। जो नो डाउट फनी होता है जिसे लोगों को देखने में मजा आता है।

    - कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो खाने की नई-नई चीजों और घूमने की नई जगहों के बारे में जानना चाहते हैं। वो उस तरह के वीडियोज़ से अपना ज्ञान बढ़ाते हैं। 

    कैसे रील्स का एडिक्शन है सेहत के लिए नुकसानदेह?

    - देर रात तक रील्स या शॉर्ट्स देखने की वजह से बच्चे देर से सोते हैं जिससे उनका स्लीप पैटर्न डिस्टर्ब हो जाता है। फिर अगले दिन स्कूल या कॉलेज में दिनभर नींद आती रहती है। नींद पूरी न होने पर स्ट्रेस होने लगता है जिससे बीपी बढ़ने की परेशानी के साथ कई बार डिप्रेशन भी हो सकता है।

    - स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताने से आंखें कमजोर होने लगती हैं। फिजिकल एक्टिविटी नहीं होती है जिससे वजन बढ़ने और मोटापे की समस्या हो सकती है।

    कैसे पाएं इस एडिक्शन से छुटकारा?

    - रील्स देखने में जो समय बीता रहे हैं, वो दोस्तों के साथ बिताएं। 

    - फिजिकल एक्टिविटी बढ़ाएं। लगातार रील्स देखने की वजह से बच्चे वर्चुअल ऑटिज़म (लर्निंग क्षमता कम होना, बोलना देर से शुरू करना आदि) का शिकार हो रहे हैं। जिससे उन्हें थेरपी और मेडिकल ट्रीटमेंट की भी जरूरत पड़ सकती है। उन्हें मोबाइल देना बंद करें।

    - बच्चे को चश्मा लगा है तो उसके लेंस को मियोस्मार्ट (Miyosmart) लेंस में बदलवा दें। इससे चश्मे के लेंस का नंबर या तो वहीं रुक जाता है या नंबर बढ़ने की स्पीड कम हो जाती है।

    Pic credit- freepik