Raynaud syndrome: सर्दियों में गिरते तापमान के चलते अगर आपके हाथ-पैरों में आ जाती सूजन, तो हो सकती है ये वजह
Raynaud syndrome जब मौसम के तापमान में तेजी से गिरावट आने लगती है तो कुछ लोगों के हाथ-पैरों की अंगुलियां नीली पड़ने लगती है और सूजन की भी समस्या होती है। इसे अनदेखा न करें यह रेनॉड्स सिंड्रोम का लक्षण हो सकता है।

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Raynaud syndrome: सर्दियों का सुहावना मौसम सभी को अच्छा लगता है। इस दौरान लोग घूमना-फिरना और मनपसंद चीज़ें खाना एंजॉय करते हैं। समस्या तब होती है जब तापमान तेजी से गिरने लगता है। ऐसे कड़ाके की ठंड का सीधा असर हाथ-पैरों की अंगुलियों पर पड़ता है। इससे होने वाली समस्या को रेनॉड्स सिंड्रोम कहा जाता है।
क्या है रेनॉड्स सिंड्रोम?
दरअसल हाथ-पैरों की ब्लड वेसेल्स बहुत नाजुक होती है। ठंड से ये सबसे पहले प्रभावित होती हैं। चूंकि हाथ-पैर बाहर के वातावरण के संपर्क में ज्यादा देर तक रहते हैं इसलिए शरीर के इसी हिस्से पर रोग का हमला सबसे ज्यादा होता है। ठंडक की वजह से ब्लड वेसेल्स सिकुड़ने लगती हैं। जिससे ब्लड और ऑक्सीजन की आपूर्ति में रूकावट होती है। जब धमनियों में अशुद्ध रक्त जमा हो जाता है, तो इसी वजह से त्वचा की रंगत में बदलाव, सूजन, दर्द और खुजली जैसी समस्याएं परेशान करती हैं। पुरुषों की तुलना में स्त्रियों में इसके लक्षण ज्यादा दिखाई देते हैं। खासतौर पर जो स्त्रियां लगातार पानी के संपर्क में रहती हैं, उनमें रेनॉड्स सिंड्रोम की आशंका ज्यादा होती है। हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री में काम करने वालो लोगों को अक्सर ऐसी समस्या होती है।
रेनॉड्स सिंड्रोम से बचाव एवं उपचार
- घर पर भी हमेशा चप्पल और मोजे पहनें, खाली पैर कभी न चलें।
- किचन के कार्यों और घर की सफाई के लिए हमेशा गुनगुने पानी का इस्तेमाल करें।
- अगर फ्रिज से कोई सामान निकालना हो, तो दस्ताने का इस्तेमाल करें।
- सर्दियों में हाथों से कपड़े धोने के बजाय वॉशिंग मशीन का इस्तेमाल करें।
- घर में बर्तन धोने या सफाई संबंधी अन्य कार्य करते वक्त रबर के दस्ताने पहनें।
- ठंड से बचाव के लिए हमेशा ऊनी दस्ताने और मोजे पहनें।
- अगर किसी को पहले से डायिबिटीज की समस्या हो, तो ऐसे लोगों को खास सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि उनका इम्यून सिस्टम कमजोर होता है और उनकी समस्या को दूर होने में काफी वक्त लगता है।
क्या है रेनॉड्स सिंड्रोम का उपचार?
बीमारी के शुरुआती दौर में दवाओं से उपचार किया जाता है, लेकिन समस्या गंभीर होने पर इसे दवाओं से नियंत्रित करना मुश्किल हो जाता है। ऐसी स्थिति में हाथ-पैरों के तापमान को नियंत्रित करने के लिए बायोफीड बैक तकनीक का सहारा लिया जाता है। अगर इससे भी मरीज को राहत न मिले, तो अंतिम उपचार के तौर पर मरीज को सर्जरी की भी जरूरत पड़ सकती है।
अंत में, उपचार से बेहतर है बचाव। अगर कोई भी लक्षण नजर आए, तो डॉक्टर से सलाह लें। सही समय पर उपचार से इसके लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है।
(डॉ. के के पांडेय, वैस्कुलर कॉर्डियोथेरेसिक सर्जन, इंदप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल, दिल्ली से बातचीत पर आधारित)
Pic credit- freepik
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