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    मनोविकार बढ़ाते हैं शरीर में हो रहे बदलाव, एम्स की स्टडी में हुआ चौंकाने वाला खुलासा

    Updated: Wed, 01 Oct 2025 08:08 AM (IST)

    अवसाद जीवन का अंत करने के लिए कैसे विवश कर देता है इसका जवाब किसी के पास नहीं है। लेकिन आत्महत्या की प्रवृत्ति चेतावनी संकेतों को समझने के लिए लगातार शोध हो रहे हैं इसी क्रम में एास भोपाल का नया शोध उल्लेखनीय है। आइए जानते है इसके निष्कषों को।

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    मेंटल डिसऑर्डर के कारण होते हैं शारीरिक बदलाव (Picture Courtesy: Freepik)

    मुकेश विश्वकर्मा, नई दिल्ली। अकेलापन, अवसाद, सामाजिक अलगाव, जैसे अनेक कारण हैं, जो एक समय के बाद लोगों को आत्महत्या की प्रवृत्ति की तरफ ले जाने लगते हैं। प्रतिवर्ष लाखों लोग आत्मघात जैसा कदम उठा रहे हैं।

    ताजा आंकड़े बताते हैं कि प्रति लाख जनसंख्या में 12 से अधिक लोग आत्महत्या कर रहे हैं, इनमें से 28 प्रतिशत महिलाएं हैं। अभी तक मानसिक तनाव को ही आत्महत्या का मुख्य कारण माना जाता रहा है, लेकिन एम्स भोपाल का एक अनुसंधान आत्महत्या कर चुकी महिलाओं के शरीर में हुए बदलाव के पैटर्न का अध्ययन कर इस आत्मघाती प्रवृत्ति का गिरह खोल रहा है।

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    शरीर में हो रहे जैविक बदलाव भी जिम्मेदार

    किन वजहों से कोई व्यक्ति अपना जीवन खत्म करने का निर्णय लेता है, यह अब भी बहस का विषय है । चिकित्सा विशेषज्ञों का मानना है कि केवल मानसिक तनाव या अवसाद ही नहीं, शरीर के भीतर चल रहे जैविक बदलाव भी महिलाओं को आत्महत्या जैसे कदम उठाने के लिए मजबूर कर सकते हैं। देश में पहली बार एम्स भोपाल के फारेंसिक मेडिसिन विभाग ने इस पर एक विस्तृत अध्ययन शुरू किया है।

    यह शोध 15 से 45 वर्ष की उम्र की उन महिलाओं के शरीर पर केंद्रित है, जिनकी मृत्यु आत्महत्या के कारण हुई। फारेंसिक मेडिसिन एंड टाक्सिकोलाजी विभाग के अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. अतुल एस. केचे के नेतृत्व में डॉ. अबर्ना श्री अब शरीर के उन अदृश्य जैविक कारणों की तलाश कर रही हैं, जो महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर घातक असर डालते हैं।

    मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम में शामिल होगा

    एम्स भोपाल इस अनुसंधान से मिली जानकारी का इस्तेमाल मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम, जागरूकता अभियान और रोकथाम रणनीतियां बनाने में करने की तैयारी कर रहा है। इसके नतीजे सरकार और आत्महत्या, महिला स्वास्थ्य पर काम कर रहे सरकारी, गैर सरकारी संगठनों के लिए नये मार्गदर्शक की भूमिका निभा सकते हैं, ताकि महिलाओं की सुरक्षा और जीवन रक्षा को मजबूत किया

    सके।

    तीन बड़े मानकों पर आधारित है शोध

    इस अध्ययन का मकसद शरीर और मस्तिष्क के बीच की उस कड़ी की तलाश करना है, जिनकी वजह से किसी व्यक्ति में यह प्रवृत्ति जोर पकड़ती है। अनुसंधान दल तीन प्रमुख जैविक कारकों की बारीकी से जांच कर रहा है, जिनका सीधा असर मानसिक स्थिति पर पड़ता है। इसमें प्रजनन अंगों की बनावट को देखा जा रहा है । मृत महिलाओं के गर्भाशय और अंडाशय की कोशिकाओं की माइक्रोस्कोपिक जांच हो रही है।

    वसा के असंतुलन की जांच कर यह जानने की कोशिश हो रही है कि शरीर में लिपिड (वसा) के स्तर में कितना बदलाव आया है। शरीर के अंदर होने वाली पुरानी जलन या सूजन की स्थिति क्या रही। अनुसंधान दल उस पैटर्न को समझने की कोशिश में है कि कहीं हार्मोन का गंभीर असंतुलन या भीतरी सूजन मिलकर मानसिक समस्याओं का एक खतरनाक चक्र तो नहीं बना रहे, जिससे महिलाओं में आत्महत्या का खतरा बढ़ जाता है।

    खून की एक जांच रोक सकेंगे आत्महत्या

    इस अनुसंधान के नतीजों को लेकर हम काफी उत्साहित हैं। अगर जैविक बदलावों से आत्महत्या के जोखिम का पैटर्न स्पष्ट हो जाता है तोइसे आत्महत्या की स्थिति तक किसी व्यक्ति को पहुंचने से रोका जा सकेगा खून की एक साधारण जांच से ही आत्महत्या के उच्च जोखिम वाली महिलाओं को पहचाना जा सकेगा। इससे डाक्टर सिर्फ मानसिक इलाज ही नहीं, बल्कि शारीरिक असंतुलन को ठीक करने वाली दवाओं और उपचार को भी शामिल कर सकेंगे।

    डॉ. माधवानंद कर (निदेशक, एम्स भोपाल) ने कहा, “एम्स भोपाल का यह प्रयास फारेंसिक रिसर्च और महिला स्वास्थ्य के क्षेत्र में बेहद महत्वपूर्ण होगा । इसके नतीजे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की गुत्थी को सुलझाने की दिशा में एक बड़ी उम्मीद जगाएंगे।”

    'तनाव और अवसाद के इलाज में होगी क्रांति

    डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी मनोरोग विशेषज्ञ बताते हैं कि लंबे समय से तनाव प्रबंधन और अवसाद से जूझ रहे लोगों की चिकित्सा में इसे बड़े बदलाव के तौर पर देखा जा सकता है । इस अनुसंधान के शुरुआती नतीजे उत्साहित करने वाले हैं।

    आमतौर पर आत्महत्या को केवल मानसिक बीमारियों से जोड़ दिया जाता है, जबकि कई बार जैविक और हार्मोनल बदलाव भी इसके पीछे छिपे कारक हो सकते हैं। अगर यह अनुसंधान उन कारकों को सामने लाता है, तो हम आत्महत्या रोकथाम को केवल काउंसलिंग या दवाओं तक सीमित न रखकर, इसे व्यापक और वैज्ञानिक तरीके से समझ पाएंगे। इससे इलाज और रोकथाम दोनों में बड़ी क्रांति आ सकती है।

    इन उपायों से टलेगा खतरा

    • नियमित स्वास्थ्य जांच- हार्मोन और लिपिड लेवल की समय-समय पर जांच कराना चाहिए।
    • स्क्रीनिंग- अवसाद, नींद की समस्या दिखे तो डाक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
    • संतुलित आहार- ओमेगा -3 फैटी एसिड, हरी सब्जियां और फल मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर करने में सहायक हैं।
    • व्यायाम और योग- प्रतिदिन 30 मिनट की शारीरिक गतिविधि तनाव बढ़ाने वाले हार्मोन को कम करती है।
    • अच्छी नींद- प्रतिदिन सात-आठ घंटे की पर्याप्त और नियमित नींद मानसिक सेहत के लिए लाभकारी है।
    • काउंसलिंग और थेरेपी- जरूरत होने पर साइकोथेरेपी या ग्रुप थेरेपी के लिए विशेषज्ञों की सहायता लेनी चाहिए।
    • सपोर्ट सिस्टम- अकेलेपन की बजाय सामाजिक गतिविधियों में जुड़ना चाहिए।
    • तनाव प्रबंधन- मेडिटेशन, संगीत या कोई शौक अपनाना चाहिए।
    • खतरे के संकेत पहचानना- बार-बार आत्महत्या की बात करना, उदासी या चिड़चिड़ापन बढ़ना, अचानक व्यवहार बदलना, ये शुरुआती संकेत होते हैं।
    • नशे से दूरी- शराब, तंबाकू मानसिक असंतुलन बढ़ाते हैं।
    • खुलकर बातचीत- परिवार और दोस्तों के साथ भावनाएं साझा करना करना चाहिए।
    • हेल्पलाइन का इस्तेमाल- आत्महत्या का विचार आने पर तुरंत 24 घंटे सातों दिन उपलब्ध हेल्पलाइन नंबरों या नजदीकी अस्पताल से संपर्क करना चाहिए।

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