बदल रही भारत की तस्वीर, चिकित्सा के क्षेत्र में मिल रही वैश्विक पहचान
कोविड-19 महामारी की शुरुआत में हमारे पास न मास्क था न पीपीई किट लेकिन दो-ढाई साल में देश ने इतना विकसित किया कि जरूरतें पूरी हुईं और दूसरे देशों की मदद भी की। यही है नए भारत की उभरती तस्वीर...

डा. एम वली। आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर जब हम पीछे देखते हैं, तो एक जमाना था जब भारत में सूई, बटन जैसी छोटी-मोटी चीजों का भी आयात करना पड़ता था, आज हम अनेक तरह के उपकरण दूसरे देशों को निर्यात कर रहे हैं। हमारे पूर्व राष्ट्रपति अपने भाषणों में इस बात का बार-बार जिक्र करते थे। चिकित्सा के क्षेत्र में तो बहुत बड़ा परिवर्तन हुआ है। सबसे बड़ा कारण है कि हमारे मेडिकल कालेजों की शिक्षा का स्तर बहुत अच्छा है। चार दशक पहले की मेडिकल की व्यवस्था को देखता हूं तो बड़ा बदलाव नजर आता है। अल्ट्रासाउंड, एमआरआई, सीटी स्कैन जैसी तकनीकी सुविधाएं आई हैं। हृदय रोग की चिकित्सा में बहुत बड़े बदलाव हुए। बाईपास सर्जरी के लिए लोग अमेरिका जाते थे, वह सब कुछ भारत में होने लगा है। अब देश के हर बड़े शहर में हार्ट सर्जरी हो रही है।
अनूठी है हमारी चिकित्सा प्रणाली : दवाओं में वैश्विक स्तर पर हमारी भागीदारी बहुत बड़ी हो गयी है। जब एचआईवी एड्स आया, तो भारत ने ही पूरी दुनिया को इसकी दवाई बनाकर दी। इसी तरह रोबोटिक सर्जरी की शुरुआत हुई। इसका हार्ट सर्जरी, ब्रेन सर्जरी में बहुत बड़ा योगदान है। मेडिकल सुविधाओं के मामले में हम दुनिया के किसी भी देश से पीछे नहीं हैं। हमारे डाक्टर और मेडिकल स्टाफ दुनिया में सबसे अच्छे पेशेवर माने जाते हैं। हमें चरक और सुश्रुत के सिद्धांत पढ़ाये जाते हैं, जिन्हें मेडिकल की भाषा में क्लीनिकल मेडिसिन कहते हैं। इसका मतलब है कि हम मरीज के उपचार में आधुनिक जांच पर ही निर्भर न रहकर अपने ज्ञान और विवेक से उपचार करते हैं।
शोध और विकास में हमने की दुनिया की मदद : बीते 75 वर्षों में अच्छी-अच्छी प्रयोगशालाएं विकसित की गयी हैं। हमारे वैज्ञानिकों ने नई तकनीकों के विकास में भी दुनिया को सहयोग दिया है। उसी में एक तकनीक है- आरटीपीसीआर. उल्लेख करना चाहूंगा कि सबसे पहले आरटीपीसीआर को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में डा. शेख ने विकसित किया था। मैं उस समय राष्ट्रपति वेंकटरमन का चिकित्सक था। यह वही टेस्ट है जो कोविड की जांच में सबसे ज्यादा प्रयोग हो रहा है। इससे संबंधित इम्युनोलॉजी के जो अन्य टेस्ट हैं, उसे भी विकसित करने में भारत ने सफलता हासिल की है।
सस्ती दवाओं को बनाने में हमारी कामयाबी : हमने नई पद्धति से दवाओं को बनाना शुरू किया, जिसे हम चिरैलिटी कहते हैं। इससे हमने बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा विनिमय को बचाया है। जो दवाएं विदेश से आती हैं, उसके फार्मूले को संशोधित कर हम नई पद्धति से दवाओं का उत्पादन करते हैं, जो सस्ती और बेहतर भी होती हैं। यह बहुत बड़ा बदलाव है। कोविड-19 महामारी की शुरुआत में हमारे पास न मास्क था, न पीपीई किट थी, न टेस्ट की सुविधा। लेकिन, दो-ढाई साल में हमने इसे इतना विकसित किया कि हमारी जरूरतें भी पूरी हुईं और हमने दूसरे देशों की भी मदद की। हमने वेंटिलेटर, रेस्पिरेटर, आक्सीजन कांस्ट्रेटर बनाए। कोविड के संदर्भ में चिकित्सा पद्धति का जो विकास हुआ है, वह बहुत अनूठा है। हमने आक्सीजन प्लांट बना लिये, डीआरडीओ ने उपकरणों की सुविधा उपलब्ध कराई। आज हम पूरे विश्व को टीकों, पीपीई किट, मास्क, वेंटिलेटर आदि उपकरणों का निर्यात कर रहे हैं।
टीकों के मामले में सबसे आगे : भारत ने वैश्विक स्तर पर जो स्थान बनाया है, उसकी कोई तुलना नहीं हो सकती। दवाएं और उपकरण आदि ऐसे देश ने बनाया है, जिसके पास सीमित संसाधन हैं। आबादी से इसकी तुलना करें, तो दुनिया के किसी भी देश अधिक चुनौती हमारे सामने है। हमारे वैज्ञानिकों, डाक्टरों, नर्सों और मेडिकल स्टाफ और उद्योग जगत ने इतना बड़ा योगदान दिया है, जो पूरी दुनिया के लिए मिसाल है। इसकी सराहना विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बार-बार की है। टीकाकरण कार्यक्रम में हम 200 करोड़ के लक्ष्य को पार करने में सफल रहे। हमारे टीके पूरी दुनिया में सबसे सुरक्षित हैं। इसी स्वीकार्यता बहुत ज्यादा है।
भारतीय मेडिकल पेशेवरों की धाक : जब हम आजादी के 100वें साल का जश्न मना रहे होंगे, भारत चिकित्सा के क्षेत्र में विश्व गुरु होगा। हमारे डाक्टर अमेरिका, ब्रिटेन समेत अनेक देशों में शीर्ष स्थानों पर हैं। मैं तो यहां तक कहूंगा हमारे डाक्टर अमेरिका से स्वदेश आ जायें, तो वहां की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा जाएगी। आनेवाले समय में भारत मेडिकल टूरिज्म के क्षेत्र में, दवाओं और मेडिकल उपकरणों के निर्यात में और सस्ती दवाएं बनाकर विश्व को देने के मामले में अग्र्रणी होने जा रहा है। बाहर से पढकर आनेवाले मेडिकल पेशेवरों को भी भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली में शामिल होने के लिए अग्नि परीक्षा को पास करना पड़ता है, ताकि हमारी चिकित्सा का स्तर न गिरे।
मेडिकल व्यवस्था पर स्वास्थ्य मंत्रालय और प्रधानमंत्री जी स्वयं नजर बनाये हुए हैं. नये मेडिकल कालेज भी खोले जा रहे हैं. जब मैं पढ़ता था तो सरकारी मेडिकल कालेजों की संख्या 10 से 12 हुआ करती थी, अब जिला स्तर पर मेडिकल कालेज खोले जा रहे हैं। कई राज्यों में मेडिकल कालेजों की संख्या बढायी जा रही है। हालांकि, अच्छे अध्यापकों की कमी पर भी हमें ध्यान देने की जरूरत है। बच्चों को अच्छा शिक्षण-प्रशिक्षण मिले, इसके लिए हमें सजग और सचेत रहना है। चिकित्सा के क्षेत्र में भारत ने जितनी भी उन्नति की है, वह सराहनीय है। ऐसी कामना करता हूं कि देश प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में एक अच्छे सुनहरे कल की ओर आगे बढ़ेगा।
(ब्रह्मानंद मिश्र से बातचीत पर आधारित)
राष्ट्रपति के पूर्व चिकित्सक
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