हर चार में से एक भारतीय वयस्क मोटापे का शिकार, बच्चों में भी तेजी से बढ़ रहे हैं मामले
मोटापा एक गंभीर समस्या बनकर देश के सामने उभर रहा है। अब सिर्फ शहरी इलाकों में ही नहीं, बल्कि ग्रामीण इलाकों में भी मोटापे के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। मोटापे की वजह से कई डायबिटीज और हार्ट डिजीज जैसी गंभीर समस्याओं का खतरा रहता है। इसलिए मोटापा कम करना बेहद जरूरी है।

तेजी से बढ़ रहा है मोटापा (Picture Courtesy: Freepik)
प्रेट्र, नई दिल्ली। देश में मोटापा की बढ़ती दर चिंता का कारण बन गई है। मोटापा हृदय रोग, डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, उच्च कोलेस्ट्राल और कुछ प्रकार के कैंसर जैसी जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों का कारण बन सकता है।
एक नए अध्ययन के अनुसार, अब लगभग एक चौथाई भारतीय वयस्क को किया मोटापे से ग्रस्त हैं। यह अध्ययन टोनी ब्लेयर इंस्टीट्यूट फार ग्लोबल चेंज द्वारा दिल्ली में शुरू किया गया, जिसमें कहा है कम गया कि भारत एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है क्योंकि मोटापे से संबंधित बीमारियों की संख्या शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में तेजी से बढ़ रही है।
भारत में लगभग 27.4% दंपती दोनों ही मोटे या अधिक वजन वाले हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि राष्ट्रीय आंकड़े पहले से ही इस समस्या की गंभीरता को दर्शाते हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019 - 21 का हवाला देते हुए अध्ययन में कहा गया है कि राजधानी में 41 प्रतिशत महिलाएं मोटापे से ग्रस्त हैं, जबकि मेघालय में यह आंकड़ा 12 प्रतिशत है। इसके अलावा, दिल्ली में छह से 16 वर्ष के बच्चों में मोटापे की दर 22.8 प्रतिशत है, जबकि महाराष्ट्र में यह 13.6 प्रतिशत है।
भारत में हेल्थकेयर पर खर्च दोगुना, हेल्थ सिस्टम पर बढ़ा दबाव
‘भारत के भविष्य के स्वास्थ्य को सुरक्षित करने के लिए सफलता पर निर्माण' शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 24 प्रतिशत महिलाओं और 23 प्रतिशत पुरुषों का वजन या तो ज्यादा है या वे मोटापे से ग्रस्त हैं, जो 30 साल पहले की तुलना में लगभग पांच गुना ज्यादा है।
शहरों में यह दर ज्यादा है और राज्यों में यह बहुत अलग-अलग है। रिपोर्ट में कहा गया है यह पैटर्न एक बड़े ग्लोबल ट्रेंड का हिस्सा है। पिछले दो दशकों में दुनिया भर में हेल्थकेयर पर खर्च दोगुना हो गया है, लेकिन लोग बची हुई उम्र में से कम साल अच्छी सेहत पर खर्च कर रहे हैं। प्रतीकात्मक बीमारी के इलाज के लिए हेल्थ सिस्टम बढ़ती मांग और घटते संसाधनों के कारण दबाव में हैं।

मोटापे के बढ़ते बोझ को किया जा सकता है कम
ईट राइट इंडिया और फिट इंडिया मूवमेंट जैसी पहल आहार और शारीरिक गतिविधियों को बेहतर बनाने में मदद कर रही हैं। इसमें कहा गया है कि इस साल मीठे ड्रिंक्स पर टैक् लगाया गया है और मोटापा पर गाइडलाइंस पर काम करना रोकथाम के लिए आगे की कार्रवाई को दर्शाता है।
आगे कहा गया कि राष्ट्रीय राजधानी में आयोजित सम्मेलन में विशेषज्ञों भारत की ग्रोथ स्ट्रेटेजी का एक अहम हिस्सा प्रिवेंटिव हेल्थ (निवारक स्वास्थ्य) बनाने की जरूरत पर जोर दिया। टोनी ब्लेयर इंस्टीट्यूट फार ग्लोबल चेंज के कंट्री डायरेक्टर विवेक अग्रवाल ने कहा कि भारत मोटापे की रोकथाम में नेतृत्व करने के लिए अच्छी स्थिति में है। टेक्नोलाजी, डेटा व सामुदाय से प्रेरित कार्रवाई को मिलाकर भारत न केवल मोटापे के बढ़ते बोझ को कम कर सकता है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मजबूत, ज्यादा लचीला हेल्थ सिस्टम भी बना सकता है।
1990 की तुलना में दोगुनी हो गई मोटापे की दर
वैश्विक मोटापे की दर 1990 से दोगुनी हो गई है। अब लगभग एक अरब लोगों को प्रभावित कर रही है। यदि प्रवृत्तियां जारी रहीं, तो 2050 तक दुनिया भर में आधे से अधिक वयस्क या तो अधिक वजन वाले या मोटापे से ग्रस्त हो सकते हैं। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि मोटापा पहले से भारत के रोग भार को बढ़ा रहा है और अर्थव्यवस्था पर दबाव डाल रहा है। मोटापे से भारत को हर साल लगभग 2.4 अरब अमेरिकी डालर का हेल्थकेयर पर खर्च होता है। यह आर्थिक उत्पादन को लगभग 28.9 अरब अमेरिकी डालर कम करता है, जो जीडीपी का लगभग एक प्रतिशत है।

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