बच्चों के पोषण के लिए बेहद जरूरी हैं ये बातें, जानें-क्या कहता है नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे
नवजात के विकास के लिए शुरुआती 1000 दिन अहम होते हैं। इसे देखते हुए बच्चों के स्वास्थ्य से जुड़े कई सर्वे संचालित किए जाते हैं ताकि उनकी बेहतरी के लिए उपाय किया जा सके।
नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/ पीयूष अग्रवाल। नवजात बच्चों के विकास के लिए शुरुआती 1,000 दिन काफी अहम होते हैं। इसे देखते हुए बच्चों के स्वास्थ्य से जुड़े कई सर्वे संचालित किए जाते हैं, ताकि उनकी बेहतरी के लिए उचित उपाय किया जा सके। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस)-4 के अनुसार, भारत में कुपोषण की दर अधिक है। कुपोषण में वजन कम होना (36 प्रतिशत), उम्र के हिसाब से ऊंचाई नहीं बढ़ना (38 प्रतिशत), ऊंचाई के अनुपात में वजन कम होना (21 फीसदी) जैसे मामले 5 साल से कम उम्र के बच्चों में पाए जाते हैं। चिकित्सकों और विशेषज्ञों का मानना है कि कुपोषण से बचाव के लिए दो बातें सबसे अहम हैं, पहला- बच्चों को ब्रेस्टफीडिंग कराना और दूसरा- उन्हें समुचित और सही तरीके का पोषणयुक्त भोजन उपलब्ध कराना।
इसके लिए भारत सरकार ने 2018 में पोषण अभियान शुरू किया था। इसका मकसद बच्चों पर शुरुआती 1,000 दिनों के दौरान अधिक ध्यान देना था। इस अभियान में दो बातों पर मूलत: ध्यान दिया गया- शुरुआती छह महीनों तक ब्रेस्टफीडिंग और फिर दो साल तक समुचित ब्रेस्टफीडिंग। छह माह के बाद ब्रेस्टफीडिंग ही सिर्फ पोषण की जरूरतों को पूरा नहीं करती है। इसके साथ बेहतर खान-पान की भी जरूरत होती है। साथ ही यह भी ध्यान रखने की आवश्यकता है कि खान-पान शुरू होने के बाद ब्रेस्टफीडिंग को न रोका जाए। ब्रेस्टफीडिंग को दो साल या इससे अधिक तक जारी रखा जाने के लिए कहा गया। इसी तरह, बच्चों को दिया जाने वाला आहार काफी हल्का और पूरी तरह पका होना चाहिए।
छह से आठ माह को दौरान दिन में एक बार खाना (दिन में एक बार कटोरी) देना चाहिए। 9 से 11 माह में तीन से चार बार खाना (तीन कटोरी रोजाना) देना चाहिए। 12 से 23 माह में दो से तीन स्वस्थ स्नैक्स के साथ रोजाना तीन बार खाना आवश्यक है।
बच्चों के पोषक खाने में दूध के साथ दही, दाल, हरी सब्जियां और फल शामिल होने चाहिए। फिंगर फूड भी बच्चों की सेहत के लिए अच्छे होते हैं। इनसे मोटर और चबाने की शक्ति मजबूत होती है। बच्चे को प्रतिदिन चार अलग-अलग तरह के खाने देने चाहिए। दालें, रुट्स, ट्यूबर्स, नट, डेयरी प्रोडक्ट्स, जैसे दूध, दही, पनीर आदि सेहत के काफी जरूरी हैं।
इंडियन एसोसिएशन ऑफ पीडियाट्रिक्स (आईएपी) के इंफेंट यंग चाइल्ड फीडिंग से जुड़े डॉ केतन भरदवा कहते हैं कि बच्चों के लिए ब्रेस्टफीडिंग और पूरक आहार सबसे असरदार, ताकतवर और जीवनरक्षक होते हैं। पांच साल से कम उम्र के बच्चों के लिए ये काफी अच्छे होते हैं। बच्चों की अच्छी सेहत और बुद्धिमता के लिए ये काफी प्रभावी होते हैं। पर इनकी महत्ता को समझा नहीं जा रहा है। इन्हें प्राथमिकता नहीं दी जा रही है। एक बेहतर समाज और कल के लिए ब्रेस्टफीडिंग और पूरक आहार बेहद जरूरी हैं।
क्या करें
-खान-पान छह माह से शुरू करें
-दो साल या उससे अधिक तक ब्रेस्टफीडिंग कराएं
-धीरे-धीरे खान-पान को बढ़ाएं
1. छह से आठ माह तक दिन में दो से तीन बार खान-पान
2. 9 से 11 माह और 12-24 माह तक दिन में 3 से चार बार खान-पान
3. 12 से 24 माह तक दिन में एक से दो बार स्नैक्स भी दें
-हर खान-पान में चार अलग-अलग खाना होना चाहिए
-सात से नौ माह के दौरान फिंगर फूड देने चाहिए
क्या न करें
-खान-पान शुरू होने के बाद ब्रेस्टफीडिंग न बंद करें
-कम पोषण वैल्यू ड्रिंक्स (चाय, कॉफी आदि) न दें
-बच्चे को फीड करने के लिए दबाव न डालें
-कैरोटीन से भरपूर पीले फल दें। ये जूस से बेहतर होते हैं
- बहुत अधिक नमकीन और मीठा नहीं दें
- बादाम, मूंगफली देने से परहेज करें। इसे पाउडर फॉर्म में दे सकते हैं
प्रसूति पूर्व मां की ट्रेनिंग जरूरी
ब्रेस्टफीडिंग प्रमोशन नेटवर्क ऑफ इंडिया की प्रेसिडेंट डॉ मंगला वानी का कहना है कि भारत के आधे से अधिक बच्चे ब्रेस्टफीडिंग से वंचित रह जाते हैं। ब्रेस्टफीडिंग न कराने के पीछे कई कारण होते हैं, जैसे कि मां का प्रेग्नेंसी के बाद काम पर जल्दी जाने लगना, फीडिंग के लिए हेल्थ प्रोफेशनल की ट्रेनिंग न लेना, न्यूक्लियर फैमिली का होना, अस्पतालों की ट्रेनिंग उपलब्ध न होना। डॉ मंगला वानी कहती हैं कि हेल्थ प्रोफेशनल का प्रशिक्षण अनिवार्य होना चाहिए, जिससे वे बच्चे की मां को बेहतर ट्रेनिंग दे सकें। वह कहती हैं कि प्रेग्नेंसी से पूर्व चर्चा जरूरी है। उनके अनुसार, मां को अटैचमैंट, मां की पोजीशन, बच्चे की भूख पहचानना आदि का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। इसके लिए कम्युनिटी और नियमों के स्तर पर सहयोग बेहद जरूरी है, क्योंकि एक स्वस्थ शिशु से ही बेहतर राष्ट्र की कल्पना की जा सकती है।
डॉ मंगला वानी कहती हैं कि सिर्फ 5 से 7 प्रतिशत बच्चे को ही समुचित पूरक आहार मिलता है। पूरक आहार के बारे में मां को जानकारी नहीं होती। बच्चे को बेहतर पूरक आहार मिलना जरूरी है। कई बार बच्चों को दाल का पानी या काफी पतला आहार दिया जाता है, जिनसे बचना चाहिए। बच्चों को घी की तरह दिखने वाला सॉलिड आहार देना चाहिए। धीरे-धीरे इसे और सॉलिड बनाना चाहिए। सबसे प्रमुख बात बच्चों को बड़े होने यानी 2 से तीन साल तक ब्रेस्टफीडिंग करानी चाहिए।
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