छाती में इकट्ठा पानी बन सकता है जीवन के लिए खतरा, उपचार में न करें देरी
नई दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के थोरेसिक एवं कार्डियो वैस्कुलर सर्जन डा. के. के. पांडेय ने बताया कि छाती की अंदरूनी दीवार में फेफड़ों के ऊपरी सतह से रिसते पानी को सोखने की क्षमता लगभग बीस गुना होती है।

नई दिल्ली, फीचर डेस्क। छाती के अंदर फेफड़ों के चारो ओर पानी के जमाव को चिकित्सकीय भाषा में हाइड्रोथोरेक्स और जब पानी की जगह खून का जमाव होता है तो हीमोथोरेक्स कहते हैं। इसी तरह जब लिम्फ नामक तरल पदार्थ का जमाव होता है तो इसे काइलोथोरेक्स कहते हैं। फेफड़ों व छाती की दीवार के बीच की खाली जगह सांस लेने के समय लगातार फैलती व सिकुड़ती है। इस खाली जगह को प्ल्यूरल स्पेस कहते हैं।
फेफड़ों की ऊपरी सतह से लगातार पानी का रिसाव होता है और छाती की अंदरूनी दीवार इसे सोखती रहती है। इससे पानी कभी इकट्ठा नहीं होता है। छाती की अंदरूनी दीवार में लगभग बीस गुना पानी को सोखने की क्षमता होती है। इस वजह से पानी रिसने व सोखने के बीच एक संतुलन बना रहता है। जब किसी संक्रमण या बीमारी के कारण छाती में पानी इकट्ठा होने लगता है तो यह संतुलन बिगड़ जाता है और फेफड़ों की कार्यक्षमता प्रभावित होती है। कई बार ये स्थिति गंभीर स्वास्थ्य समस्या का कारण बनती है।
कारण
- फेफड़ों का टीबी
- निमोनिया
- ब्रांकाइटिस
- लिवर सिरोसिस
- असाइटिस
- दिल की बीमारी
- छाती का ट्यूमर
- ब्रेस्ट कैंसर
- फेफड़े का कैंसर
- गिल्टी का कैंसर
- किसी चोट या क्षति से छाती में पस का बनना
लक्षण
- वजन गिरना
- सांस फूलना
- बलगम का आना
- सांस लेने में छाती में दर्द होना
- छाती में भारीपन का अहसास होना
- पसीने के साथ शाम को बुखार आना
उपचार में न करें देरी
छाती में पानी इकट्ठा होने पर चिकित्सकीय परामर्श लेने में देरी नहीं करनी चाहिए। चिकित्सक इसमें छाती में ट्यूब डालकर पानी निकालते हैं। इसके बाद दवाओं से फेफड़ों की क्षति व संक्रमण का उपचार किया जाता है। यदि रोगी टीबी या कैंसर की समस्या से ग्रसित होता है तो विशेषज्ञ से भी उपचार में मदद ली जाती है। कई बार इस समस्या को नजरअंदाज करने पर फेफड़े सिकुड़े जाते हैं। ऐसे में आपरेशन का विकल्प अपनाया जाता है। इसमें नष्ट हुए फेफड़े के हिस्से को निकाल दिया जाता है, जिससे वे दोबारा सक्रिय हो सकें।
सर्जन डा. के. के. पांडेय
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