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    National Epilepsy Day 2025: क्या मिर्गी के दौरे को ट्रिगर करती है देर रात तक फोन चलाने की आदत?

    Updated: Mon, 17 Nov 2025 02:10 PM (IST)

    आज की डिजिटल लाइफ में एक आदत लगभग हर किसी की दिनचर्या बन चुकी है- सोने से ठीक पहले मोबाइल स्क्रॉल करना। इंस्टाग्राम पर थोड़ी-सी ब्राउजिंग, एक-दो रील्स या फिर दिन की आखिरी खबर पढ़ने के बहाने हम देर रात तक फोन की स्क्रीन में खोए रहते हैं। आइए, National Epilepsy Day 2025 के मौके पर डॉक्टर से जानते हैं कि क्या वाकई 'लेट-नाइट स्क्रॉलिंग' मिर्गी के दौरे को ट्रिगर करती है।

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    क्या रात को देर तक फोन इस्तेमाल करना बन सकता है मिर्गी के दौरे की वजह? (Image Source: Freepik)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। ज्यादातर लोगों के लिए 'लेट-नाइट स्क्रॉलिंग' बस एक छोटा-सा टाइमपास होता है, लेकिन कुछ लोगों के लिए यही आदत दिमाग की कार्यप्रणाली को गहराई से प्रभावित कर सकती है। खासकर उन लोगों के लिए जिन्हें मिर्गी है या जिनमें दौरे आने की प्रवृत्ति ज्यादा होती है, यह देर रात की स्क्रोलिंग एक गंभीर ट्रिगर साबित हो सकती है (Epilepsy Seizure Triggers)। आइए, डॉ. रजनीश कुमार (प्रधान निदेशक और यूनिट हेड, न्यूरोलॉजी, मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, द्वारका) से जानते हैं इस बारे में।

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    late night scrolling

    कैसे दिमाग पर असर डालती है स्क्रीन की रोशनी?

    जब हम रात में फोन देखते हैं, तो हमारी आंखें तेज और बदलते हुए विजुअल्स से बार-बार टकराती हैं। स्क्रीन पर चलती रील्स, विज्ञापनों की चमक और लगातार बदलते रंग- ये सब मिलकर दिमाग की विद्युत गतिविधि में गड़बड़ी पैदा कर सकते हैं। कुछ लोगों में यह प्रभाव और भी ज्यादा होता है, खासकर उन लोगों में जिन्हें फोटोसेंसिटिव एपिलेप्सी होता है- यानी तेज रोशनी या पैटर्न्स के कारण दौरे आते हैं।

    स्क्रोल करते समय आपको ऐसा कुछ महसूस न भी हो, लेकिन किसी एक अचानक चमकते वीडियो या फ्लैशी ग्राफिक्स से दिमाग उत्तेजित हो सकता है। यही उत्तेजना कुछ लोगों में दौरे की शुरुआत कर सकती है।

    सबसे बड़ा ट्रिगर है नींद की कमी

    रात में फोन देखने का एक बड़ा नुकसान है- नींद की खराब गुणवत्ता। स्क्रीन से निकलने वाली नीली रोशनी नींद लाने वाले हार्मोन को दबा देती है, जिससे सोने में देर होती है। मिर्गी से जूझ रहे लोगों के लिए नींद सिर्फ आराम नहीं, बल्कि दिमाग की स्थिरता का महत्वपूर्ण आधार है।

    • देर तक जागना
    • लगातार स्क्रीन देखते रहना
    • दिमाग को ओवरस्टिमुलेट करना

    ये सभी बातें मिलकर नींद की कमी पैदा करती हैं, और नींद की कमी मिर्गी के दौरे का एक आम ट्रिगर मानी जाती है। अक्सर लोग सोचते हैं कि “बस 10 मिनट फोन देख लूं” - लेकिन वही 10 मिनट एक घंटे में बदल जाते हैं और दिमाग को आराम देने का समय कम हो जाता है।

    सोशल मीडिया का तनाव भी बढ़ाता है खतरा

    फोन पर कभी-कभी हम आराम के लिए जाते हैं, लेकिन निकलते हैं और ज्यादा तनाव लेकर। तेज-तर्रार खबरें, बहसें, सोशल मीडिया का प्रेशर- ये सब मिलकर मानसिक तनाव बढ़ाते हैं। मानसिक तनाव अपने आप में दौरे का एक संभावित ट्रिगर है। और जब तनाव, नींद की कमी और स्क्रीन से आने वाली रोशनी- तीनों एक साथ जुड़ते हैं, तब जोखिम और भी बढ़ जाता है।

    क्या करें?

    अगर आपको लगता है कि देर रात की स्क्रोलिंग आपके सेहत को प्रभावित कर रही है, तो कुछ आसान कदम अपनाए जा सकते हैं:

    1) सोने से कम से कम एक घंटा पहले फोन बंद कर दें

    शुरू में मुश्किल लगेगा, लेकिन दिमाग को शांत करने के लिए यह सबसे अच्छा तरीका है।

    2) कमरे की लाइट हल्की रखें और स्क्रीन की ब्राइटनेस कम करें

    अचानक बदलते विज़ुअल्स से बचें।

    3) रात को शांत गतिविधियां अपनाएं

    किताब पढ़ना, धीमा संगीत सुनना या जर्नल लिखना- ये सभी दिमाग को आराम देते हैं।

    4) अगर मिर्गी है या स्क्रीन देखने के बाद कोई असामान्य लक्षण दिखते हैं तो डॉक्टर से सलाह लें

    नींद, स्क्रीन टाइम और तनाव का रिकॉर्ड रखने से ट्रिगर्स पहचानने में मदद मिलती है।

    क्यों जरूरी है जागरूकता?

    देर रात फोन स्क्रोल करना एक सामान्य आदत बन चुकी है, लेकिन इसके पीछे छिपे जोखिम अक्सर नजर से छूट जाते हैं। खासकर उन लोगों के लिए जिनका दिमाग पहले से संवेदनशील है, यह मामूली-सी आदत बड़ी समस्या बन सकती है। छोटे-छोटे बदलाव न सिर्फ दिमाग को शांत रखते हैं बल्कि संभावित दौरों से भी बचाते हैं।

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