National Doctor’s Day 2023: कहीं आप भी तो नहीं करते इंटरनेट की मदद से अपना इलाज? तो हो जाएं सावधान
National Doctor’s Day 2023 डॉक्टर को भगवान का रूप माना जाता है। भारत में हर साल 1 जुलाई को डॉक्टर्स डे मनाया जाता है। इस दिन डॉक्टर्स के काम और सम्मान में लोग उन्हें शुभकामनाएं और धन्यवाद देते हैं। लोगों को हेल्दी रखने में डॉक्टर्स की भूमिका बहुत ही खास होती है। दुनिया में सबसे पहले डॉक्टर्स डे की शुरुआत 30 मार्च 1933 में अमेरिका के जॉर्जिया से हुई थी।

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। National Doctor’s Day 2023: अगर आप भी इंटरनेट पर अपनी बीमारी के बारे में सर्च करते हैं और फिर उसी के आधार पर इलाज भी शुरू कर देते हैं, तो जरा सावधान हो जाइए। यह आदत आपको मुसीबत में डाल सकती है। जी हां, इंटरनेट पर किसी भी बीमारी से जुड़ी सामान्य जानकारी मिल सकती है, लेकिन कई लोग इंटरनेट को ही अपना डॉक्टर मान लेते हैं और इसी के आधार पर इलाज करना भी शुरू कर देते हैं।
कई बार इंटरनेट पर किसी बीमारी के बारे में ऐसी जानकारियां दी होती हैं, जिसे पढ़कर मरीज पहले ही डर जाता है और डॉक्टर के पास भी जाने से कतराता है। अगर आप भी इंटरनेट से देखकर उल्टी-सीधी दवाइयां खाते हैं, तो ठीक होने के बजाय और बीमार पड़ सकते हैं। आपकी जान खतरे में पड़ सकती है। इंटरनेट पर सामान्य जानकारी उपलब्ध होती है, जरूरी नहीं कि वह पूरी तरह सही ही हो। कई लोग लक्षण के आधार पर इंटरनेट पर बताई उनकी बीमारी को सही मान बैठते हैं, फिर डॉक्टर की सलाह और उसके ट्रीटमेंट को गलत ठहरा देते हैं। ऐसे में उन्हें सही इलाज नहीं मिल पाता और वे डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं। आखिर लोग इंटरनेट को क्यों अपना डॉक्टर मान लेते हैं? इसका जवाब समझने के लिए जागरण ने बात की एक्सपर्ट से। आइए जानते हैं...
मनस्थली की संस्थापक-निदेशक और वरिष्ठ मनोचिकित्सक, डॉ. ज्योति कपूर के अनुसार, आजकल लगभग सभी के पास स्मार्टफोन है, ऐसे में लोग डॉक्टर की सलाह लेने से पहले और बाद में इंटरनेट पर अपनी बीमारी के बारे में सर्च करते हैं। यह एक नया ट्रेंड सा बन गया है, जिसे गूगल पेशेंट और गूगल सिंड्रोम भी कहा जा रहा है। इसमें पेशेंट्स अपने लक्षणों के आधार पर इंटरनेट पर सर्च करता है, फिर उसमें बताई गई जानकारी को बिना किसी मापदंड के सही मान बैठता है और अपनी राय बना लेता है। कई बार तो मरीज, डॉक्टर की सलाह और उसके इलाज को भी गलत ठहरा देता है। ऐसे में सही दवा नहीं खाने से वह ठीक नहीं हो पाता और अवसाद में चला जाता है।
इंंटरनेट पर अपनी बीमारी से संबंधित जानकारी सर्च की जा सकती है, लेकिन वहां बताई गई जानकारी 100 फीसदी सही हो, इसकी कोई गारंटी नहीं है। वहां जेनुइन इन्फॉर्मेशन उपलब्ध नहीं है, सिर्फ अनफिल्टर इन्फॉर्मेशन है। इसलिए कोई भी दवा लेने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूरी है। ऐसे भी लोग हैं जो इंटरनेट पर सर्च करके खुद ही दवा लेना शुरू कर देते हैं। अगर डॉक्टर के पास उन्हें ले भी जाएं तो लगता है कि शायद डॉक्टर सही नहीं बोल रहा है और वे दूसरे डॉक्टर से कन्फर्म करना शुरू कर देते हैं। कन्फ्यूजन में रहने की वजह से उन्हें भी समय पर सही ट्रीटमेंट नहीं मिल पाता है।
डायरेक्टर और सीनियर कंसल्टेंट गाइनेकोलॉजी, डॉ. रितु सेठी (ऑरा स्पेशलिटी क्लिनिक, गुरुग्राम) के अनुसार, इंटरनेट से जानकारी जुटाना कोई गलत बात नहीं है, इससे लोगों में जागरूकता आती है, लेकिन कई बार यहां गलत जानकारियां भी मिलती हैं, जो पेशेंट को कन्फ्यूजन में डालती हैं। सोशल मीडिया पर दी गई जानकारी गूगल पर 75 प्रतिशत तक ठीक होती है। 25 प्रतिशत पर डाउट रहता है। यहां पर कई बार कंपनियां भी पैसे लेकर लिख देती हैं, इसलिए पेशेंट्स इस गलतफहमी में न रहें कि उस इन्फॉर्मेशन के आधार पर वे ठीक हो जाएंगे। डॉक्टर ही उन्हें ठीक कर सकते हैं। हालांकि पेशेंट की बातें सुनकर डॉक्टर्स को कभी भी परेशान नहीं होना चाहिए, इसे एक चैलेंज की तरह लेते हुए स्वीकार करें। वहीं, दूसरी ओर, पेशेंट्स भी कन्फ्यूजन में ट्रीटमेंट नहीं करवाएं, यह मरीजों के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
सोशल मीडिया से अवेयर रहें और किसी भी बीमारी के इलाज के लिए डॉक्टर से संपर्क करें, उनके सलाह पर ही दवा लें।
Pic Credit: Freepik
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