Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Ayurveda Myth Debunked: जानिए आयुर्वेदिक इलाज से जुड़ी भ्रांतियां और उनके पीछे की सच्चाई

    By Priyanka SinghEdited By: Priyanka Singh
    Updated: Mon, 12 Jun 2023 02:39 PM (IST)

    Ayurveda Myth Debunked पारंपरिक आधुनिक चिकित्सा या एलोपैथी की तुलना में आयुर्वेदिक उपचार को अक्सर सुरक्षित माना जाता है लेकिन फिर भी इसे लेकर लोगों के मन में कई तरह की गलतफहमियां हैं तो आइए जानते हैं आयुर्वेद से जुड़ी कुछ भ्रांतियां और उनके पीछे का सच।

    Hero Image
    Ayurveda Myth Debunked: आयुर्वेद चिकित्सा से जुड़ी गलतफहमियां और उनके पीछे का सच

    नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Ayurveda Myth Debunked: प्राचीन भारतीय चिकित्सा-पद्धति आयुर्वेद, हजारों सालों से कुछ रोगों के उपचार के लिए प्राकृतिक औषधियों का प्रयोग करती रही है। लगभग पांच हजार साल पुरानी यह पद्धति विश्व में चिकित्सा के सबसे प्राचीन तरीकों में से एक है। पारंपरिक आधुनिक चिकित्सा या एलोपैथी की तुलना में, आयुर्वेदिक उपचार को अक्सर सुरक्षित माना जाता है। हालांकि, जब कुछ रोगों के आयुर्वेदिक उपचार की बात आती है, तो इसके बारे में कुछ भ्रम और गलत धारणाएं भी प्रचलित हैं। इनमें से एक है, किडनी या किडनी के पुराने रोगों का आयुर्वेदिक उपचार।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    किडनी के उपचार और सुधार में भी आयुर्वेद का प्रयोग सैकड़ों सालों से किया जा रहा है। आज आधुनिक चिकित्सा-विज्ञान के बीच भी आयुर्वेद, खराब हो चुके किडनी के टिश्यू को ठीक करने में मददगार है। इसकी सहायता से डायलिसिस की संख्या को भी कम किया जा सकता है। इस पद्धति के अनेक लाभ हैं, साथ ही इसे अपनाने वाले लोगों की संख्या भी बहुत ज्यादा है। फिर भी इस प्राचीन पद्धति के बारे में कई भ्रम हैं। जब आयुर्वेद के माध्यम से किडनी के उपचार की बात हो, तो कुछ तथ्यों और भ्रम के बारे में जानना जरूरी है:-

    भ्रम: आयुर्वेद उपचार में केवल भाग्य काम करता है।

    तथ्य: कुछ लोग सोचते हैं कि सभी आयुर्वेदिक औषधियां काम नहीं करतीं और अगर आप भाग्यशाली हैं, तो ही आपकी बीमारियां ठीक की जा सकती हैं। यह आमतौर पर प्रचलित गलत धारणा है, क्योंकि आयुर्वेदिक उपचार आधुनिक विज्ञान की तुलना में बहुत अलग है। इसका असर धीरे-धीरे हो सकता है। संभव है कि एलोपैथी की भांति तुरंत राहत न मिले, लेकिन इसके फायदे जरूर मिलते हैं। आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट का रिजल्ट नजर आने में समय लगता है, क्योंकि यही उपचार का प्राकृतिक स्वरूप है। ऐसे में कह सकते हैं कि आयुर्वेदिक उपचार 'भाग्य का खेल' नहीं है। यह कुछ समय ले सकता है, लेकिन परिणाम अवश्य दिखाता है। इसके विपरीत, आधुनिक चिकित्सा-पद्धति लक्षणों के उपचार में कम समय जरूर लेती है, किंतु रोग पुन: पैदा हो सकता है।

    भ्रम: आयुर्वेद के दुष्प्रभाव नहीं होते।

    तथ्य: आयुर्वेदिक उपचार के बारे में यह अक्सर कहा जाता है कि प्राकृतिक होने के कारण इसके दुष्प्रभाव नहीं होते। यह भ्रम है, जो इस विचारधारा से पैदा हुआ कि अधिकतर उपचारों में प्राकृतिक औषधियों और जड़ी-बूटियों का प्रयोग किया जाता है। सच तो यह है कि प्रत्येक चिकित्सा का शरीर पर कोई न कोई दुष्प्रभाव अवश्य पड़ता है। दूसरी महत्वपूर्ण बात अपना इलाज खुद करना है। यह चलन भारत में बहुत है। जो दवाई डॉक्टर ने नहीं बताई, वह अपने तरीके से खाने से हानिकारक हो सकती है।

    भ्रम: आयुर्वेदिक औषधियों की एक्सपायरी डेट नहीं होती।

    तथ्य: अन्य भ्रम यह है कि अगर यह आयुर्वेदिक है, तो इसके न तो दुष्प्रभाव होंगे और न ही यह एक्सपायर होगी। केवल अच्छा प्रभाव मिलेगा। जबकि सच यह है कि आयुर्वेदिक औषधियां भी मनुष्य ही तैयार करते हैं और उनकी एक्सपायरी डेट भी होती है। 

    भ्रम: आयुर्वेद वैध पद्धति नहीं है।

    तथ्य: कुछ लोग आयुर्वेदिक उपचार अपनाने से पीछे रहते हैं। इसका एक कारण उनका यह भ्रम है कि यह वैध पद्धति नहीं है। आयुर्वेद कानूनी रूप से मान्य पद्धति है और इसके माध्यम से उपचार करने वाले सभी चिकित्सक प्रशिक्षित और बेहद प्रतिष्ठित संस्थान होते हैं, जिन्हें चिकित्सा का लाइसेंस दिया जाता है।

    भ्रम: केवल शाकाहारी व्यक्ति ही आयुर्वेदिक उपचार करा सकते हैं।

    तथ्य: यह आम धारणा है कि आयुर्वेदिक उपचार के अंतर्गत, मांस और उसके उत्पाद और प्याज नहीं खाना होता है, क्योंकि इन्हें 'तामसिक भोजन' माना जाता है और ये शरीर के लिए हानिकारक होते हैं। अनेक आयुर्वेदिक चिकित्सक प्याज और लहसुन खाने की राय देते हैं, क्योंकि इनमें अनेक चिकित्सकीय गुण होते हैं। इसी प्रकार, थोड़ी मात्रा में मांसाहार लेने की भी कभी-कभी राय दी जाती है, क्योंकि इससे शरीर में लौह-तत्व का संतुलन स्थापित होता है, शरीर को प्रोटीन मिलता है और संक्रमण दूर होता है।

    (डॉ. पुनीत, संस्थापक एवं निदेशक, कर्मा आयुर्वेद से बातचीत पर आधारित)

    Pic credit- freepik