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मैंटल सेल लिंफोमा का मिलेगा नया इलाज, प्री-क्लीनिकल टेस्ट में असरदार रही प्रयोगात्मक दवा

मैंटल सेल लिंफोमा (एमसीएल) प्रतिरक्षी कोशिकाओं के बी-सेल्स में पैदा होता है जो ‘मैंटल जोन्स’ के नाम से पहचाने जाने वाले लिंफ नोड्स के क्षेत्र में एंटीबाडी बनाता है। इसका अधिकांश मामला खासतौर पर पुरुषों में 60-70 वर्ष की उम्र में सामने आते हैं।

By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalPublished: Fri, 25 Nov 2022 10:46 AM (IST)Updated: Fri, 25 Nov 2022 10:46 AM (IST)
मैंटल सेल लिंफोमा का मिलेगा नया इलाज, प्री-क्लीनिकल टेस्ट में असरदार रही प्रयोगात्मक दवा
शोध- विशिष्ट प्रकार के इस कैंसर के कारक प्रोटीन को ब्लाक करने में मिली सफलता

वाशिंगटन, एएनआइ : मैंटल सेल लिंफोमा एक प्रकार का ब्लड कैंसर है। इसकी भी रोकथाम या इलाज की दिशा में वेल कार्नेल मेडिसिन के शोधकर्ताओं ने एक बड़ी सफलता हासिल करने का दावा किया है। उनके अनुसार, मैंटल सेल लिंफोमा (एमसीएल) एक विशिष्ट प्रकार के प्रोटीन पर बहुत हद तक निर्भर होता है, जो उसके जीन की अभिव्यक्ति को संयोजित या निर्देशित करता है। प्री-क्लीनिकल टेस्ट में उस प्रोटीन की गतिविधियों को ब्लाक करने में एक प्रयोगात्मक असरदार साबित हुई है। जर्नल आफ क्लीनिकल इन्वेस्टीगेशन में 25 अक्टूबर को प्रकाशित इस खोज के बारे में कहा गया है कि यह मैंटल सेल लिंफोमा के इलाज के लिए नई दवा विकसित करने का नया खोलने के साथ ही इस बीमारी के पनपने की प्रक्रिया की समझ बेहतर करेगी।

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वेल कार्नेस मेडिसिन में सांड्रा एंड एडवर्ड मेयर कैंसर सेंटर के सदस्य तथा पैथोलाजी और लैबोरेट्री मेडिसिन के एसोसिएट प्रोफेसर व इस अध्ययन के सह-लेखक जिहये पैक ने बताया कि मैंटल सेल लिंफोमा के लिए बेहतर थेरेपी एक बहुत बड़ी आवश्यकता है और हमारे शोध में पाया गया है कि यह प्रोटीन, जिसे एफओएक्स01 कहा जाता है, को रोकने के लिए नई एकल दवा या मौजूदा दवाओं के साथ मिलाकर तैयार करने की एक प्रभावी रणनीति तैयार की जा सकती है।

क्या है मैंटल सेल लिंफोमा

लिंफोमा एक प्रकार का कैंसर है, जो लिंफ (लसीका) नोड्स और उन छोटे अंगों से शुरू होता है, जहां प्रतिरक्षी कोशिकाएं संक्रमण या रोगाणुओं को रोकने के लिए एकत्रित होती हैं। मैंटल सेल लिंफोमा (एमसीएल) प्रतिरक्षी कोशिकाओं के बी-सेल्स में पैदा होता है, जो ‘मैंटल जोन्स’ के नाम से पहचाने जाने वाले लिंफ नोड्स के क्षेत्र में एंटीबाडी बनाता है। इसका अधिकांश मामला खासतौर पर पुरुषों में 60-70 वर्ष की उम्र में सामने आते हैं। वैसे यह कैंसर अन्य प्रकार के कैंसर की तुलना में काफी कम होता है। यह बहुत धीरे-धीरे बढ़ता है, लेकिन थेरेपी के बाद भी यह फिर से पनप जाता है, इसलिए इसे वस्तुत: लाइलाज ही माना जाता है।

इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 1,427 विभिन्न ट्रांसक्रिप्शन कारक प्रोटीन को ब्लाक करने के लिए लैब में विकसित एमसीएल कोशिकाओं पर सीआरआइएसपीआर/सीएस9 जीन-एडिटिंग तकनीक का इस्तेमाल किया। ट्रांसक्रिप्शन कारक वे प्रोटीन होते हैं, जो डीएनए से बंध जाते हैं और जीन की गतिविधियों के लिए मास्टर प्रोग्रामर की तरह कार्य करते हैं। बहुत सारे कैंसर किसी खास ट्रांसक्रिप्शन कारक पर निर्भर होते हैं और पारंपरिक तौर पर उसे दवा से निशाना बनाना बड़ा कठिन होता है।

स्क्रीनिंग प्रक्रिया में पाया गया है कि कई ट्रांसक्रिप्शन कारकों को बाधित करने से एमसीएल में रोगग्रस्त कोशिकाओं का विभाजन काफी धीमा हो जाता है। खास बात यह कि अन्य प्रकार की कोशिकाओं का विकास इससे अप्रभावित रहता है। शोधकर्ताओं ने अपने अन्य प्रयोगों में उनमें से एफओएक्स01 की खोज की, जो अन्य की गतिविधियों के जिम्मेदार होता है। साथ ही एमसीएल कोशिकाओं की जीन गतिविधियों के पैटर्न के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं।

विज्ञानियों का कहना है कि एफओएक्स01 कुछ सामान्य प्रकार की कोशिकाओं के विकास के लिए भी काफी महत्वपूर्ण है। पहले के अध्ययनों में यह पाया गया है कि एफओएक्स01 कुछ प्रकार के कैंसर को बढ़ाने के बजाय उसे दबाने का भी काम करता है। लेकिन इस नए अध्ययन में पाया गया है कि एफओएक्स01 से इलाज वाले वयस्क चूहे एक महीने तक ठीक रहे और उनमें कोई उल्लेखनीय दुष्रभाव नहीं हुआ।


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